सेवाओं का निर्यात ठंडा पड़ता गया। वैसे यह भी एक मिथ है कि भारत सेवाओं के निर्यात में तोप-तमंचा है। विश्व बैंक की रैंकिंग में प्रति व्यक्ति सेवा निर्यात में भारत 114 देशों में 89वें नंबर पर है और मलयेशिया, तुर्किए व थाईलैंड जैसे देशों से भी नीचे हैं। खैर, सेवाओं का निर्यात ठंडा पड़ने से देश में डॉलर का आना थम गया, जबकि निकलने की रफ्तार बढ़ गई तो रुपया कमज़ोर होता चला गया। विदेशी पोर्टफोलियोऔरऔर भी

डॉलर के मुकाबले रुपए का गिरना कोई अनोखी बात नहीं। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान रुपया गिरा था और 2013 में भी खूब गिरा जब अमेरिका के क्रेंदीय बैंक फेडरल रिजर्व ने घोषणा कर दी थी कि वो सरकार के ट्रेजरी बॉन्ड खरीदकर सिस्टम में डॉलर झोंकने का सिलसिला धीमा करने जा रहा है जिसके बाद वहां के सरकारी बॉन्डों के दाम घट और उन पर यील्ड बढ़ गई थी। लेकिन इस बार रुपया केवलऔरऔर भी

तारीख 27 सितंबर 2024। उस दिन देश का विदेशी मुद्रा भंडार 704.88 अरब डॉलर के ऐतिहासिक शिखर पर था। उसी दिन बीएसई सेंसेक्स ने 85,978.25 और एनएसई निफ्टी ने 26,277.35 का ऐतिहासिक शिखर चूमा था। तब एक डॉलर 83.72 रुपए का हुआ करता था। यही वो दिन था, जब से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का भारतीय शेयर बाज़ार से मोहभंग होना शुरू हुआ। एनएसडीएल के आधिकारिक डेटा के मुताबिक वे तब से 24 जनवरी 2024 तक हमारेऔरऔर भी

देश के गहराते आर्थिक संकट और अवाम पर गहराती आपदा को छिपाने के लिए मोदी सरकार रोज़गार के आंकड़ों के साथ जबरदस्त हेरफेर और विचित्र व्याख्या कर रही है। जैसे, श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया कहते हैं कि मोदीराज में 2014 से 2024 के दौरान कृषि क्षेत्र में रोज़गार 19% बढ़ा है, जबकि यूपीए राज में 2004 से 2014 के दौरान 16% घटा था। श्रम मंत्री को कौन बताए कि यह गर्व नहीं, शर्म की बात है किऔरऔर भी

मोदी सरकार ने रोज़गार मिले लोगों की गिनती मे भयंकर ठगी व फ्रॉड किया है और देश-दुनिया के आंखों में धूल झोंकी है। फिर भी आबादी के अनुपात में रोज़गार उपलब्ध कराने में उसका रिकॉर्ड यूपीए सरकार से बदतर रहा है। वैसे, यूपीए सरकार के दौरान भी रोज़गार की स्थिति बेहतर नहीं थी। यूपीए सरकार के पहले साल 2004-05 आबादी में कामगारों का अनुपात या डब्ल्यूपीआर 62.2% था। यह घटते-घटते 2009-10 तक 55.9% और 2011-12 तक 54.7%औरऔर भी

करीब छह साल पहले सरकार की एक लीक हो गई आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट से जब पता चला कि देश में बेरोजगारी की दर 2017-18 में 45 सालों के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई थी तो हर तरफ हंगामा मच गया। मोदी सरकार के इसका ज़ोरदार खंडन किया। लेकिन मई 2019 में उसी सरकार ने दोबारा सत्ता संभाली तो दस दिन में ही उसे पुष्टि करनी पड़ी कि लीक हो गई रिपोर्ट की बातें एकदम सचऔरऔर भी

सरकार अपनी छवि बनाने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापन निकाले, सफेद झूठ तक बोले तो चल सकता है। लेकिन जब वो देश में रोज़गार के मसले पर झूठ बोलती है तो ऐसा अपराध करती है जो अक्षम्य है, जिसके लिए भविष्य उसे कभी माफ नहीं कर सकता। नया साल शुरू होने के दो दिन बाद ही केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने मीडिया को बुलाकर दावा किया कि यूपीए के दस साल के शासन में 2004 से 2014औरऔर भी

छल-छद्म, झूठ, तिकड़म और विज्ञापन से राजनीति में झांसा दिया जा सकता है। लेकिन अर्थनीति में नहीं। इसमें बड़े-बड़े विज्ञापन देकर और झूठ बोलकर भी सच को छिपाया नही जा सकता। कुछ दिन पहले अखबारों में मोदी के साथ नौजवान लड़कों व लड़कियों का फोटो लगाकर पूरे पेज़ के विज्ञापन में दावा किया गया कि नौ साल में 1.59 लाख से ज्यादा स्टार्ट-अप बने हैं। इन्हें करीब ₹13 लाख करोड़ की फंडिंग मिली और इनमें सीधे-सीधे 17.2औरऔर भी

भारत की सबसे बड़ी सम्पदा है उसकी मानव पूंजी। यही वो पूंजी है जो जीवन सुधारने की आशा में आज महाकुंभ में कोरोड़ों की तादाद में टूट पड़ी है। प्रयाग के संगम पर आस्था में डूबा सैलाब हिलोरे मार रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने अब तक के लगभग 11 साल में उसे सही दिशा में लगाने पर ध्यान नहीं दिया। मोदी सरकार मेक-इन इंडिया के नाम पर विदेशी पूंजी के पीछे फूलों का गुलदस्ता लेकर दौड़तीऔरऔर भी

कहां है गरीबी, कहां है दरिद्रता और बेरोजगारी? मोदी सरकार कहती है कि उसने 2013-14 से 2022-23 के बीच के दस सालों में 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाल लिया है। अब देश में 29.17% के बजाय केवल 11.28% लोग ही गरीब रह गए हैं। भारतीय शेयर बाज़ार का पूंजीकरण सितंबर के बाद बराबर गिरने के बावजूद अब भी जीडीपी का 130% है। देश में 21 करोड़ पंजीकृत निवेशक और 11.5 करोड़ अलग याऔरऔर भी