स्वार्थों का जमावड़ा है बाज़ार। तगड़ी मारामारी। किस्मत नहीं, अक्ल का खेल चलता है। जिसमें जितना हुनर, जितनी बुद्धि, जितनी जानकारी, जितनी सावधानी, वह उतना ही कामयाब। लेकिन किताबी ज्ञान भी नहीं चलता। मने बद्धू आवड़ेछे (एमबीए) का गुरूर नहीं चलता। समझ व्यावहारिक होनी चाहिए। बहुत से एमबीए यहां फेल हो जाते हैं। एक बात मन में कहीं गहरे बिठा लें कि पैसा बनाने का कोई शॉर्टकट नहीं है। पैसा या धन समाज की तरफ से सदियों में बनाया गया विनिमय का ज़रिया है। कोई अपने विनिमय का हक आपको यूं ही नहीं दे देगा। कोई अगर कहता है कि वह आपके धन को दोगुना-चौगुना कर देगा तो उससे प्यार से पूछना चाहिए कि भई! तू कहां से और कैसे ऐसा करेगा? तूने क्या पैसे का पेड़ लगा है? या तूने बैंक लूटने का साइड-बिजनेस कर रखा है?
लेकिन क्या करें! तात्कालिक जरूरत लोगों को बदहवास कर देती है। संकट से निकलने की ख्वाहिश उन्हें सहज विश्वासी बना देती है। फिर कोई शारदा, सहारा, स्पीक एशिया, संचयिती, गोल्डन फॉरेस्ट, सुसी इमू फार्म्स या स्टॉकगुरु उनके धन की एक-एक बूंद से अपना सागर भर लेता है। कितनी विडम्बना है कि आज ऋषियों के रक्त से किसी राम की सीता नहीं, इन रावणों की लंका निकलती है। आज का कानून आम लोगों के नहीं, लूटनेवालों के साथ है क्योंकि लूटनेवालों के तार राजनीति से बड़े गहरे जुड़े हुए हैं। ऐसे में हमारे पास सिर्फ अपने ज्ञान और मेहनत का सहारा है।
कितना अजीब है कि रिक्शे, खोमचेवाला, किसी तरह घर का गुज़ारा चलानेवाला गरीब लॉटरी खेलता है और देशी दाऊ पीकर ख्बाव में खो जाता है। नहीं जानता कि लॉटरी जुआ खेलना जैसा है और जुआ खेलना अमीरों का मनोरंजन है, किस्मत चमकाने का तरीका नहीं। नहीं समझता कि दारू पीने से तनाव नहीं मिटते, बस कुछ घंटों के लिए टल जाते हैं। जो मनोरंजन के लिए जुआ खलते हैं, वे सिनेमा की टिकट की तरह गिनकर जाते हैं कि इस पर इतना खर्च करना है। जीते तो मौज। हारे तो परवाह नहीं। तय लिमिट कभी कभी नहीं तोड़ते। जुए के मनोरंजन का यही वसूल है। बाकी जो लोग इससे किस्मत चमकाना चाहते हैं, वैसे लाखों में से एक की किस्मत कभी चमकती भी है तो उसकी सोच उसे फिर डुबा डालती है।
तो पहली बात कि शेयर बाज़ार में आ रहे हैं तो जुए की मानसिकता से ऊपर उठना होगा। हम यहां मनोरंजन के लिए धन कमाने के लिए आ रहे हैं। आ गए तो दूसरी बात समझ लीजिए कि शेयर बाज़ार उस पंप की तरह हैं जो ज्यादातर कम जानकार लोगों की जेब से नोट खींचकर मुठ्ठी भर जानकार व समझदार लोगों की जेब में डाल देता है। इस पंप को चलानेवालों – ब्रोकर, डीपी, म्यूचुअल फंड, क्लियरिंग कॉरपोरेशन, स्टॉक एक्सचेंज और नियामक संस्थाओं तक का खर्चा-पानी बाज़ार में बहनेवाले धन से निकलता है।
