पीनेवालों को पीने का बहाना चाहिए। इसी तरह सौदागरो को शेयर बाज़ार में मुनाफा काटने के ट्रिगर चाहिए। बिहार के चुनावों का हमारे शेयर बाज़ार के कोई लेना-देना नहीं। लेकिन इसमें एनडीए की बम्पर जीत के माहौल में बहुतेरे सौदागर 14 नवंबर को दोपहर होते-होते मुनाफा काटकर निकल गए। कुछ ऑपरेटर आगे का माहौल बनाने के लिए बाज़ार बंद होने से ठीक पहले 3 से 3.10 बजे तक 10 मिनट में ही निफ्टी-50 को 0.70% चढ़ा लेऔरऔर भी

जब कंपनी के शेयर में निवेश करते हैं तो दोहरा रिस्क उठाते हैं। एक उस कंपनी के बिजनेस का रिस्क और दूसरा खुद शेयर बाज़ार का रिस्क। रिस्क कभी बताकर नहीं आते। आप कितनी भी रिसर्च कर लें, मुद्रास्फीति का हिसाब लगा लें, बिजनेस पर हो रहे नीतियों के प्रभाव का आकलन कर लें, उद्योग में होड़ की जांच-परख कर लें, कंपनी के अतीत को तार-तार समझकर भविष्य का आकलन कर लें। लेकिन अचानक कहीं से दुनियाऔरऔर भी

बाज़ार में जरा-सा माहौल बना नहीं कि निफ्टी के चंद महीनों में 30,000 और साल भर में 40,000 तक पहुंचने की भविष्यवाणी आने लगी। टिप्स की बमबारी शुरू हो गई। इन हवाबाज़ियों को नज़रअंदाज करना चाहिए। तेज़ी के बाज़ार में वही स्टॉक्स खरीदें जो मूलभूत रूप से मजबूत होने के बावजूद किन्हीं तात्कालिक वजहों से दब गए हों। इस दौरान ज्यादा ज़रूरी है अपने पोर्टफोलियो की साफ-सफाई। सबसे पहले उन कमज़ोर स्टॉक्स को निकाल दें जो भूल-चूकऔरऔर भी

अपना शेयर बाज़ार साल भर से कदमताल किए जा रहा है। 27 सितंबर 2024 के सर्वोच्च स्तर 85,978.25 से सेंसेक्स अभी 2.05% और 26,277.35 से निफ्टी 1.84% नीचे चल रहा है। लेकिन तेज़ी के दौर का स्वाद चख चुके अधिकांश निवेशक अब भी निवेश के बुनियादी पैमानों को भूले हुए हैं। कंपनी को निवेश के लिए चुनने से पहले देखें कि कंपनी घाटे में नहीं, बराबर मुनाफे में चल रही हो, उसका ऋण-इक्विटी अनुपात एक से कमऔरऔर भी

सेबी ने दस साल बाद देश के निवेशकों का व्यापक सर्वे किया है। इसमें दोनों स्टॉक एक्सचेंज एनएसई व बीएसई और दोनों डिपॉजिटरी संस्थाओं एनएसडीएल व सीडीएसएल के साथ ही म्यूचुअल फंडों का शीर्ष संस्थान एम्फी शामिल रहा। सर्वे का काम बहुराष्ट्रीय मार्केट रिसर्च एजेसी कानतार ने किया। देश के सभी राज्यों व संघशासित क्षेत्रों के करीब 400 शहरों और 1000 गावों के 91,950 घरों के बीच यह सर्वे किया गया। विशद डेटा के गहन विश्लेषण सेऔरऔर भी

इस समय देश में बेईमानों को बोलबाला है। जो सत्ता का जितना बड़ा दलाल है, जितना ज्यादा दंद-फंद, छक्का-पंजा करता है वो उतना ही बड़ा रईस व कामयाब है। वित्तीय क्षेत्र में तो लगता है कि सेवाएं देने के बजाय सभी सेवाएं लेनेवालों के शिकार पर निकले हैं। इस बात को समझना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि आज 12 अक्टूबर को विश्व निवेशक सप्ताह का आखिरी दिन है जिसके अंतिम संदेश में कहा गया है कि रिस्कऔरऔर भी

कंपनी कितनी भी अच्छी व मजबूत हो, उसके शेयरों को चढ़े हुए भाव पर खरीदने में कतई समझदारी नहीं है। असल में कंपनी के शेयरों के भाव के दो भाग होते हैं। एक निवेश का और दूसरा सट्टे का। मान लीजिए कि किसी कंपनी का प्रति शेयर मुनाफा (ईपीएस) पिछले चार सालों में 10, 8, 12 व 13 रुपए रहा है। इसके आधार पर तर्कसंगत अनुमान यह हो सकता है कि भविष्य में उनकी अर्जन क्षमता 11औरऔर भी

अपने शेयर बाज़ार में युवा निवेशकों की संख्या बढ़ती जा रही है। जुलाई 2025 तक की स्थिति के अनुसार हर पांच में से दो निवेशकों की उम्र 30 साल से कम है। इन 40% युवा निवेशकों को अच्छे रिटर्न की उम्मीद रही होगी क्योंकि बाज़ार ने 1995 से अब तक औसतन 12.5% सालाना रिटर्न दिया है और मार्च 2020 के बाद तो निफ्टी-500 का औसत सालाना रिटर्न 29% रहा है। लेकिन पिछले एक साल ने उनको निराशऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग विशुद्ध रूप से सट्टेबाज़ी का बिजनेस है, जबकि निवेश हमेशा कंपनी के हर पहलू को देख-परखकर समझदारी से किया जाता है। फिर भी दोनों में घाटा लगने की पूरी गुंजाइश है। यही शेयर बाज़ार का रिस्क है, जिसे कोई खत्म नहीं कर सकता। फिर भी हमें सट्टेबाज़ी और सच्चे निवेश के अंतर को समझना होगा। सच्चा निवेश वो है जिसमें कंपनी का बिजनेस मजबूत हो, लेकिन उसके शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से कमऔरऔर भी

जो शेयर बाज़ार का स्वभाव समझते हैं, वे जानते हैं कि यह उतार-चढ़ाव या मंदी और तेज़ी के चक्र में चलता है। बाज़ार गिरता है तो वे परेशान नहीं होते और बाज़ार उठता है तो वे हैरान नहीं होते। पिछले दो-ढाई दशक के अनुभव से एक बात बहुत साफ हो जाती है कि जिन्होंने भी अच्छी क्वालिटी के स्टॉक्स वाजिब भाव पर खरीदे हॆ, उन्होंने लम्बी अवधि या पांच-दस साल में जमकर मुनाफा कमाया है। अभी कीऔरऔर भी