यूरोपीय देशों का कोई साझा यूरो बांड नहीं जारी किया जाएगा। ऋण संकट का तात्कालिक तौर पर मुकाबला करने के लिए यूरोपीय संघ के देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 200 अरब यूरो मुहैया कराएंगे। इसके अलावा यूरोपीय स्थायित्व प्रणाली (ईएसएम) 2013 के बजाय 2012 के मध्य तक लागू कर दी जाएगी। ये कुछ ऐसे फैसले हैं जिन्हें जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ब्रसेल्स में हुए दो दिन के यूरोपीय शिखर सम्मेलन से मनवाने में कामयाब हो गईं।
यूरोपीय नेताओं ने संघ की संधि में संशोधन के बदले यूरो जोन के सदस्यों के बीच संधि का फैसला किया। शुक्रवार सुबह सभी 27 देशों के बीच समझौते की संभावना तब खत्म हो गई जब जर्मनी व फ्रांस ने ब्रिटेन की रियायतों की मांग ठुकरा दी। लेकिन यूरो जोन के 17 देश बजट अनुशासन पर संधि करने की जर्मनी और फ्रांस की मांग पर सहमत हो गए। इसमें कर्ज लेने पर रोक और भारी कर्ज लेने वालों पर स्वतः जुर्माने का प्रावधान है। यूरो जोन के देशों के अलावा छह अन्य देशों ने भी इस फैसले को स्वीकार किया है। 27 में से चार बाहर रहनेवाले यूरोपीय देश हैं – ब्रिटेन, हंगरी, स्वीडन और चेक गणराज्य।
यूरोपीय संघ के अध्यक्ष हरमन फान रोमपॉय के अनुसार, स्वीडन और चेक गणतंत्र को इसमें भागीदारी के लिए जनादेश लेना है जबकि ब्रिटेन और हंगरी इसमें भागीदारी से इनकार कर रहे हैं। बता दें कि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी ने शुरू में नई संधि के लिए सभी 27 देशों की सहमति की मांग की थी। इसका लक्ष्य यूरोपीय देशों के संकट प्रबंधन के लिए व्यापक विश्वसनीयता पाना था। लेकिन घरेलू मोर्चे पर यूरो विरोधियों का दबाव झेल रहे ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने पहले ही साफ कर दिया था कि लंदन से हां कहलवाना बहुत मुश्किल होगा। उन्होंने बदले में घरेलू वित्तीय बाजार के नियमन के लिए विशेष अधिकारों की मांग की थी।
वार्ता में भाग लेने वाले राजनयिकों का कहना था कि कैमरून के साथ बहस में कई कठोर क्षण दिखे। ब्रिटेन ने पिछले महीनों में यूरो संकट के प्रबंधन की बार-बार आलोचना की है। संधि के बदलाव पर नया विवाद और तनाव पैदा कर सकता है। दूसरी ओर यह भी साफ नहीं है कि यूरो जोन के फैसले को किस तरह से लागू किया जाएगा।