एक समय था, जब चीन से लेकर एशिया के तमाम देशों ने निर्यात के दम पर शानदार आर्थिक विकास हासिल किया। लेकिन जिस तरह यूरोप से लेकर अमेरिका तक सभी विकसित देशों में अर्थव्यवस्था व खपत ठहरी हुई है, उसमें भारत के लिए निर्यात के बलबूते अर्थव्यवस्था को तेज़ गति से बढ़ाना संभव नहीं है। फिर भी घरेलू बाज़ार और खपत पर फोकस करने के बजाय मोदी सरकार और उसके शागिर्द अर्थशास्त्री निर्यात केंद्रित विकास का मंसूबा पाले हुए हैं। देश के जीडीपी में निर्यात का हिस्सा 2014 में 23% हुआ करता था। दस साल बाद 2024 तक यह कमोबेश वहीं 22.7% पर ठहरा हुआ है। फिर भी सरकार इसे छह साल में 30% पर पहुंचाने का दावा कर रही है। वो भी तब देश अपने शीर्ष दस व्यापार साझीदार देशों में से नौ के साथ व्यापार घाटा झेल रहा है। इन देशों में केवल अमेरिका के साथ हमारा व्यापार सरप्लस है। गौर करने की बात है कि जहां अमेरिका के साथ बीते वित्त वर्ष 2023-24 में हमारा व्यापार सरप्लस 36.74 अरब डॉलर का है, वहीं व्यापार घाटा चीन के साथ 85 अरब डॉलर और रूस के साथ 57.2 अरब डॉलर का रहा है। देश का कुल व्यापार घाटा इस समय 283.3 अरब डॉलर का है। व्यापार घाटा बढ़ने से देश की मुद्रा के साथ अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। रुपया डॉलर के मुकाबले पांच साल में 69 से गिरते-गिरते अब तक 83.53 पर आ चुका है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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