पेट्रो-मूल्यों में वृद्धि वापस नहीं होगी, 8.5% रहेगी विकास दर:वित्त मंत्री

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में की गई वृद्धि को वापस लेने की संभावना से इनकार कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि कच्चे तेल व पेट्रोलियम उत्पादों पर कस्टम व एक्साइज शुल्क में कटौती से सरकार के राजकोषीय घाटे पर कोई असर नहीं होगा।

यह पूछे जाने पर कि डीजल, घरेलू गैस व केरोसिन की कीमतों में वृद्धि में कुछ कमी की जाएगी, मुखर्जी ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) से कहा, ‘‘नहीं। कीमत वृद्धि को वापस लिए जाने का सवाल ही नहीं है।’’ वित्त मंत्री अमेरिकी राजधानी वॉशिंगटन में ‘अमेरिका-भारत आर्थिक व वित्तीय सहयोग’ सम्मेलन में भाग लेने आए हुए हैं। सम्मेलन का आयोजन कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) और वाशिंगटन स्थित शोध संस्थान ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट ने किया था।

बता दें कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव में तेजी के मद्देनजर भारत सरकार ने शुक्रवार 25 जून से डीजल के दाम में 3 रुपए लीटर, एलपीजी गैस में 50 रुपए प्रति सिलेंडर और केरोसिन के भाव में 2 रुपए लीटर की वृद्धि की है। सरकार ने इसके साथ ही कच्चे तेल व पेट्रोलियम उत्पादों पर लगनेवाले उत्पाद व सीमा शुल्क में भी कटौती की है। इससे 49,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होने का अनुमान है।

वित्त मंत्री ने बुधवार को दिए गए इसी साक्षात्कार में यह भी कहा कि मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में वृद्धि के बावजूद चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि 8.5 फीसदी रहेगी। उनका कहना था, ‘‘मैं अभी भी अपने अनुमान पर कायम हूं जिसमें मैंने आर्थिक वृद्धि दर 8.5 फीसदी रहने की बात कही थी। हमें कुछ समय इंतजार करना होगा लेकिन यह 8 फीसदी ‘प्लस’ से कम नहीं होगी।’’

उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति पर लगाम लगाना जरूरी है। साथ ही हमें उच्च वृद्धि दर भी चाहिए। हमारे जैसी विकासशील देश में, अगर हम मुद्रास्फीति को काबू रखने के स्तर पर नहीं ला सकते तो समाज के कमजोर लोगों की समस्या बढ़ेगी, वे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसने के लिए प्रमुख नीतिगत दरों में मार्च 2010 से लेकर अब तक 10 बार वृद्धि की है। मुद्रास्फीति इस समय 9 फीसदी से ऊपर है। मई महीने में यह 9.06 फीसदी दर्ज की गई है। जानकारों का कहना है कि नीतिगत दरों में वृद्धि से आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

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