टूटने लगा अमेरिकी बांडों का जादू, चीन ने निकाले 36.5 अरब डॉलर

अगस्त में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के रेटिंग घटा देने का सीधा असर अमेरिकी बाडों में हुए विदेशी निवेश पर पड़ा है। अमेरिकी सरकार के ट्रेजरी विभाग व फेडरल रिजर्व बोर्ड की तरफ से बुधवार, 18 अक्टूबर को जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के देशों ने वहां के ट्रेडरी बांडों में अपना निवेश जुलाई के 2845.3 अरब डॉलर से घटाकर 2835.7 अरब डॉलर कर दिया है।

इसमें भी सबसे ज्यादा चौंकानेवाली बात यह है कि अमेरिका को अब तक सबसे ज्यादा उधार देनेवाले देश चीन ने एक महीने के भीतर ही अपना निवेश 36.5 अरब डॉलर घटा दिया है। इस रकम की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि अमेरिका के ट्रेजरी बांडों में भारत का कुल निवेश अगस्त में 37.7 अरब डॉलर है। यह जुलाई में भारत के कुल निवेश 37.9 अरब डॉलर से 20 करोड़ डॉलर कम है।

बता दें कि चीन इस साल मार्च से जुलाई तक हर महीने अमेरिकी सरकार के ट्रेजरी बांडों में अपना निवेश बढ़ाता रहा था। मार्च 2011 में उसका निवेश 1144.9 अरब डॉलर था। यह जुलाई 2011 तक 1173.5 अरब डॉलर हो गया। लेकिन अगस्त में वह इसे एकबारगी कम करके 1137 अरब डॉलर पर ले आया। यह साल भर का न्यूनतम निवेश है। पिछले साल अगस्त में अमेरिकी बांडों में चीन का निवेश इससे थोड़ा कम 1136.8 अरब डॉलर का था। इस साल अगस्त में चीन से जुड़े हांगकांग ने भी अमेरिकी बांडों में निवेश जुलाई के 111.9 अरब डॉलर से घटाकर 107.9 अरब डॉलर कर दिया है।

बता दें कि अगस्त के पहले हफ्ते में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने अमेरिका सरकार की रेटिंग एएए के उच्चतम स्तर से घटाकार एए प्लस कर दी थी। उसने 70 सालों तक एएए की शीर्ष रेटिंग पर बैठे अमेरिका को पहली बार नीचे उतारा था। इसके बाद से अमेरिका के वित्तीय व आर्थिक संकट का हल्ला तेज हो गया। हालांकि वॉरेन बफेट जैसी मशहूर हस्तियों ने इस तरह रेटिंग घटाने के पीछे राजनीतिक वजहें बताई थी। लेकिन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते अमेरिका की रेटिंग घटने का असर पूरी दुनिया पर पड़ा।

दिक्कत यह भी है कि बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की सरकार जिन ट्रेजरी बांडों के जरिए उधार लेती है, उनमें 46 फीसदी निवेश दूसरे देशों का है। 1945 में इनमें विदेशियों का निवेश मात्र एक फीसदी हुआ करता था। अभी होता यह है कि दुनिया के तमाम देश अमेरिका के ट्रेडरी बांडों में इसलिए निवेश करते हैं ताकि डॉलर के सापेक्ष अपनी मुद्रा को मजबूत होने से रोक सकें। वे अपनी मुद्रा देकर उसका प्रवाह कम कर देते हैं, जबकि मुद्रा के कमजोर होने से निर्यात बढ़ जाता है और देश में ज्यादा डॉलर आ जाते हैं। दुनिया के तमाम देशों की इस मानसिकता के चलते अमेरिका को उधार लेने की लत पड़ गई है।

नोट करने की बात यह है कि रेटिंग घटाने के बावजूद जापान व ब्रिटेन ने अमेरिकी बांडों में अपना निवेश बढ़ा दिया है। जापान का निवेश जुलाई में 914.8 अरब डॉलर था, जो अगस्त में 936.6 अरब डॉलर हो गया। वहीं ब्रिटेन का निवेश इस दौरान 353.4 अरब डॉलर से बढ़कर 397.2 अरब डॉलर हो गया। जुलाई से अगस्त के बीच ब्रिक देशों में शामिल ब्राजील ने अपना निवेश 210 अरब डॉलर पर जस का तस रखा है, जबकि रूस ने इसे 100.7 अरब डॉलर से घटाकर 97.1 अरब डॉलर कर दिया है।

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