केंद्र सरकार भले ही पेट्रोल की तरह सारे पेट्रोलियम उत्पादों के दाम को आखिरकार बाजार के हवाले कर देना चाहती है। लेकिन फिलहाल वह डीजल, मिट्टी के तेल और रसोई गैस के दाम बढ़ाने के बारे में नहीं सोच रही है। हालांकि, इन तीनों उत्पादों को बाजार मूल्य से कम दाम पर बेचने से तेल कंपनियों को रोजाना 360 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार इस समयऔरऔर भी

इस समय पेट्रोल के मूल्य का 38.2% हिस्सा केंद्र व राज्य सरकारों के टैक्स का है। जैसे, दिल्ली में पेट्रोल का दाम 68.64 रुपए है जिसमें से 26.22 रुपए सरकारी टैक्सों के हैं। अभी अंतरराष्ट्रीय दाम के हिसाब से कंपनियों की तरफ से तय पेट्रोल का आधार मूल्य 41.38 रुपए है। इस पर 3% शिक्षा अधिभार को मिलाकर केंद्र को प्रति लीटर 14.78 रुपए की एक्साइज ड्यूटी मिलती है, जबकि दिल्ली सरकार को वैट के रूप मेंऔरऔर भी

सार्वजनिक तेल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम और डॉलर के मुकाबले कमजोर पड़ते रुपए को देखते हुए पेट्रोल के दाम में 1.82 रुपए प्रति लीटर बढ़ाने की तैयारी में हैं। करीब ढाई महीने पहले ही 16 सितंबर को तेल कंपनियों – इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम व भारत पेट्रोलियम ने पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 3,14 रुपए बढ़ाए हैं। नोट करने की बात यह है कि जून 2010 से ही पेट्रोल के मूल्यऔरऔर भी

पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीजल की दोहरी मूल्य-नीति को खारिज करते हुए कहा कि यह व्यावहारिक नहीं है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी घरेलू रसोई गैस सिलेंडर पर सब्सिडी समाप्त करने की कोई मंशा नहीं है। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी ने आर्थिक संपादकों के सम्मेलन में पूछे गए सवाल पर कहा कि डीजल पर दोहरी मूल्य-नीति व्यावहारिक नहीं है। हम डीजल की दोहरी मूल्य प्रणाली शुरू नहीं कर सकते हैं। इससे बाजारऔरऔर भी

डॉलर के सापेक्ष रुपए के कमजोर होने का सीधा असर पेट्रोलियम पदार्थों की लागत पर पड़ता है। सितंबर के शुरू में एक डॉलर 46 रुपए का था। अभी 49 रुपए के आसपास है। डॉलर की विनिमय दर में हर एक रूपए की वृद्धि से देश में डीजल, केरोसिन व रसोई गैस की सालाना लागत 8000 करोड़ रुपए बढ़ जाती है। यानी, दो रुपए बढ़ने से 16,000 करोड़ और तीन रुपए बढ़ने से 24,000 करोड़। पेट्रोलियम मंत्री जयपालऔरऔर भी

सभी लोग कंपनियों के लाभ मार्जिन के कम या ज्यादा होने की बात करते हैं। लेकिन कोई इस बात पर गौर नहीं करता कि देश के अन्नदाता किसानों का लाभ मार्जिन कितना घटता जा रहा है। एक तो वैसे ही 90 फीसदी किसान गुजारे लायक खेती करके जिंदा है, ऊपर से मार्जिन में सुराख ने गरीबी में आटे को और गीला कर दिया है। एक खबर के अनुसार, धान की फसल पर किसानों ने पिछले साल प्रतिऔरऔर भी

सरकार में डीजल के दाम तय करने को लेकर मतभेद बुधवार को उभर कर सामने आ गए, जब योजना आयोग ने डीजल के दाम को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का पक्ष लिया, जबकि भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने सरकार के सामाजिक दायित्व को देखते हुए डीजल पर सब्सिडी जारी रखने का समर्थन किया। राजधानी दिल्ली में सियाम (सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरर्स) के सालाना समारोह को संबोधित करते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंहऔरऔर भी

मंगलवार को मई में औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार घटकर 5.6 फीसदी रह जाने का आंकड़ा सामने आया तो लगने लगा कि रिजर्व बैंक शायद 26 जुलाई, मंगलवार को मौद्रिक नीति की पहली त्रैमासिक समीक्षा में ब्याज दरें बढ़ाने का अमंगल न करे। लेकिन जून माह में सकल मुद्रास्फीति के बढ़कर 9.44 फीसदी हो जाने ने इस आशा पर पानी फेर दिया है। अब नीतिगत दरों – रेपो व रिवर्स रेपो दर में कम से कम 0.25 फीसदीऔरऔर भी

सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 18 जून को समाप्त सप्ताह में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति की दर 7.78 फीसदी रही है, जबकि इससे ठीक पिछले हफ्ते इसकी दर 9.13 फीसदी थी। एक साल पहले जून महीने के समान सप्ताह में यह 20.12 फीसदी थी। लेकिन इसी दौरान ईंधन व बिजली की मुद्रास्फीति बढ़कर आठ हफ्तों के शिखर 12.98 फीसदी पर जा पहुंची। ठीक पिछले हफ्ते यह 12.84 फीसदी और साल भर पहले 12.54औरऔर भी

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में की गई वृद्धि को वापस लेने की संभावना से इनकार कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि कच्चे तेल व पेट्रोलियम उत्पादों पर कस्टम व एक्साइज शुल्क में कटौती से सरकार के राजकोषीय घाटे पर कोई असर नहीं होगा। यह पूछे जाने पर कि डीजल, घरेलू गैस व केरोसिन की कीमतों में वृद्धि में कुछ कमी की जाएगी, मुखर्जी ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडियाऔरऔर भी