अपने देश में टैक्स का धन यूनिवर्सल हेल्थकेयर की पब्लिक फंडिंग में नहीं, बल्कि निजी बीमा कंपनियों और अस्पतालों का धंधा बढ़ाने में जा रहा है। सभी मानते ज़रूर हैं कि हेल्थकेयर की सुविधाएं देना सरकार का काम है और निजी क्षेत्र से इसकी उम्मीद करना बेमानी है। लेकिन यह भी तो सच है कि प्राइवेट हेल्थकेयर क्षेत्र को सरकार ने ज़मीन से लेकर टैक्स जैसी तमाम सुविधाओं में भारी सब्सिडी दे रखी है। इससे हुआ यहऔरऔर भी

आज़ादी के समय से ही देश में यूनिवर्सल हेल्थकेयर का ख्वाब देखा गया। लेकिन 77 साल बाद भी हर तरफ स्वास्थ्य सेवाओं का अकाल है। अब दावा किया जा रहा है कि 2030 तक देश में सबको यूनिवर्सल हेल्थकेयर उपलब्ध कराने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा और 70 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान योजना के तहत लाना इसी लक्ष्य की तरफ बढ़ा कदम है। लेकिन केवल स्वास्थ्य बीमा से क्या होगा? क्या इससेऔरऔर भी

सत्तर साल या इससे ऊपर के सभी वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान योजना में लाने स्कीम घोषित करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था, “इस स्कीम का शुरुआती खर्च ₹3437 करोड़ है। चूंकि यह मांग आधारित स्कीम है तो जैसे-जैसे मांग बढ़ेगी, इसका कवरेज बढ़ा दिया जाएगा।” लेकिन वैष्णव का ये बयान पब्लिक को गुमराह करनेवाला है क्योंकि यह स्कीम मनरेगा की तरह मांग आधारित नहीं है। इसमें सरकार बीमा कंपनियों को प्रीमियम देती है जिसकेऔरऔर भी

बीते हफ्ते 11 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में 70 साल या इससे ऊपर के सभी लोगों को सालाना पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवर उपलब्ध कराने की स्कीम को मंजूरी दे दी। यह साल 2018 से ही गरीबों के लिए चल रही आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का विस्तार है जिसमें 13.44 करोड़ परिवारों के करीब 65 करोड़ लाभार्थियों को कवर किया जा रहा है। लेकिन इसके विस्तार में शामिल वरिष्ठ नागरिकों परऔरऔर भी

जीडीपी के साथ डिफ्लेटर की तिकड़मबाजी करने के बावजूद मोदीराज में भारत ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका) ही नहीं, जी-20 देशों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे गरीब है। मालूम हो कि जी-20 के बाकी देश जीडीपी की गणना में डबल डिफ्लेटर की पद्धति अपनाते हैं। वे आउटपुट डिफ्लेटर लगाकर रीयल आउटपुट और इनपुट डिफ्लेटर लगाकर रीयल इनपुट निकालते हैं। फिर रीयल इनपुट को रीयल आउटपुट से घटाकर रीयल जीडीपी निकालते हैं।औरऔर भी

दुनिया भर के तमाम विकसित और विकासशील देश असली जीडीपी निकालने के लिए डिफ्लेटर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन भारत इकलौता देश है जहां डिफ्लेटर का चोंगा पहनाकर भयंकर छल किया जा रहा है और सच छिपाया जा रहा है। अमेरिका समेत तमाम विकसित देश डिफ्लेटर के तौर पर प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (पीपीआई) का उपयोग करते हैं। यही स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय मानक भी है। भारत डिफ्लेटर के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का उपयोग करता है। दिक्कतऔरऔर भी

सरकारी दखल और खर्च अंततः भ्रष्टाचार को ही बढ़ाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के खुलासे से यह बात एकदम साफ हो गई। लेकिन मोदी सरकार जीडीपी का जो आंकड़ा पेश करती है, उसमें इससे भी बड़ा लोचा है जिससे देश के 99.99% लोग अनजान हैं। जीडीपी के दो आंकड़े होते हैं। एक नॉमिनल और दूसरा रीयल। नॉमिनल की गणना मौजूदा मूल्यों पर की जाती है जो ऊपर-ऊपर दिखता है जिसमें झाग ही झाग होते हैं। रीयल कीऔरऔर भी

हमारा जो जीडीपी या अर्थव्यवस्था मार्च 2024 में खत्म वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2% की शानदार गति से बढ़ी थी, उसकी विकास दर ठीक तीन महीने बाद जून 2024 में खत्म तिमाही में घटकर 6.7% पर आ गई! यह क्यों हुआ, क्यों यह हुआ? हालांकि सरकारी अर्थशास्त्री इस विकास दर को भी ‘रोबस्ट’ बता रहे हैं। कभी सरकार के आलोचक रहे भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने अपने 800-1000 शब्दों के ताज़ाऔरऔर भी

मोदी सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही सब कुछ हैं। उनके मंत्रियों-संत्रियों के लिए तो ‘भज गोविंदम’ यही है कि मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। लेकिन मोदी का जादू धीरे-धीरे टूट रहा है। फिर भी तिलिस्म के दो सूत्र अभी तक धमाल मचाए हुए हैं। एक यह कि दुनिया भर में मोदी का डंका बज रहा है और उन्होंने भारत का बड़ा नाम किया है। गांवों से लेकर शहरों व महानगरों तक तमाम बड़े-बूढ़े इसीऔरऔर भी

जिस तरह नोटबंदी के घोषित लक्ष्य और असली मकसद अलग-अलग थे, उसी तरह जनधन खातों का असली मकसद देश के वंचित दबकों को सशक्त बनाना कतई नहीं था। अजीब बात है कि करोड़ों लोगों के पास कमाई के साधन और पेट भरने को अनाज नहीं, उनके बैंक खाते खोलने का ढोल बजाया जा रहा है! घर में नहीं है दाने, अम्मा चली भुनाने। सरकार भलीभांति जानती है कि किसानों को सौगात नहीं, फसलों का वाजिब दाम चाहिए,औरऔर भी