प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में वादा किया था कि सत्ता संभालने के बाद उनकी सरकार हर साल 2 करोड़ रोज़गार पैदा करेगी। रिजर्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के बाद मोदी ललकारने लगे हैं कि पिछले तीन-चार साल में करीब-करीब 8 करोड़ नए रोज़गार बने हैं तो विपक्ष फालतू हल्ला मचा रहा है। लेकिन स्वतंत्र अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मोदी के दावे और रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से कतई सहमत नहीं हैं। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के हेड अमित बसाले बताते हैं कि रोज़गार में बड़ी वृद्धि कृषि और स्वरोज़गार से आई है जिसमें बिना किसी भुगतान का पारिवारिक श्रम शामिल है। उनका कहना है कि रोज़गार में उछाल को नियमित वेतन वाली औपचारिक नौकरी नहीं माना जा सकता। बता दें कि केंद्र सरकार ने महीनों पहले देश में किए गए सर्वे में उन ग्रामीण महिलाओं को भी रोज़गार में लगा गिन लिया था जिन्होंने कहा था कि वे घर के काम में हाथ बंटाती हैं। यह हमारे-आपके लिए बेहद हास्यास्पद सरकारी करतब हो सकता है। लेकिन शक्तिकांत दास की दासता में रिजर्व बैंक ने इसे पूंजी (के), श्रम (एल), एनर्जी (ई), मैटीरियल (एम) और सेवा (एस) जैसे शब्दों में बांधकर रिकॉर्ड रोज़गार सृजन का भौकाल खड़ा कर दिया। यह असल में सिटी बैंक की उस रिपोर्ट की काट है जिसमें बताया गया कि 2012 के बाद से अब तक देश में मात्र 88 लाख नए रोज़गार पैदा हुए हैं। अब मंगलवार की दृष्टि…
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