बड़े खतरनाक दौर से गुजर रहा है भारत और हम भारत के लोग। ऐसे में यकीन उसी पर करें, जिसे साफ-साफ देख सकें, छूकर पुष्टि कर सकें। अनदेखे के चक्कर में पड़े, tangible को दरकिनार करके intangible के झांसे में आए तो कहीं के नहीं रहेंगे। न बचेगा देश, न हमारा भविष्य। किसी ज़माने में ठगों का गिरोह गाय के बछड़े को कुत्ता बताकर लूट लेता था। फिर पटना रेलवे स्टेशन को निजी संपत्ति बताकर ठग बैंकोंऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग के बिजनेस की लागत है स्टॉप-लॉस। यह छोटे-बड़े हर ट्रेडर को उठानी ही होती है। थोक के भाव का मतलब है उस भाव पर खरीदना जिस पर अभी तक बैंक, संस्थाएं व बड़े निवेशक खरीदते रहे हैं और आगे खरीद सकते हैं। रिटेल के भाव का मतलब है उस भाव पर बेचना जिस पर बैंक, संस्थाएं व बड़े निवेशक अभी तक बेचते रहे हैं या बेच सकते हैं। भावों के इन स्तरों काऔरऔर भी

अपने यहां जो जितना कमाता है, उस पर और ज्यादा कमाने की हवस चढ़ी है। दुनिया भर में मॉल कम से कम डेढ़ दिन बंद रहते हैं, जबकि अपने यहां सातों दिन खुले रहते हैं। कल साल के पहले दिन अमेरिका, यूरोप व ऑस्ट्रेलिया से लेकर सिंगापुर, हांगकांग, चीन, जापान व कोरिया जैसे एशिया के तमाम शेयर बाज़ार बंद रहे। लेकिन अपने यहां एनएसई व बीएसई खुले रहे क्योंकि जितने भी निवेशक या ट्रेडर आ जाएं, कुछऔरऔर भी

यह हमारे ही दौर में होना था। एक तरफ शेयर बाज़ार में अल्गो ट्रेडिंग के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआई की धमक। दूसरी तरफ ट्रेडिंग व निवेश सिखानेवाला कोई शख्स कह रहा है, “कर्ता कृष्ण और दाता राम हैं। हम तो निमित्र मात्र हैं।” यह कैसा विरोधाभास है? लेकिन यह विचित्र, किंतु सत्य है। ऊपर से भोले-भाले व लालच में फंसे लोगों के लिए डिफाइन येज और नॉयज़लेस चार्ट के प्वॉइंट्स एंड फिगर्स जैसे धांसू जुमले। इनकेऔरऔर भी

आज के दौर में शेयर बाज़ार में निवेश या ट्रेडिंग से कमाने की सोचनेवालों को बेहद सावधान रहने की ज़रूरत है क्योंकि झूठ, छद्म व फ्रॉड का दौर चल रहा है, जिसका सच अमृतकाल का नाम देकर छिपाने का अभियान चलाया जा रहा है। जब गुजरात का किरन पटेल कश्मीर जैसे संदेशनशील राज्य में महीनों तक सरकार को चरका पढ़ाता रहा, पीएमओ से ही गहरे ताल्लुकात रखने का दावा करनेवाले संजय शेरपुरिया को करोड़ों की ठगी करनेऔरऔर भी

आजकल सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक और यू-ट्यूब पर शेयर बाज़ार से कमाने के गुर सिखानेवाले संतन की भीड़ लगी हुई है। चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर – जैसा माहौल है। गजब श्रद्धा और विश्वास नज़र आता है। ऐसे संतगण तमाम चार्ट और फॉर्मूले चस्पा कर बताते रहते हैं कि उनके पास ऐसी विद्या है जिससे शेयरों में ट्रेडिंग से लेकर निवेश तक से जमकर कमाई की जा सकतीऔरऔर भी

गली-मोहल्ले, गांव, कस्बों व शहरों में कहीं जाकर देख लें। आम भारतीय इतने उद्यमी हैं कि तिनके का सहारा पाकर भी जीने का सलीका खोज लेते हैं। लेकिन बेहतर काम-धंधे व कमाई के लिए उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य व कौशल चाहिए। ऐसा कौशल, जो उद्योगों से लेकर सेवा क्षेत्र तक में तेज़ी से इस्तेमाल हो रही मशीनों को चलाना सिखा सके। उद्योग धंधों के लिए यकीनन इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स की व्यववस्था चौकस होनी चाहिए। लेकिन जब शिक्षाऔरऔर भी

देश में श्रम की भरमार है। हमारी 67.3% आबादी की उम्र 15 से 59 साल है, जबकि 26% आबादी 14 साल तक की है। हमारे यहां 7% से भी कम लोग 60 साल के ऊपर के हैं, जबकि अमेरिका में ऐसी आबादी 17%, यूरोप में 21% और जापान में 32% है। छह साल बाद 2030 में भारत में कामकाजी उम्र वालों की आबादी 68.9% होगी। तब 28.4 साल की मीडियन उम्र के साथ भारत दुनिया का सबसेऔरऔर भी

कोई भी सरकार अगर सचमुच चाहती है कि देश की अर्थव्यवस्था बढ़े तो उसे धन को पूंजी में बदलने का काम करना चाहिए। लेकिन हमारी सरकार तो आर्थिक विकास के नाम पर दस साल से इवेंट और हेडलाइंस मैनेजमेंट में ही लगी है। वो अर्थव्यवस्था को भी राजनीति की तरह मैनेज करती है। जिस तरह उसने 81.35 करोड़ गरीबों को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज और तमाम राज्यों की करोड़ों महिलाओं को लाडकी बहिन या लाडलीऔरऔर भी

पूंजी अगर श्रम को नियोजित न करे तो वह महज उपभोग का धन बनकर रह जाती है। मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की शादी में जो ₹5000 करोड़ खर्च हुए, वो अगर पूंजी के रूप में निवेश किए जाते तो समाज व अर्थव्यवस्था में मूल्य जोड़ते। लेकिन वो पूंजी महज भोग-विलास और दिखावे में स्वाहा हो गई। उस दौरान एकाध हज़ार लोगों को चार-पांच दिन का काम मिला होगा, लेकिन रोज़गार नहीं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमणऔरऔर भी