भारत साल 2007 में ही 1022 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ निम्न मध्यम आय का देश बन गया था। 18 साल बाद 2025 में भी वो 2698 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ निम्न मध्यम आय का ही देश है। अमर्त्य सेन जैसे कुछ प्रखर अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर कोई देश 28 साल तक निम्न मध्यम आय की श्रेणी में फंसा रह जाता है तो इस ट्रैप से उसका निकल पाना असंभव नहीं तोऔरऔर भी

सेवाओं के निर्यात पर तो ऐसा माहौल बनाया जाता है कि भारत सचमुच दुनिया का बैक-ऑफिस बन चुका है और वो सेवाओं के निर्यात का पावरहाउस है। लेकिन इसमें भी विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र व्यापार व विकास संगठन (अंकटाड) की रैंकिंग सारा भ्रम तोड़ देती है। प्रति व्यक्ति सेवाओं के निर्यात की रैंकिंग में भारत दुनिया के 114 देशों में 89वें स्थान पर है। वो मलयेशिया, तुर्किए और थाईलैंड से भी नीचे है। कोई कह सकताऔरऔर भी

देश में करीब 11 साल से चल रहा मोदीराज खांटी हवाबाज़ी का पर्याय बन गया है। इस हवाबाज़ी के लम्बरदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। बाकी तमाम मंत्री, मुख्यमंत्री और बड़े-बड़े अधिकारी उनके दरबारी हैं। उनकी बातों और दावों का वास्तविकता से कोई लेना-लेना नहीं। संसद में बात सुनी नहीं जाती। अदालतें और न्यायाधीश जस्टिस लोया की प्रेतबाधा से ग्रस्त हैं। मीडिया सत्ता के साथ ऐसा नाभिनाल बद्ध है कि सरकार के खिलाफ बोल नहीं सकता। अधिकांश जनताऔरऔर भी

मीडिया को खरीदा जा चुका है। असली अर्थशास्त्री सरकार से बाहर हॆ। नकली अर्थशास्त्रियों की भरमार है। छह साल तक रिजर्व बैंक में सरकार की दासता करनेवाले शक्तिकांत दास को सेवानिवृति के बाद सीधे प्रधानमंत्री का दूसरा प्रधान सचिव बना दिया गया है। ऐसे में प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री व मुख्यमंत्री सभी हांके जा रहे हैं। उत्त्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाकुंभ से राज्य के जीडीपी में 3.5 लाख करोड़ रुपए जोड़ने के दावे से पहलेऔरऔर भी

अर्थनीति जब राजनीति की सेवा का साधन बन जाए तो आर्थिक उन्नति व विकास के सारे वादे खोखले नारे बन जाते हैं। देश के जो राज्य आज केंद्र की राजनीति में हाशिए पर हैं, वे प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे ऊपर है। दरअसल, उन्होंने शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य व जनसंख्या नियंत्रण में शानदार काम किया है। इस समय जहां देश की प्रति व्यक्ति आय 2698 डॉलर है, वहीं तेलंगाना की प्रति व्यक्ति आय 4306 डॉलर,औरऔर भी

नीति आयोग के लक्ष्य के मुताबिक 2047 में देश को सतही स्तर पर मुद्रास्फीति के झाग समेत 18,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय का लक्ष्य हासिल करना है तो इसे अगले 22 सालों तक 9.01% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ना होगा और मुद्रास्फीति के झाग के बिना यह लक्ष्य हासिल करना है तो इस दौरान 11.85% की सीएजीआर से बढ़ना होगा। औसतन 6-6.5% की वृद्धि दर वाला देश कैसे यह असंभव चमत्कार कर दिखाएगा, यह मानवऔरऔर भी

भारत को विकसित देश बनाना अब कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि मार्केटिंग का पैंतरा बनकर रह गया है। सरकार या सरकारी संस्थानों को जो कुछ बेचना है, उसे विकसित भारत के रैपर में लपेट देते हैं। यहां तक कि भारतीय स्टेट बैंक ने कुछ हफ्ते पहले अपने म्यूचुअल फंड के लिए ₹250 प्रति माह की एसआईपी ‘जननिवेश – जन जन का निवेश’ स्कीम लॉन्च की तो उसकी भी टैगलाइन बना दी कि विकसित भारत की यात्रा का हिस्साऔरऔर भी

सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को जगाने की। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अमेरिका, जापान व जर्मनी की संयुक्त हिस्सेदारी 44% थी, जबकि चीन की 6% और भारत की 2% थी। उसका अनुमान है कि साल 2030 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अकेले चीन की हिस्सेदारी 45% तक पहुंच जाएगी, जबकि भारत 5% के पार नहीं जा जाएगा। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्रऔरऔर भी

विदेशी निवेशकों के भारत छोड़कर चीन की तरफ भागने की तीन खास वजहें बताई जा रही हैं। एक, अमेरिका जहां चीन से मोलतोल करने की मुद्रा में है, वहीं वो भारत पर एकतरफा दबाव बनाकर अपनी शर्तें मनवा रहा है। उसे पता है कि भारत कहीं से मोलतोल करने की स्थिति में नहीं है। दूसरे भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर होता जा रहा है। विदेशी निवेशकों को लगता है कि भारतीय शेयर बाज़ार से मुनाफाऔरऔर भी

भारत का मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र नहीं बढ़ेगा तो यहां के उद्योग-धंधे कैसे बढ़ेगे? उद्योग-धंधे नहीं बढ़ेंगे तो कॉरपोरेट क्षेत्र कैसे बढ़ेगा? कॉरपोरेट क्षेत्र नहीं बढ़ेगा तो शेयर बाज़ार कैसे बढ़ सकता है? भारत की विकासगाथा की इस ज़मीनी हकीकत ने विदेशी निवेशकों को हताश कर दिया है। केवल विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) ही नहीं, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करनेवाले भी अब भारत से बिदक कर भागने लगे हैं। उन्हें यकीन है कि जो सरकार भ्रष्टाचार के ज़रिए विश्वऔरऔर भी