कहो कम, सुनो ज्यादा, समझो ज्यादा!
हम सभी खुद को सबसे बुद्धिमान और तार्किक समझते हैं। दूसरों की बात या तो खारिज कर देते हैं या तभी मानते हैं, जब वो हमारी राय को पुष्ट करती है। शेयर बाज़ार में भी यही चलता है। तेज़ी की सोचवाले तेज़ी और मंदी की सोचवाले मंदी को तरजीह देते हैं। सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखता है। लेकिन याद रखें कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा दूसरे भी सोचें, यह कतई ज़रूरी नहीं।औरऔर भी