अर्थकाम कैलेेंडर 2015

दिसम्बर कैलेंडर

 Dec wallpaper cal 2015, on ArthKaamसाल के अंतिम महीने में हम आपको छोड़े जाते हैं बेहद खूबसूरत लोककला गौंड के साथ।

मध्यप्रदेश के गौंडी लोग या गौंड जाति द्रविड़ आदिवासी हैं और मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़. तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के भी कुछ अंचलों में बसे हैं। गौंड शब्द आया है कोंड से, द्रविड़ भाषा में जिसका मतलब हरा पहाड़ होता है। और, अपने नाम के मुताबिक ये प्रजाति कुदरत से ऐसी एकमय हो गई है कि उनकी कला में यही दिखता है। पेड़, जानवर, चिड़िया जीव सब प्राकृतिक रंगों में ऐसी रंग-बिरंगी दुनिया जीवंत हो जाती है कि आप अछूते नहीं रह सकते। पेड़ की डालियां सांप बन जाती हैं तो मछली का मुंह चिड़िया में मिल जाता है तो पेड़ों में फूल की जगह पक्षी उग आते हैं या उनकी जड़ों से जीव लिपट जाते हैं। सब कुछ गुत्थम-गुथ्था, सब कुछ अद्भुत।

और, यह पक्षी बंगाल फ्लोरिकन (हुबारोप्सिस बेंगालनसिस) है। दुनिया भर में सिर्फ 1500, बुरी तरह से विलुप्त होने की कगार पर। लेकिन, अच्छी खबर यह है कि भारत में असम, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली इस बड़ी चिड़िया की संख्या शायद अब कुछ ठीक हो गई है।

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नवम्बर कैलेंडर

november calendar 2015 on ArthKaamदीवाली पर भी रंग हमारे घर-आंगन में बिछ जाते हैं। रंगोली दक्षिण की कोलम हो या पश्चिम बंगाल की अल्पना या फिर गुजरात की, रंगों से दीवाली में भी खूब जश्न मनाया जाता है। दीयों के इस पर्व में कहीं यह नौबत न आ जाए कि पिछले 10 साल में 80 प्रतिशत विलुप्त हो चुके जटामांसी के लिए भी हम बस एक दीया ही जला पाएं। हिमालय में पाई जाने वाली यह औषधि अपनी सुगंध के लिए बहुत ज़्यादा मशहूर है।

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अक्टूबर कैलेंडर

october desktop calendarइस बार दो प्रदेशों की दो नायाब चीजें। चिड़िया तो इतनी नायाब है कि सिर्फ अरुणाचल प्रदेश में ही पाई जाती है। सबसे पहले देखा गया 1995 में। 2006 में समझा गया कि यह चिड़िया की नई प्रजाति है। बताया पुणे में रहनेवाले मशहूर पक्षीविद रामना अथरेया ने। इसकी संख्या मात्र 14 है तो उसे पकड़ कर ठीक से पहचान भी नहीं कर सकते। इस विलुप्तप्राय चिड़िया का नाम है बुगुन लियोसिचला।

और, यह आभला भरत या शीशा कढ़ाई की कला यूं तो गुजरात की है। लेकिन कुछ-कुछ भिन्नताओं के साथ यह राजस्थान के साथ ही पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में भी कई जगह मौजूद है। नवरात्रि के त्यौहार के समय आप इसे डांडिया खेलती महिलाओं के कपड़ों पर अचूक रूप से देख सकते हैं।

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सितम्बर कैलेंडर

calendar15 sept

नन्हा सा उल्लू – फॉरेस्ट आउलेट सिर्फ 23 सेंटीमीटर का। तेज़ी से विलुप्त होता पक्षी। 1873 मे देखे जाने के जाने के बाद 1884 से विलुप्त माना गया। लेकिन 1997 में फिर से दिख गया। इसके बाद कभी-कभी लोगों को दिखता रहा है। मध्य भारत के जंगलों के वासी इस उल्लू को हमेशा कभी–कभार ही देखा गया। बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा 2015 में इसकी कुल संख्या 250 बताई गई है।

सिर्फ कला की वस्तु बनते इसे कितनी देर लगेगी?

