प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में दावा किया है कि उनकी सरकार ने हर नीति व निर्णय के ज़रिए गरीबों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के जीवनस्तर को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के ईमानदार प्रयास किए हैं। सरकार की तरफ से नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर, सुब्रह्मण्यम ने कहा है कि देश में गरीबी आबादी के 5% तक सिमट गई है। लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि हमारे 81.35 करोड़ या 58.10% लोग सरकार से हर महीने मुफ्तऔरऔर भी

आगामी लोकसभा के चुनावों की तारीख घोषित हो गई। इसी के साथ देश लोकतंत्र के महोत्सव की तैयारी में जुट गया है। तारीखों के ऐलान के ठीक एक दिन पहले दस सालों से देश के प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने अपने हस्ताक्षर से सभी देशवासियों के नाम एक पत्र जारी किया है। यह पत्र निश्चित रूप से आपके भी ह्वॉट्स-ऐप नंबर पर आया होगा। सबसे पहला सवाल तो यही कि हम सभी का ह्वॉट्स-ऐप नंबर प्रधानमंत्री केऔरऔर भी

माना जा रहा था कि भारत से लाइसेंस-परमिट राज 33 साल पहले 1991 में नई आर्थिक उदार नीतियां लागू होने के बाद खत्म हो गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनावी बांडों के खुलासे से साफ हो गया कि देश में अब भी कंपनियों के लिए सरकार की कृपा बहुत मायने रखती है। जिस तरह अपोलो टायर्स, बजाज ऑटो, बजाज फाइनेंस, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, महिंद्रा ग्रुप, पिरामल एंटरप्राइसेज़, गुजरात फ्लूरोकेमिकल्स, टीवीएस, सनफार्मा, वर्द्धमान टेक्सटाइल्स, मुथूत, सुप्रीम इंडस्ट्रीज़,औरऔर भी

मुठ्ठी भर खासजन सरकारी कृपा और दलाली से फलते-फूलते ही जा रहे हैं, जबकि करोड़ों आमजनों की हालत पतली होती जा रही है। पिछले कुछ सालों में एक तरफ उन पर ऋण का बोझ बढ़ता गया। दूसरी तरफ उनकी खपत घटती चली गई। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में देश के आम परिवारों पर कुल ₹9 लाख करोड़ का ऋण था। यह बोझ साल भर बाद ही 2022-23 में 76% बढ़कर ₹15.8 लाखऔरऔर भी

विश्व अर्थव्यवस्था ठहरी पड़ी है तो निर्यात की मांग नहीं निकल रही। देश के भीतर निजी खपत ठीक से नहीं बढ़ रही। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर 2023 की तिमाही में यह 1.8% बढ़ी है, जबकि अप्रैल से दिसंबर 2023 तक के नौ महीनों में 3.5% बढ़ी है। ऐसे में दिसंबर तिमाही में जीडीपी की 8.4% बढ़त को लेकर कोई चाटेगा क्या? निजी क्षेत्र इसलिए भी नया निवेश नहीं कर रहा क्योंकि उसके पास मांग से कहींऔरऔर भी