जब तय कर लिया कि आकस्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निकाली गई रकम के बाद बची बचत का कितना हिस्सा बैंक एफडी, सरकारी बॉन्ड, रीयल एस्टेट व सोने वगैरह में लगाने के बाद शेयर बाज़ार में लगाना है, उसके बाद सबसे बड़ी चुनौती होती है कि किस कंपनी को लें और किसको झटक दें। इससे निपटने का तरीका यह है कि आठ-दस मानक बना लिये। जो कंपनी इन पर खरी उतरे, उसके शेयर स्मॉल-कैप, मिड-कैपऔरऔर भी

हमारी निहित संभावना, आकार-प्रकार और मौजूदा भू-राजनीतिक हालात ने अमेरिका व यूरोप समेत समूचे पश्चिमी जगत की नज़र में भारत को आर्थिक व राजनीतिक रूप से चीन की जवाबी शक्ति बना दिया है। इसलिए वो भारत को चढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकते। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका भरपूर निजी इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही में उनका रूस जाना पश्चिमी दुनिया से मोलतोल करने का हीऔरऔर भी

व्यापक अवाम और विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही तमाम देशी-विदेशी अर्थशास्त्री तक कह रहे हैं कि इस समय भारत की सबसे विकट समस्या बेरोज़गारी है। लेकिन मोदी के नेतृत्व में चल रही एनडीए सरकार मानने को तैयार ही नहीं कि देश में बेरोज़गारी की कोई समस्या है। इसलिए अगले हफ्ते मंगलवार, 23 जुलाई को आ रहे आम बजट में हम इस समस्या को सुलझाने के सार्थक उपाय नहीं देख सकते। हो सकता है कि महाराष्ट्र सरकारऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में वादा किया था कि सत्ता संभालने के बाद उनकी सरकार हर साल 2 करोड़ रोज़गार पैदा करेगी। रिजर्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के बाद मोदी ललकारने लगे हैं कि पिछले तीन-चार साल में करीब-करीब 8 करोड़ नए रोज़गार बने हैं तो विपक्ष फालतू हल्ला मचा रहा है। लेकिन स्वतंत्र अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मोदी के दावे और रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से कतई सहमत नहीं हैं। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबलऔरऔर भी