उल्लू महाराज हमारी कई कहावतों में सकारात्मक-नकारात्मक अर्थों के साथ विराजमान रहते हैं। एक यहां डोकरा कला में विराजमान है। डोकरा या धोकरा कला बस्तर, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में फैली है। 4000 से 5000 हज़ार साल पुरानी इस मोम की कास्टिंग कला के मूल में मोहें-जो-दड़ों की नृत्यागंना है। ठेठ आदिम कला के नमूने हों भले छोटे-से ही। पर इसके पीछे एक बेहद लंबी प्रक्रिया है। सबसे अच्छी बात कि इसका सारा कच्चा माल प्राकृतिक होता है।

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अगस्त कैलेंडर

calendar August 2015

कश्मीर में शांति ही नहीं, और भी बहुत कुछ गायब हो रहा है। कश्मीरी कढ़ाई या कशीदा सीधे कुदरत से फूल, पत्तियां, चिड़िया लेकर रंगों में ढाल देती है। कशीदा के फ्रेम में विलुप्त हो रहे हंगुल को मढ़ने का समय दूर नहीं होगा, अगर हमने कुछ किया नहीं तो। 2008 की गणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 160 हंगुल बचे रह गए हैं। नीले फूलों वाली इस औषधि का भी यही हाल है। यह है इंडियन जेनशियन/कडू/कुटकी। हमने इसे उगाने की कोई जहमत नहीं की बल्कि बेतहाशा काटते चले गए।

पेश है इस खूबसूरत जमीं से कैलेंडर अगस्त महीने के लिए।

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जुलाई कैलेंडर

july calendar 2015इस बार चलते हैं बारिश के मौसम में केरल के बोटहाउस की सैर पर। साथ में यह जो चिड़िया है वो है चम्मच जैसी चोंच वाली स्पूनबिल्ड सैंडपाइपर। यह खतरनाक ढंग से विलुप्त हो रही है और दुनिया में इसकी संख्या 2500 से भी कम रह गई है। भारत में केरल व कुछ अन्य राज्यों के समुद्रतटीय इलाकों में यह पाई जाती है।

लेकिन चम्मची चोंच की यह चिड़िया जिस बीज को चोंच मारने जा रही है वो है जाविंत्री (मिरीस्टिका मालाबारिका) का फल। यह मसाला भी है और औषधि भी। देश के वेस्टर्न घाट और खासकर केरल में पाया जानेवाला इसका वृक्ष भी अब दुर्लभ होता जा रहा है।

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जून कैलेंडर

june calendar on arthkaam परोस रहे हैं जून का कैलेंडर बीदरी कला की ट्रे में सजाकर। बीदरी कला बीदर की,   कर्नाटक से। कॉपर और जिंक के एलॉय मेटल से बनी और चांदी के इनले काम से सजी बीदरी कला अपने कॉन्ट्रास्ट से मन मोह लेती है। चलते हैं ईस्टर्न घाट जो कनार्टक और आंध्र प्रदेश को छूता हुआ निकलता है। यहां रात का एक हमसफर पंछी है जिसे तेलुगू में कालिवी कोड़ी कहते हैं, अंग्रेज़ी में जेर्दोन्स कर्सर। भारत में यह सिर्फ यहीं पाया जाता है। विलुप्त होने की कगार पर है। भारत में ही नहीं, विश्व भर में इसकी संख्या ढाई सौ से भी कम रह गई है। इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। वनों का घटता दायरा इसके विनाश का खास कारण है।

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मई कैलेंडर

इस बार पेश है बंगाल का शोलापीथ क्राफ्ट। एक पेड़ के तने के अंदर calendar may on ArthKaam

