केंद्र सरकार भले ही पेट्रोल की तरह सारे पेट्रोलियम उत्पादों के दाम को आखिरकार बाजार के हवाले कर देना चाहती है। लेकिन फिलहाल वह डीजल, मिट्टी के तेल और रसोई गैस के दाम बढ़ाने के बारे में नहीं सोच रही है। हालांकि, इन तीनों उत्पादों को बाजार मूल्य से कम दाम पर बेचने से तेल कंपनियों को रोजाना 360 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार इस समय डीजल, एलपीजी और केरोसिन के दाम बढ़ाने के बारे में सोचना भी आत्मघाती होगा। संसद का शीतकालीन सत्र मंगलवार, 22 नवंबर से शुरू हो रहा है। ऐसे में सत्र शुरू होने से ठीक पहले अथवा एक महीने चलनेवाले इस सत्र के दौरान दाम बढ़ाने का निर्णय नहीं लिया जा सकता।
पेट्रोलियम मंत्रालय को उस समय विपक्ष और यहां तक कि अपने सहयोगी दलों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा, जब 4 नवंबर को तेल कंपनियों ने पेट्रोल का दाम 1.80 रुपए लीटर बढ़ाया था। यहां तक कि 15 नवंबर को जब पेट्रोल के दाम 2.22 रुपए लीटर कम किए गए, तब भी सरकार को राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा। सरकार पर आरोप लगाए गए कि उसने राजनीतिक लाभ के लिए दाम घटाए।
बहरहाल, अधिकारी का कहना था कि तेल कंपनियों ने उन्हें जो भी लाभ मिला, उसे उपभोक्ता को पहुंचा दिया। पेट्रोल के दाम बढ़ाने और फिर कम करने दोनों ही निर्णय आर्थिक आधार पर लिए गए। रुपए के कमजोर पड़ने की वजह से दाम बढ़ाए गए, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने से कीमतें कम की गईं। वैसे, अधिकारी ने माना कि तेल कंपनियां दाम बढ़ाने के मामले में कुछ दिन रुक जाती तो राजनीतिक विरोध से बचा जा सकता था।