एक तरफ ‘मोदी-अडाणी एक हैं’ के नारे का जवाब भाजपा ‘राहुल-सोरोस एक हैं’ से दे रही है। दूसरी तरफ भारत की विकासगाथा की कलई उतरती जा रही है। सितंबर महीना बीतने के बाद 9 अक्टूबर को पेश मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही या सितंबर तिमाही में जीडीपी की विकास दर 7%, तीसरी तिमाही में 7.4%, चौथी तिमाही में 7.4% और पूरे वित्त वर्ष में 7.2% का अनुमान उछाला था। लेकिनऔरऔर भी

क्या भारत की विकासगाथा इतनी भुरभुरी, कमज़ोर बुनियाद और कच्ची दीवार पर खड़ी है कि भ्रष्टाचार का सच उजागर करने से खतरे में पड़ जाएगी और जो भी इस मुद्दे को उठाने की कोशिश करेगा, उसे गद्दार व देशद्रोही करार दिया जाएगा? ऐसा होना तो नहीं चाहिए। लेकिन देश में इस वक्त यही हो रहा है। भरी संसद में भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस सांसद और नेता-प्रतिपक्ष राहुल गांधी को देशद्रोही करार दिया। वहीं, संसदऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में नियमन के नाम पर किसी भी विचार को दबाना बाज़ार के विकास को कुंठित करना है। ऐसा करने पर बाजार मूल्य-खोज की भूमिका ही नहीं निभा सकता। यहां तो हज़ारों विचारों को खुलकर टकराने देना चाहिए। नहीं तो बाज़ार का आधार व्यापक नहीं, बल्कि मुठ्ठी भर ऑपरेटरों के हाथ में सिमटकर रह जाएगा। आज भारतीय शेयर बाज़ार की हालत कमोबेश ऐसी ही है। अब इसके ऊपर सेबी डिजिटल प्लेटफॉर्म को मान्यता देने के नामऔरऔर भी

पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी ने करीब डेढ़ महीने पहले 22 अक्टूबर को शेयर बाज़ार पर लिखने या बोलने वाले तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म को कंट्रोल करने के लिए जो मशविरा पत्र जारी किया है, उस पर वो अंततः सर्कुलर जारी करके अपना अंकुश कस देगी। पब्लिक से सलाह लेने की बात तो महज खानापूरी होती है। यह कंट्रोल उन लोगों के लिए है जो अभी तक सेबी के नियामक दायरे से बाहर हैं। बाकी जो भी पूंजीऔरऔर भी

देश की पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी की ज़िम्मेदारी है कि वो करोड़ों मासूम निवेशकों की हिफाजत करे। सुनिश्चित करे कि बाज़ार में पहले से लिस्टेड और आईपीओ लाने वाली नई कंपनियां सारी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराएं। लेकिन यहां तो स्थिति यह है कि खुद सेबी की चेयरपरसन माधबी पुरी बुच ने अडाणी की ऑफशोर कंपनियों में अपने निवेश की बात छिपाई है। उन पर पूंजी बाज़ार के नियमों की अवहेलना करने और पद कीऔरऔर भी

भाजपा व मोदी सरकार से जुड़े दो वरिष्ठ वकीलों – मुकुल रोहतगी और महेश जेठमलानी ने सवाल उठाया है कि अमेरिका को क्या पड़ी है कि वो भारत के उद्योगपति गौतम अडाणी पर तोहमत लगा रहा है। लेकिन उन्होंने नहीं बताया कि अमेरिका के न्याय विभाग और वहां के पूंजी बाज़ार नियामक एसईसी ने गौतम अडाणी और उनके भतीजे सागर अडाणी समेत सात अन्य सहयोगियों के खिलाफ इसलिए सम्मन जारी किया क्योंकि उन्होंने अमेरिका के निवेशकों केऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में तीन तरह के लोग धंधा करने या कमाई करने के मकसद से आते हैं। एक वे जो अपनी बचत का एक अंश यहां लगाकर साइड की कमाई करना चाहते हैं। ऐसे रिटेल निवेशकों व ट्रेडरों की संख्या देश में कुल पंजीकृत लगभग 20 करोड़ निवेशकों में से 10-12 करोड़ तो होगी ही। दूसरे वे हैं जिनके पास इफरात धन है और वे शेयर बाज़ार में खेलने के लिए आते हैं। पैसा फेंको, तमाशा देखो।औरऔर भी

अडाणी समूह ने हर स्तर पर अपनी फील्डिंग चाक-चौबंद कर दी है। अमेरिकी न्य़ाय विभाग ने उसके ऊपर भारत में 2029 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का अभियोग जड़ा है। लेकिन भारत सरकार सीबीआई या ईडी ने इसकी जांच कराने को तैयार नहीं। वह न तो संसद में बहस करने को तैयार है और न ही संयुक्त संसदीय समिति से इसकी जांच कराने को। इस बीच भाजपा से जुड़े दो जानेमाने वकील खुद ही अडाणी को बचानेऔरऔर भी

किसी देशवासी को अगर अब भी लगता है कि मोदी सरकार व्यापक अवाम की आकांक्षाओं को पूरा करने के अभियान में लगी है तो उसे अब इस भ्रम से बाहर निकल आना चाहिए। मोदी सरकार अडाणी जैसे उद्योगपतियों का साम्राज्य बढ़ाने में ही लगी है। इन उद्योगपतियों की सूची में कोयला घोटाले के प्रमुख आरोपी नवीन जिंदल भी शामिल हैं। यह फेहरिस्त ज्यादा लम्बी नहीं। लेकिन यह भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करती। इसमें शुद्धऔरऔर भी

सवाल उठता है कि जिस गौतम अडाणी ने ब्रांड इंडिया का सत्यानाश कर दिया है, उसे सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों बचाए जा रहे हैं? मोदी ने देश के भीतर ही नहीं, बाहर भी अडाणी को संरक्षण और प्रश्रय दिया। वे जब भी विदेश दौरे पर जाते, अडाणी को ज़रूर साथ ले जाते हैं। इस क्रम में अडाणी समूह ऑस्ट्रेलिया से लेकर ग्रीस, बांग्लादेश, श्रीलंका, केन्या, संयुक्त अरब अमीरात व चीनऔरऔर भी