कंपनियों पर लटकी सरकार की तलवार
माना जा रहा था कि भारत से लाइसेंस-परमिट राज 33 साल पहले 1991 में नई आर्थिक उदार नीतियां लागू होने के बाद खत्म हो गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनावी बांडों के खुलासे से साफ हो गया कि देश में अब भी कंपनियों के लिए सरकार की कृपा बहुत मायने रखती है। जिस तरह अपोलो टायर्स, बजाज ऑटो, बजाज फाइनेंस, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, महिंद्रा ग्रुप, पिरामल एंटरप्राइसेज़, गुजरात फ्लूरोकेमिकल्स, टीवीएस, सनफार्मा, वर्द्धमान टेक्सटाइल्स, मुथूत, सुप्रीम इंडस्ट्रीज़,औरऔर भी
खासजन फूलते गए, आमजन खस्ताहाल
मुठ्ठी भर खासजन सरकारी कृपा और दलाली से फलते-फूलते ही जा रहे हैं, जबकि करोड़ों आमजनों की हालत पतली होती जा रही है। पिछले कुछ सालों में एक तरफ उन पर ऋण का बोझ बढ़ता गया। दूसरी तरफ उनकी खपत घटती चली गई। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में देश के आम परिवारों पर कुल ₹9 लाख करोड़ का ऋण था। यह बोझ साल भर बाद ही 2022-23 में 76% बढ़कर ₹15.8 लाखऔरऔर भी
अर्थव्यवस्था के प्रबंधन पर नहीं है विश्वास
विश्व अर्थव्यवस्था ठहरी पड़ी है तो निर्यात की मांग नहीं निकल रही। देश के भीतर निजी खपत ठीक से नहीं बढ़ रही। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर 2023 की तिमाही में यह 1.8% बढ़ी है, जबकि अप्रैल से दिसंबर 2023 तक के नौ महीनों में 3.5% बढ़ी है। ऐसे में दिसंबर तिमाही में जीडीपी की 8.4% बढ़त को लेकर कोई चाटेगा क्या? निजी क्षेत्र इसलिए भी नया निवेश नहीं कर रहा क्योंकि उसके पास मांग से कहींऔरऔर भी
कॉरपोरेट ने कमाया, लेकिन लगाया नहीं
सरकार अपना बेहताशा खर्च पूरा करने के लिए आमजन से वसूली के साथ-साथ जमकर ऋण लेती रही है। पर, कॉरपोरेट क्षेत्र को रियायत व प्रोत्साहन यह कहकर देती रही है कि इससे वो नया निवेश करने को प्रेरित होगा, जिससे रोज़गार के नए-नए अवसर पैदा होंगे। ज़मीनी हकीकत क्या है? सितंबर 2022 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रोत्साहनों की चर्चा के बाद निजी क्षेत्र की तुलना हनुमान से करते हुए कहा था – का चुप साधिऔरऔर भी