यह सच्चाई जानकर भारत के हर देशभक्त का कलेजा चाक हो जाएगा कि हमारी बेरोज़गार आबादी का लगभग 83% हिस्सा युवाओं का है। यह वे नौजवान युवक व युवतियां हैं जिन्हें भारत का डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है और जिसके दम पर भारत के बहुत तेज़ी से लम्बे समय तक विकास करते रहने की भविष्यवाणी की गई थी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) द्वारा बीते मंगलवार को जारी ‘भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024’ मेंऔरऔर भी

हमारे रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर व शिकागो यूनिवर्सिटी में फाइनेंस के प्रोफेसर रघुराम राजन का कहना है कि भारत का 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बन पाना मुश्किल है और इस लक्ष्य की बात करना भी तब बकवास है जब देश के इतने सारे बच्चों के पास हाईस्कूल तक की शिक्षा नहीं है और डॉप-आउट दरें बहुत ज्यादा हैं। इस इंटरव्यू के बाद बहुत सारे सरकारी अर्थशास्त्री उनके पीछे पड़ गए और चिल्लाने लगे कि राजन भारतऔरऔर भी

नए वित्त वर्ष 2024-25 का आगाज़। नए हफ्ते का पहला दिन। ऐसा संयोग कभी-कभी ही मिलता है। हमें इसे अप्रैल-फूल के चक्कर में व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, बल्कि सत्य के सफर का प्रस्थान बिंदु बना लेना चाहिए। हम महज शेयर बाज़ार के निवेशक या ट्रेडर ही नहीं, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था के सबसे प्रतिबद्ध प्रेक्षक भी हैं। कारण, निवेशक व ट्रेडर के रूप में हमारा पूरा वजूद ही अर्थव्यवस्था के हाल पर टिका हुआ है। इसलिए सारे हाइपऔरऔर भी

मोदी सरकार की नीतियों और नीयत को परखने के बाद विशेषज्ञ विदेशी निवेशकों को यही सलाह दे रहे हैं कि आप भारतीय शेयर बाज़ार से कमाने के लिए थोड़े समय का निवेश ज़रूर करते रहें, लेकिन खुद उद्योग-धंधों में पूंजी लगाने का जोखिम न उठाएं। कारण, मोदी सरकार अपने मुठ्ठी भर चहेतों का हित साधने के लिए कभी भी उनके धंधे पर लात मार सकती है। साथ ही वे अभी शेयर बाज़ार के निवेश को लेकर भीऔरऔर भी

देश में होनेवाले विदेशी निवेश की आशावादी घोषणाओं में कोई कमी नही है। लेकिन वास्तविक निवेश छिटकता जा रहा है। मसलन, जुलाई 2023 में ताइवान के फॉक्सकॉन ग्रुप ने वेदांता समूह के साथ लगाए जानेवाले 19.5 अरब डॉलर के सेमी-कंडक्टर संयुक्त उद्यम से हाथ पीछे खींच लिया। अभी पिछले ही महीने फरवरी में सोनी ने ज़ी एंटरटेनमेंट के साथ विलय का 10 अरब डॉलर का करार तोड़ दिया। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में देश मेंऔरऔर भी

आंकड़ों में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर अच्छी से अच्छी होती जा रही है। पहले अनुमान था कि 31 मार्च 2024 को खत्म हो रहे वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 में हमारा जीडीपी 7.3% बढ़ेगा। फिर दिसंबर 2023 की तिमाही में विकास दर के 8.4% पहुंचने पर पूरे साल का अनुमान बढ़ाकर 7.6% कर दिया। कुछ दिन पहले ही रिजर्व बैंक का नया अध्ययन आया है जिसके मुताबिक जनवरी-मार्च की तिमाही में विकास दर 5.9% के बजाय 7.2% रहऔरऔर भी

भारत अगर दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है तो अपनी अंतर्निहित ताकत के दम पर है। हम आज अगर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले कुछ सालों में तीसरे नंबर पर आ जाएंगे तो यह हमारी प्राकृतिक, भौगोलिक व मानव संपदा और उद्यमशीलता की देन है, किसी सरकार या नेता की मेहरबानी नहीं। देश में मनमोहन सिंह तो छोड़िए, कोई कम्युनिस्ट सरकार भी होती तो यही होता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी उसीऔरऔर भी

यह कड़वी हकीकत है कि ‘सत्यमेव जयते’ के भारत में सदियों से झूठ का बोलबाला रहा है। तुलसीदास ने करीब छह सदी पहले रामचरित मानस में लिख दिया था, “झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना। बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा, खाइ महा अहि हृदय कठोरा।” मानस में भगवान राम के मुंह से असंतों के बारे में कहलवाई गई यह चौपाई आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर एकदम सटीक बैठती है। प्रधानमंत्री मोदीऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पत्र में बड़े गर्व के साथ कहा है कि ‘विकास और विरासत को साथ लेकर भारत ने बीते एक दशक में बुनियादी ढांचों या इंफ्रास्ट्रक्चर का अभूतपूर्व निर्माण’ देखा है। किसी भी विकासशील में इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण एक सतत प्रक्रिया है। यह सिलसिला आज़ादी के बाद के सात दशकों से लगातार चल ही रहा है। लेकिन बीते एक दशक में इस दिशा में जो ‘अभतूपूर्व’ काम हुआ है, वो चुनावी बांडों परऔरऔर भी

प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में दावा किया है कि उनकी सरकार ने हर नीति व निर्णय के ज़रिए गरीबों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के जीवनस्तर को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के ईमानदार प्रयास किए हैं। सरकार की तरफ से नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर, सुब्रह्मण्यम ने कहा है कि देश में गरीबी आबादी के 5% तक सिमट गई है। लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि हमारे 81.35 करोड़ या 58.10% लोग सरकार से हर महीने मुफ्तऔरऔर भी