की स्पंज–सी सफेद लकड़ी। इससे तरह–तरह के क्राफ्ट बनते

हैं – माला, फूल, छोटी-छोटी मूर्तियां और मुकुट (टोपोर) जो

शादियों में वर-वधू पहनते हैं। इस विशेष क्राफ्ट में मालाकार

लोग माहिर हैं। शोला पेड़ बंगाल की दलदली ज़मीन में (मैंग्रोव) में

उगता है। और, यह नदी का कछुआ-रीवर टेरापीन भी मैंग्रोव का

कछुआ ही है। मगर, बुरी तरह से विलुप्त होने की कगार पर है।

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अप्रैल कैलेंडर

april cal 2015 on ArthKaam इस बार असम चलते हैं। सात दिन का बोहाग बिहू या कहें रोंगाली बिहू 15 अप्रैल से मनाएंगे असम के लोग अपने नव वर्ष की शुरुआत के साथ। यह है नए सृजन का त्योहार। उनका अद्भुत लाल धागे की कढ़ाई का नमूना साड़ी और ‘गामोसा’ पर देखेंगे। ‘जापी’ सिर पर पहनेंगे और बिहू डांस देखेंगे, गरिमा और रोमांस का वो मिश्रण जिससे चिलचिलाती धूप में भी मौसम रूमानी हो जाएगा।

बस न देख सकेंगे तो इस गुलाबी सिर वाली बत्तख, जिसका वजूद मिटने की कगार पर है। पहले भी इसे कभी-कभार ही देखा जाता था। लेकिन 1960 के दशक के बाद से तो इसे किसी ने देखा ही नहीं।

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मार्च कैलेंडर

होली के रंगों से राजस्थान की याद बरबस ही आ जाती है। तपती CALENDAR MARCH 2015 ON aRTHkAAM

धूप में भी रंगों का जीता-जागता पर्व हर समय चलता रहता है।

तो राजस्थान से एक पेटिंग और भारत की सबसे सुंदर चिड़िया में से एक हिमालयन क्वेइल। पर रुकिए कहा जा रहा है कि इसे आज़ादी से करीब 71 साल पहले तक ही देखा गया था…

हम बसंत के आगमन की तरह खिलें, रंगों से भरा अपना जीवन हो, पर कुछ यूं करें कि हमारी हिमालयन क्वेइल चिड़िया को भी जीने का मोैका मिल जाए। सही कहा?

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फरवरी

On arthkaam feb calendar 2015 एक और प्रांत की लोक-कला और गायब होती चिड़िया। महाराष्ट्र की वारली। अद्भुत रोज़-बरोज़ की गतिविधियों से भरा चित्रण। लोग, प्रकृति और काम – सहज खुशी और सरल जीवन का पूजन। और यह टिटहरी जो अपने देश में कई हिस्से में पाई जाती थी आज पूरे देश में और महाराष्ट्र में बहुत बुरे तरीके से विलुप्तप्राय पक्षियों  की लिस्ट में आ चुकी है। ऐसा होने के अन्य कारणों के साथ कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग भी शामिल है। टिटहरी  लोककथा में जिसके अंडे तक समन्दर को वापस करने पड़े थे, जिसके अंडे किसान के लिए कभी बारिश का संदेश लेकर आते थे, क्या पानी के नज़दीक रहने वाली, लंबे पैरों वाली और इस तरह की आवाज़ निकालने वाली यह चिड़िया लोककथाओं में ही बची रह जाएगी? आइए वारली ओर टिटहरी को सेलेब्रेट करें फरवरी के इस कैलेंडर से।

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जनवरी

 

इस साल के कैलेंडर की रहेगी अनोखी थीम। हमारे देश की हरेक

प्रांत की लोक January, calendar 2015कला-क्राफ्ट और उस प्रांत में पाई जाने वाली एक विशेष चिडिया, फूल। ताकि हमें याद रहे हमारी धरोहर।

इस बार है नए वर्ष के स्वागत के लिए गुजरात का मोती का पारंपरिक तोरण और सोनचिरैया।

सोनचिरैया घास के मैदानों की कमी और शिकार के कारण विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। यह वैश्विक रूप से भी क्रिटीकली इंनडेंजर्ड हो गई है। इसके अन्य नाम हैं – द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोहन, हुकना, घोरड़, गुन्जनी…

क्या आप सोनचिरैया के लिए कुछ कर सकते हैं?

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4 Comments

  1. prman ptra saise dekhe jaldi batai sar jaise aay jaat nivas praman ptra

  2. umeshkumar

  3. Bahut ache late ho

  4. ma sab ka ek sath ki

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