एक तरफ ब्रिटिश कंपनी, वोडाफोन पांच साल पहले भारत में किए गए अधिग्रहण पर 11,000 करोड़ रुपए का टैक्स देने से बचने के लिए दुनिया भर में लॉबीइंग करवा रही है, वैश्विक व्यापार व उद्योग संगठनों से बयान दिलवा रही है, दूसरी तरफ भारत सरकार उस पर टैक्स लगाने के अपने इरादे पर डटी है। इस साल के बजट में वित्त मंत्री ने आयकर कानून में पिछली तारीख से लागू होनेवाला ऐसा संशोधन किया है जिससे भारतऔरऔर भी

यूरोपीय संघ के 27 में से 25 देश अपने खजाने के एकीकृत प्रबंधन पर राजी हो गए हैं। इस करार को राजकोषीय एकीकरण समझौते (एफयूपी) का नाम दिया गया है। इसके तहत इन देशों के बजट का नियंत्रण यूरोपीय संघ के हाथों में होगा। ब्रिटेन और चेक गणराज्य ने इस एकीकरण पर अपनी सहमति नहीं दी है। ब्रिटेन ने पहले ही इसमें भागीदारी से इनकार कर दिया था। चेक गणराज्य ने भी कहा है कि वह इसऔरऔर भी

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल  ने कहा है कि ग्रीस को तब तक नई सहायता नहीं दी जा सकती, जब तक वो पिछली सहायता के इस्तेमाल में वाजिब प्रगति नहीं दिखाता। सोमवार को फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी के साथ बैठक के बाद बर्लिन में आयोजित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मैर्केल ने यह बात कही। उन्होंने बताया कि कल, मंगलवार को वे ग्रीस के संकट पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लैगार्ड से बातचीत करनेवालीऔरऔर भी

विश्व अर्थव्यवस्था प्राकृतिक आपदा या आतंकवादी हमले से होनेवाली व्यापक तबाही ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते तक झेल सकती है क्योंकि सरकारों या उद्योग-धंधों ने ऐसी अनहोनी के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं कर रखी है। यह आकलन है दुनिया के एक प्रतिष्ठित चिंतन केंद्र, चैथम हाउस का। चैथम हाउस लंदन का एक संस्थान है जो अंतरराष्ट्रीय मसलों से संबंधित नीतियों पर नजर रखता है। दुनिया भर के नीति-नियामकों के बीच इसकी बड़ी साख है। चैथम हाउस नेऔरऔर भी

यूरोपीय देशों का कोई साझा यूरो बांड नहीं जारी किया जाएगा। ऋण संकट का तात्कालिक तौर पर मुकाबला करने के लिए यूरोपीय संघ के देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 200 अरब यूरो मुहैया कराएंगे। इसके अलावा यूरोपीय स्थायित्व प्रणाली (ईएसएम) 2013 के बजाय 2012 के मध्य तक लागू कर दी जाएगी। ये कुछ ऐसे फैसले हैं जिन्हें जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ब्रसेल्स में हुए दो दिन के यूरोपीय शिखर सम्मेलन से मनवाने में कामयाब हो गईं। यूरोपीयऔरऔर भी

कहते हैं कि अभूतपूर्व संकट का समाधान भी अभूतपूर्व होता है। ऐसा पहली बार हुआ कि दुनिया के छह केंद्रीय बैंकों ने एक साथ मिलकर दुनिया के वित्तीय तंत्र को नकदी मुहैया कराने और डॉलर स्वैप के मूल्यों को थामने की पहल की है। ये छह केंद्रीय बैंक हैं – अमेरिका का फेडरल रिजर्व, ब्रिटेन का बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोज़ोन का यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) और कनाडा. जापान व स्विटजरलैंड के केंद्रीय बैंक। इन बैंकों ने व्यापारऔरऔर भी

अगस्त में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के रेटिंग घटा देने का सीधा असर अमेरिकी बाडों में हुए विदेशी निवेश पर पड़ा है। अमेरिकी सरकार के ट्रेजरी विभाग व फेडरल रिजर्व बोर्ड की तरफ से बुधवार, 18 अक्टूबर को जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के देशों ने वहां के ट्रेडरी बांडों में अपना निवेश जुलाई के 2845.3 अरब डॉलर से घटाकर 2835.7 अरब डॉलर कर दिया है। इसमें भी सबसे ज्यादा चौंकानेवाली बात यह है कि अमेरिका कोऔरऔर भी

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने ब्रिटेन के दो सरकारी बैंकों समेत 12 वित्तीय संस्थानों और पुर्तगाल के नौ बैंकों की क्रेडिट रेटिंग कम कर दी है। मूडीज का कहना है कि ब्रिटेन के कुछ वित्तीय संस्थान अगर मुसीबत में फंसते हैं तो इसकी संभावना कम है कि सरकार उनकी मदद करेगी। जबकि पुर्तगाल के बैंकों के बारे में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का कहना है कि वह इन बैंकों की ओर से सरकार को दिए गए भारी भरकमऔरऔर भी

टाटा समूह इस वक्त न केवल ब्रिटेन का सबसे बड़ा निर्माता है, बल्कि उसने वहां सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार दे रखा है। उसकी फैक्ट्रियों में सीधे-सीधे 40,000 लोग काम करते हैं। सर्विस स्टाफ को जोड़ दें तो यह संख्या 45,000 के पार चली जाती है। हालांकि टाटा और अंग्रेजों का रिश्ता गुलामी के दौर का है। टाटा ने लंदन से माल मंगवाने के लिए 1907 में वहां पहला दफ्तर खोला था। 1975 में उसने टीसीएस केऔरऔर भी

जिस टैक्स को बचाने के लिए लोगबाग अपना धन स्विटजरलैंड के बैंकों में जमा कराते हैं और वह सफेद से काला हो जाता है, उस पर स्विटजरलैंड सरकार ने टैक्स लगाने की शुरुआत कर दी है। ब्रिटेन व जर्मनी के साथ खास समझौते के बाद स्विस बैंकों में जमा वहां के नागरिकों के कालेधन पर टैक्स लगाया जाएगा। भारत व स्विटजरलैंड के बीच ऐसी संधि हो जाने पर भारतीयों के कालेधन पर भी स्विटजरलैंड में टैक्स लगायाऔरऔर भी