आम लोग जत्थों के जत्थों में भेड़ की तरह बाज़ार में मुंह घुसाए चले आते हैं। बड़ी मेहनत की कमाई होती है उनके पास। लेकिन धैर्य नहीं होता, ज्ञान नहीं होता। हालात को समझने की लालसा तक नहीं होती। बाज़ार में बैठे मगरमच्छ उन्हें गटक जाते हैं। सोचिए जो म्यूचुअल फंड आपके धन को बढ़ाने के बजाय पांच साल में घटा देता है, उसके ऑफिस क्यों लकदक करते रहते हैं? उसका फंड मैनेजर हर महीने लाखों की तनख्वाह कैसे काट रहा होता है? देश के सारे ब्रोकरेज हाउसों का यही हाल है। हमारी बचत की एक-एक बूंद से उनका खज़ाना भरता जा रहा है।
ऐसे में हमें बाज़ार की हर चाल समझकर पहले ट्रेडर बनना है। निवेशक हम सही वक्त आने पर बद में अपने आप बन जाएंगे। लेकिन सावधान! नया मुल्ला बहुत प्याज खाता है। असल में नया ट्रेडर अंधेरे जंगल में भटकते मेमने जैसा है। यहां से वहां झटकते-कूदते इस अनजान उत्साही जीव को ब्रोकर, प्रोफेशनल ट्रेडर और बाज़ार के दूसरे खिलाड़ी निपटा देते हैं और उनकी खाल (पूंजी) को आपस में बांट लेते हैं। इसलिए यहां बहुत ही चौकन्ना रहने की जरूरत है। कितना ब्रोकरेज़, कितना कमीशन, कौन-कौन से दूसरे खर्च, मार्केट ऑर्डर या लिमिड ऑर्डर, शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स। हर गणना चौकस रखनी होगी। मान लें आपने 10 फीसदी कमाया। लेकिन असली कमाई तो वो है जो हर खर्चों को काटने के बाद आपके खाते में बचती है। यहां कोई ठकुरई या बड़बोलापन नहीं, बल्कि वणिक बुद्धि काम करती है।
हो सकता है कि इतना पढ़ने के बाद आप कह रहे होंगे कि छोड़ो, अपने वश की बात नहीं है ट्रेडर बनना। लेकिन मेरा कहना है कि जानने-सीखने का मन हो तो शेयर बाज़ार आय का वैकल्पिक साधन बन सकता है। जब यह मौका देश में उपलब्ध है तो इसका लाभ उठाने में क्या हर्ज! लेकिन आंख पर पट्टी बांधकर नहीं, अंदर-बाहर की सारी आंखे खोलकर। एक बार आपने ज़रूरी हुनर हासिल कर लिया, मानसिकता बदल ली, कितना रिस्क कहां लेना है, समझ लिया, निश्चित अनुशासन का पालन किया तो आपकी लक्ष्मी बाहर उड़कर नहीं जाएगी, बल्कि शेयर बाज़ार की लक्ष्मी आपकी तरफ उड़ती हुई चली जाएगी।
शेयर बाज़ार में निवेश या ट्रेडिंग को धन कमाने के शॉर्टकट के रूप में नहीं, लंबे समय के बिजनेस के रूप में देखिए। हम जो सूचनाएं या जानकारियां आपको देते हैं, उनका मूल्य तभी है जब आप अपने पास उपलब्ध जानकारी और डाटा से मिलाकर उन्हें अपना बना लेंगे। अच्छा विश्लेषक बनना कठिन है। लेकिन अच्छा ट्रेडर बनना उससे भी कठिन है। मन को संभालना, मौके का विश्लेषण करना और अपनी पूंजी का प्रबंधन करना। ये तीन पाये हैं उस ऊंचे स्टूल के, जिस पर ट्रेडर को बैठना होता है। एक भी पाये की गड़बड़ी आपको कभी भी गिरा सकती है।
इस हफ्ते बताई गई ट्रेडिंग टिप्स का क्या हाल रहा, इसकी समीक्षा आपको करनी है तो ज़रूर करें। मेरा मानना है कि कल जो हुआ, उस पर चहकने या अफसोस करने के बजाय हमें अपनी निगाह आनेवाले कल पर रखनी चाहिए। जो मौके चूक गए, उनके बजाय जो मौक सामने आनेवाले हैं, उन पर ध्यान लगाना चाहिए। इस बार तो यूं ही बिखरी-बिखरी बातें आपके सामने रखी हैं। अगली बार से ज्यादा व्यवस्थित तरीके से बाज़ार और ट्रेडिंग से जुड़ी बातें इस कॉलम में हर शनिवार को पेश करूंगा। और, यह कॉलम सब्सक्राइब करनेवालों के लिए ही नहीं, सबके लिए खुला रहेगा।