हर दिन हमारे अपने शेयर बाज़ार मं डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपए इधर से उधर होते हैं। ब्रोकर समुदाय तो इस पर 0.1% का कमीशन भी पकड़ें तो हर दिन मजे से 200 करोड़ रुपए बना लेता है। लेकिन हमारे जैसे लाखों लोग ‘जल बिच मीन पियासी’  की हालत में पड़े रहते हैं। बूंद-बूंद को तरसते हैं। सामने विशाल जल-प्रपात। लेकिन हाथ बढ़ाकर पानी की दो-चार बूंद भी नहीं खींच पाते। पास जाएं तो जल-प्रपात झागऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग कुछ इंडीकेटरों या टिप्स का करतब नहीं, बल्कि एक कौशल है जिसे हर किसी को अपने अंदाज़ में विकसित करना पड़ता है। हिंदी में इससे जुड़ी किताबें भले ही न हों, पर अंग्रेज़ी में हज़ारों किताबें हैं। पिछले दो शनिवार को मैंने इसी कॉलम में पांच किताबों का लिंक दिया है। यह सेवा सब्सक्राइब न करनेवाले पाठक भी इन्हें देख सकते हैं। ये कुछ चुनिंदा मूलभूत किताबें हैं जिन्हें ट्रेडिंग की तैयारी केऔरऔर भी

स्वार्थों का जमावड़ा है बाज़ार। तगड़ी मारामारी। किस्मत नहीं, अक्ल का खेल चलता है। जिसमें जितना हुनर, जितनी बुद्धि, जितनी जानकारी, जितनी सावधानी, वह उतना ही कामयाब। लेकिन किताबी ज्ञान भी नहीं चलता। मने बद्धू आवड़ेछे (एमबीए) का गुरूर नहीं चलता। समझ व्यावहारिक होनी चाहिए। बहुत से एमबीए यहां फेल हो जाते हैं। एक बात मन में कहीं गहरे बिठा लें कि पैसा बनाने का कोई शॉर्टकट नहीं है। पैसा या धन समाज की तरफ से सदियोंऔरऔर भी

लॉटरी खेलनेवाले के कपड़े उतर जाते हैं, बचा-खुचा भी बिक जाता है। लेकिन लॉटरी खिलानेवाला हमेशा चांदी काटता है। इसी तरह शेयर बाज़ार में कानाफूसी और टिप्स पर चलनेवाले कंगाल हो जाते हैं, लेकिन इन टिप्स और कानाफूसियों को चलानेवाले हमेशा मौज करते हैं। शेयर बाजार में स्वार्थी तत्वों या साफ कहें तो ठगों का बड़ा गैंग बैठा है जो टिप्स का जाल फेंककर हम-आप जैसी छोटी मछलियों का शिकार करता है। हमें उनकी बातों के बजायऔरऔर भी

शिक्षा व ट्रेनिंग से किसी को अच्छा मैनेजर बनाया जा सकता है, अच्छा विश्लेषक व अच्छा वक्ता तक बनाया जा सकता है, पर अच्छा इंसान नहीं। अच्छा इंसान तो घर-परिवार के संस्कारों और निरंतर अपनी कतरब्योंत से ही बनता है।और भीऔर भी

आप सभी से हमारी विनम्र गुजारिश है कि बाजार के तमाम मध्यवर्तियों की तरफ से बिना वजह किए जानेवाले डाउनग्रेड व अपग्रेड को लेकर बहुत चौकन्ने रहें। जैसे, बाजार कल और आज मूडीज द्वारा भारत की विदेशी मुद्रा रेटिंग को अपग्रेड करने पर बहक गया। हकीकत यह है कि भारत सरकार के बांडों की रेटिंग मूडीज ने पिछले महीने 20 दिसंबर को ही बढ़ा दी थी। इसलिए, रुपया जब पिछले छह महीनों में डॉलर के सापेक्ष करीब-करीबऔरऔर भी

देश की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनी इनफोसिस ने उम्मीद से बेहतर नतीजे पेश किए तो दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता के बावजूद निवेशकों के चेहरे खिल गए और उसके शेयर एकबारगी 6.17 फीसदी उछल गए। लेकिन इसके साथ ही थोड़ी बिकवाली भी शुरू हो गई तो शेयर बाद में थोड़ा नीचे आ गए। इनफोसिस ने चालू वित्त वर्ष 2011-12 की सितंबर तिमाही में समेकित रूप से 8099 करोड़ रुपए की आय पर 1906 करोड़ रुपएऔरऔर भी

यहां-वहां, जहां-तहां, मत पूछो कहां-कहां। हर जगह शेयरों को खरीदने की जितनी भी सलाहें होती हैं, वे किसी न किसी ब्रोकरेज फर्म या उनकी तनख्वाह पर पल रहे एनालिस्टों की होती हैं। अगर कोई खुद को स्वतंत्र विश्लेषक भी कहता है तो उनकी अलग प्रोपराइटरी फर्म होती है जिससे वह खुद निवेश से नोट बना रहा होता है। क्या इन तमाम बिजनेस चैनलों या समाचार पत्रों में एनालिस्टों या ब्रोकरों की दी गई सलाहों पर भरोसा कियाऔरऔर भी

शुक्रवार को जब दुनिया भर के तमाम बाजारों के सूचकांक धांय-धांय गिर रहे थे, बीएसई सेंसेक्स 3.97 फीसदी और एनएसई निफ्टी 4.04 फीसदी गिर गया था, तब भारतीय शेयर बाजार का एक सूचकांक ऐसा था जो कुलांचे मारकर दहाड़ रहा है। यह सूचकांक है एनएसई का इंडिया वीआईएक्स जो यह नापता है कि बाजार की सांस कितनी तेजी से चढ़ी-उतरी, बाजार कितना बेचैन रहा, कितना वोलैटाइल रहा। जी हां, अमेरिका के एक और आर्थिक संकट से घिरऔरऔर भी