केंद्रीय वित्त मंत्रालय में जुलाई 2017 से लेकर जुलाई 2019 तक आर्थिक मामलात के सचिव से लेकर वित्त सचिव तक रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पिछले ही महीने उनकी किताब, ‘वी आलसो मेक पॉलिसी’ का एक अंश अखबारों में सुर्खियां बन गया था जिसमें खुलासा किया गया था कि 14 सितंबर 2018 को एक बैठक में रिजर्व बैंक द्वारा केंद्र सरकार को धन देने से मना करने परऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में हमारी अर्थव्यवस्था में 7.5% ही गिरावट आएगी, जबकि उसका पिछला अनुमान 9.5% की गिरावट का था। अगर ऐसा होता है कि इसका श्रेय भारतीय अवाम और उद्योग क्षेत्र को जाएगा, सरकार को नहीं। कारण, अब तक सरकार के सारे घोषित पैकेज ज़मीनी धरातल पर नाकाम और महज दिखावा साबित हुए हैं। जहां सरकार को जीडीपी बढ़ाने के लिए अपनाऔरऔर भी

पंजाब व हरियाणा के गांवों-कस्बों में लोग जुगाड़ से गाड़ियां बनाकर चला लेते हैं। लेकिन अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीतने में नाकाम रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली तो देश का बजट घाटा तक जुगाड़ से ठीक करने जा रहे हैं। इस जुगाड़ के बल पर वे नए वित्त वर्ष 2018-19 का बजट पेश करते वक्त बड़े आराम से दावा करेंगे कि उन्होंने 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.2 प्रतिशत तक सीमितऔरऔर भी

केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय से लेकर कॉरपोरेट मामलात मंत्रालय की तरफ से शेल कंपनियों से जुड़ी जैसी जानकारियां सामने लाई जा रही हैं, उससे कालेधन को सफेद करने के मामले में उनकी भूमिका को लेकर उठा रहस्य गहराता जा रहा है। कॉरपोरेट मामलात मंत्रालय ने इसी रविवार को बाकायदा विज्ञप्ति जारी कर जानकारी दी है है कि मंत्रालय के व्‍यापक अभियान के आधार पर दो साल या उससे भी अधिक समय तक निष्क्रिय रहने के कारणऔरऔर भी

पिसान अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है आटा। वाकई, हमारी केंद्र सरकार ने दाल पर ऐसा रवैया अपना रखा है जिससे किसानों का पिसान निकल गया है। इससे यही लगता है कि या तो वह घनघोर किसान विरोधी है या खेती-किसानों के मामले में उसके कर्ताधर्ता भयंकर मूर्ख है। वैसे, शहरी लोग बड़े खुश हैं कि अरहर या तुअर की जो दाल साल भर पहले 180-200 रुपए किलो बिक रही थी, वह अब 60-70 रुपए किलोऔरऔर भी

आर्थिक विवेक कहता है कि किसानों की कर्जमाफी गलत है। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल से लेकर देश के सबसे बड़े बैंक, एसबीआई की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य तक इसका विरोध कर चुकी हैं। लेकिन राजनीतिक विवेक कहता है कि चुनावी वादा फटाफट पूरा कर दिया जाए। इसलिए अगर योगी सरकार ने भाजपा के लोक संकल्प पत्र के वादे को पूरा करते हुए पहली कैबिनेट बैठक में ही पांच एकड़ तक की जोतवाले 94 लाख लघु वऔरऔर भी

कालेधन को साफ करने की जिस वैतरणी के लिए सरकार ने देश के 26 करोड़ परिवारों को तकलीफ की भंवर में धकेल दिया, वह दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कर्मनाशा बनती दिख रही है। आईएमएफ जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संगठन तक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का अनुमान 7.6 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है, जबकि चीन का अनुमान 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है। यह केंद्र सरकारऔरऔर भी

भोर होने को है। घर की छोटी-बड़ी औरतें हर कोने-अंतरे में जाकर सूप पीटकर एकस्वर में कहती हैं – ईशर आवएं, दलिद्दर जाएं। पता नहीं कि उनका ईशर कोई ईश्वर है या ऐश्वर्य। लेकिन दलिद्दर में दुख देनेवाली हर चीज़ का समावेश है। चाहे वो बीमारी हो, निर्धनता हो या कोई झगड़ा-फसाद व क्लेश हो। वे शोर नहीं करतीं। पूरी शांति से इस दारिद्रय को भगाने का अभियान चलातीं, पुरुष और बच्चों की भोर की नींद मेंऔरऔर भी

फिराक़ गोरखपुरी की महशूर लाइनें हैं – अब अक्सर चुप-चुप से रहे है, यूं ही कभू लब खोले है; पहले फिराक़ को देखा होता, अब तो बहुत कम बोले है। भारतीय रिजर्व बैंक से रघुराम राजन के जाने के बाद कुछ ऐसी ही कमी कम से कम कुछ महीनों तक तो सालती ही रहेगी। इसलिए नहीं कि वे बिना लाग-लपेट बेधड़क अपनी बात रख देते थे, बल्कि इसलिए कि आज के नौकरशाही तंत्र में उनकी जैसी बौद्धिकऔरऔर भी