एक तरफ ब्रिटिश कंपनी, वोडाफोन पांच साल पहले भारत में किए गए अधिग्रहण पर 11,000 करोड़ रुपए का टैक्स देने से बचने के लिए दुनिया भर में लॉबीइंग करवा रही है, वैश्विक व्यापार व उद्योग संगठनों से बयान दिलवा रही है, दूसरी तरफ भारत सरकार उस पर टैक्स लगाने के अपने इरादे पर डटी है। इस साल के बजट में वित्त मंत्री ने आयकर कानून में पिछली तारीख से लागू होनेवाला ऐसा संशोधन किया है जिससे भारत की आस्ति को दुनिया में कहीं भी, किसी रूप में बेचने पर टैक्स लगाया जाएगा।
इसके ऊपर से अब वित्त मंत्रालय ने जोर देकर कहा है कि ऐसे सौदों पर टैक्स लगाना कहीं से भी अनुचित नहीं है, बल्कि ऐसे सौदों पर तो ब्रिटेन से लेकर अमेरिका और तमाम यूरोपीय देशों तक में टैक्स लगाया जाता है। वित्त सचिव आर एस गुजरात ने समाचार एजेंसी पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) के साथ बातचीत में कहा, “घरेलू आस्तियों के विदेश में होनेवाले विलय व अधिग्रहण सौदों पर अमेरिका, ब्रिटेन, अन्य ओईसीडी देशों और चीन तक में टैक्स लगता है।”
वित्त सचिव ने ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन की इस हरकत पर भी सवाल उठाया कि वह कैसे यह कहकर भारत-नीदरलैंड निवेश संधि का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है कि उसका 11.2 अरब डॉलर का अधिग्रहण सौदा केमैन आइलैंड में हुआ है।
बता दें कि वोडाफोन ने मई 2007 में भारतीय मोबाइल सेवा कंपनी हचिसन एस्सार में हचिसन की हिस्सेदारी खरीदकर कंपनी का अधिग्रहण कर लिया था। आयकर विभाग ने इस सौदे के लिए उस पर 11,000 करोड़ रुपए का कैपिटल गेन्स टैक्स लगाया। लेकिन वोडाफोन ने सौदे को इस तरह अंजाम दिया था कि वह कानूनी नुक्तों का फायदा उठाकर टैक्स देने से बच जाती। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट तक ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है। लेकिन इस साल के बजट में ऐसा कानूनी संशोधन किया जा रहा है कि वह अब टैक्स देने से बच नहीं सकती।
वित्त सचिव गुजराल का कहना है, “ब्रिटेन में पिछली तारीख से कर कानूनों में ऐसे संशोधन किए गए, जिसके आधार पर वहां बार्कलेज़ पर टैक्स लगाया गया। अब अगर ऐसे सौदों पर वहां टैक्स लगता है, तब उन (कंपनियों) पर यहां टैक्स क्यों न लगाया जाए?” वोडाफोन ने इस बारे में जारी बयान में स्पष्टीकरण दिया है कि, “वह ब्रिटेन में एक ब्रिटिशवासी होने के नाते टैक्स देती है। वोडाफोन को ब्रिटेन में कभी इस वजह से टैक्स देने को नहीं कहा गया है कि पुरानी तारीख से लागू संशोधनों के चलते उसकी करदेयता बनती है।”
गुजराल ने बताया कि राजस्व विभाग ने वोडाफोन और हच में डील होने से पहले ही दोनों कंपनियों को मार्च 2007 में सचेत कर दिया था कि प्रस्ताविक सौदे पर प्रथमदृष्टया टैक्स की देयता बनती है और वोडाफोन को धन की अदायगी से पहले टैक्स की रकम को रोककर रखना चाहिए। लेकिन, “वोडाफोन ने भारत सरकार की हिदायत की रत्ती भर भी परवाह न करते हुए धन का भुगतान कर दिया। जाहिर-सी बात है कि उन्होंने कानूनी सलाह लेने के बाद सोच-समझकर ऐसा फैसला किया होगा।” गुजरात के मुताबिक, अब कानूनी नुक्तों को बंद कर दिया गया है। इसलिए वोडाफोन टैक्स देने से नहीं बच सकती।