विज्ञान में अधिकतम उपलब्ध डेटा की थाह में पहुंचकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। उसी से अगला एक्शन या कदम तय होता है। लेकिन ट्रेडिंग विज्ञान ही नहीं, कला भी है। ग्लोबल हो चुका शेयर बाज़ार हर दिन इतना डेटा फेंकता है कि उनका विश्लेषण बेहद परिष्कृत सॉफ्टवेयर ही कर सकता है। इंसान तो डेटा के इस अम्बार में डूबता-उतराता ही रह जाएगा और अंततः कन्फ्यूज़ हो जाएगा। वैसे भी बाज़ार में पक्का कुछ नहीं,औरऔर भी

किसी भी देश में उसकी सरकार के बांडों को मूलधन और ब्याज अदायगी के मामले में सबसे सुरक्षित या दूसरे शब्दों में रिस्क-फ्री माना जाता हैं। अभी तक अपने यहां आम निवेशक के लिए इनमें निवेश करना बड़े झंझट का काम था। लेकिन अब रिजर्व बैंक यह झंझट खत्म करने जा रहा है। उसने ‘रिटेल डायरेक्ट’ सेवा शुरू करने की पेशकश की है। इसके अंतर्गत रिटेल निवेशक रिजर्व बैंक में गिल्ट एकाउंट खोलकर सीधे सरकारी बांड खरीदऔरऔर भी

जो वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग का सार नहीं समझते, वे कभी इसे अंदाज़ का कमाल, किस्मत का खेल या सही बिजनेस टीवी चैनल का प्रताप बता सकते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग शुद्ध रूप से दांव-पेंच का खेल है। आप औरों पर ज़रा-सा भी भारी पड़े तो बाज़ी आपके ही हाथ लगती है। यह अलग बात है कि लगातार स्टॉक्स पर काम करते-करते एक तरह का इन्ट्यूशन विकसित हो जाता है औरऔरऔर भी

वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग में अपनी धार खुद विकसित करनी होती है। हम किसी की नकल नहीं कर सकते। पद्धति व तरीका तो सबसे पास समान होता है। उन्नीस-बीस का फर्क। इसे हमें अपनी बुनावट के हिसाब से कसना, साधना पड़ता है। अंततः हमारे हुनर में निखार अभ्यास से आता है। यहां हर कोई अपनी ही गलतियों से सीखता हुआ आगे बढ़ता है। धीरे-धीरे एक दिन बाज़ार की प्रायिकताओं से खेलने और उनको साधने का विज्ञान सीखऔरऔर भी