विश्व अर्थव्यवस्था प्राकृतिक आपदा या आतंकवादी हमले से होनेवाली व्यापक तबाही ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते तक झेल सकती है क्योंकि सरकारों या उद्योग-धंधों ने ऐसी अनहोनी के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं कर रखी है। यह आकलन है दुनिया के एक प्रतिष्ठित चिंतन केंद्र, चैथम हाउस का। चैथम हाउस लंदन का एक संस्थान है जो अंतरराष्ट्रीय मसलों से संबंधित नीतियों पर नजर रखता है। दुनिया भर के नीति-नियामकों के बीच इसकी बड़ी साख है।
चैथम हाउस ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 2010 में यूरोप में उड़ानों को रोक देनेवाले ज्वालामुखी की राख के बादल, जापान का भूकंप व सुनामी और पिछले साल थाईलैंड में आई बाढ़ ने साबित कर दिया है कि अगर तबाही एक हफ्ते से ज्यादा खिंच जाए तो अर्थव्यवस्था के तमाम क्षेत्र और उद्योग-धंधे भयंकर संकट में फंस सकते हैं।
इस रिपोर्ट की मुख्य लेखिका बेरनिस ली है। उन्होंने इसे फेलिक्स प्रेस्टन व जेमा ग्रीन के साथ मिलकर तैयार किया है। रिपोर्ट का कहना है, “विश्व अर्थव्यवस्था के लिए झेल पाने की अधिकतम समयसीमा एक हफ्ते ही नजर आती है।”
रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व अर्थव्यवस्था की मौजूदा नाजुक स्थिति ने उसे खासतौर पर अनदेखे झटकों के सामने एकदम असहाय कर रखा है। विशेष रूप से मैन्यूफैक्चरिंग व पर्यटन क्षेत्र में आया कोई भी संकट विकसित देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 30 फीसदी हिस्से को सीधे खतरे में डाल सकता है। अनुमान है कि एशिया में 2003 में फैली सांस की गंभीर बीमारी से उद्योग-धंधों को 60 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था जो पूर्वी एशिया के जीडीपी का लगभग दो फीसदी है।
विश्व बैंक के अनुसार पिछले साल मार्च में जापान में आई सुनामी और परमाणु संयंत्रों पर छाए संकट से अगले महीने दुनिया का औद्योगिक उत्पादन 1.1 फीसदी घट गया था। 2010 में ज्वालामुखी की राख के बादलों से यूरोपीय संघ को 5-10 अरब यूरो की चपत लगी थी और कई एयरलाइंस व ट्रैवेल कंपनियां दीवालियेपन की कगार तक पहुंच गई थी।
जोखिम के विश्लेषण से जुड़ी ब्रिटेन की कंपनी मैपलक्रॉफ्ट के मुख्य अधिकारी एलिसन वॉरहर्स्ट का कहना है, “हम उन अनुभवों से सीख सकते हैं और ज्यादा सतर्क रह सकते हैं। लेकिन ऐसा तब तक नहीं होगा, जब तक सरकारें और उद्योग-व्यापार क्षेत्र समुचित तैयारी नहीं कर लेते।”
रिपोर्ट का कहना है कि कुल मिलाकर सरकार व उद्योग-व्यापार क्षेत्र बड़ी आकस्मिक आपदाओं के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। उन्होंने सोचा ही नहीं है कि बद से बदतर हालात में क्या हो सकता है और उससे कैसे निपटा जाएगा। जलवायु परिवर्तन और पानी की किल्लत जोखिम को और विकट कर सकती है। उद्योगों, खासतौर पर उच्च-मूल्य वाले मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को इस अंतर्निभर दुनिया में तुरत-फुरत के समाधान वाले बिजनेस मॉडल पर पुनर्विचार करना होगा।
गौरतलब है कि विशेषज्ञ पिछले कुछ सालों ने सरकारों का बराबर आगाह करते रहे हैं कि वे अचानक पैदा होनेवाले राष्ट्रीय संकट का सामना करने के लिए सही ढ़ंग से तैयार नहीं हैं। 2007 में ब्रिटेन की सरकार को जबरदस्त निंदा झेलनी पड़ी थी, जब भयंकर बाढ़ से वहां की अर्थव्यवस्था को 3.2 अरब पौंड का नुकसान हुआ था।
चैथम हाउस ने अपनी रिपोर्ट में तमाम उपाय सुझाए हैं कि सरकारें व उद्योग भयंकर हालात का मुकाबला कैसे कर सकते हैं। उसमें सोशल मीडिया नेटवर्क का जिक्र खासतौर पर किया गया है। उसका कहना है कि संकट के दौरान ऐसे नेटवर्क लोगों तक जानकारी पहुंचाने में बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं। रिपोर्ट ने इस संदर्भ में पिछले साल लंदन में हुए दंगों में ट्विटर जैसे नेटवर्क की सकारात्मक भूमिका की तारीफ की है। (स्रोत: रॉयटर्स)