सरकारी की मानें तो कृषि व संबद्ध क्षेत्र में पूंजी निवेश लगातार बढ़ रहा है। 2004-05 में देश के कृषि क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) 76,096 करोड़ रुपए था, जो उस साल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 13.5% था। 2010-11 में कृषि में जीसीएफ बढ़कर 1,42,254 करोड़ रुपए हो गया जो तत्कालीन जीडीपी का 20.1% था। कृषि निवेश में सिंचाई सुविधाओं से लेकर भूमि विकास, गैर-आवासीय इमारतों व फार्म हाउसों पर किया गया सरकारी वऔरऔर भी

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 29 फरवरी 2012 तक राज्यों को 6992.44 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई है, जबकि 31 मार्च 2012 को खत्म हो रहे मौजूदा वित्त वर्ष में इस योजना के लिए कुल बजट प्रावधान 7729.24 करोड़ रुपए का था। इस तरह 11 महीनों में लक्ष्य का 90.5 फीसदी ही हासिल किया जा सका है। 2007-08 से लेकर अब तक किसी भी साल बजट में तय रकम पूरी तरह नहीं जारी कीऔरऔर भी

भारत ने साल 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तंबाकू नियंत्रण फ्रेमवर्क कनवेंशन पर दस्तखत किए थे। इसकी धारा 17 व 18 के तहत केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह देश के किसानों को तंबाकू की खेती से निकालकर दूसरी फसलों की लाभप्रद वैकल्पिक खेती में लगाए। लेकिन करीब नौ साल बाद भी मामला स्वास्थ्य, कृषि और वाणिज्य मंत्रालय के बीच चिट्ठी-पत्री से आगे नहीं बढ़ पाया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारतऔरऔर भी

पिछले आठ वित्तीय सालों में से कोई ऐसा साल नहीं रहा है जब दिया गया कृषि ऋण निर्धारित लक्ष्य से कम रहा हो। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में भी अप्रैल-दिसंबर तक के नौ महीनों में 3,40,716 करोड़ रुपए का कृषि ऋण वितरित किया जा चुका है जो पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य का 71.73 फीसदी है। कृषि मंत्रालय का कहना है कि पिछले दो महीनों और वर्तमान महीने के ऋण वितरण का आंकड़ा अभी जुटाया जाना है।औरऔर भी

यूपीए सरकार भले ही ढिंढोरा पीटती रहे कि उसने कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रखी है, लेकिन बजट 2012-13 के दस्तावेजों से साफ है कि वह केंद्रीय आयोजना व्यय का महज 2.71 फीसदी हिस्सा कृषि व संबंधित गतिविधियों पर खर्च करती है। नए वित्त वर्ष 2012-13 में कुल केंद्रीय आयोजना व्यय 6,51,509 करोड़ रुपए का है। इसमें से 17,692.37 करोड़ रुपए ही कृषि व संबंद्ध क्रियाकलापों के लिए रखे गए हैं। इन क्रियाकलापों में फसलों से लेकरऔरऔर भी

वाणिज्य मंत्रालय ने सोमवार को विदेश व्यापार महानिदेशालय (जीडीएफटी) की अधिसूचना के जरिए कपास निर्यात पर तत्काल प्रभाव से जो बैन लगाया था, वह शुक्रवार शाम तक उठा लिया जाएगा। शुरुआती इजाजत 25 लाख गांठों के निर्यात की दी जाएगी। बुधवार को प्रधानमंत्री की हिदायत मिलने के बाद सरकार ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। शाम को वित्त मंत्रालय प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह अपनी बैठक में इस पर मोहर लगाने की औपचारिकताऔरऔर भी

कृषि मंत्री शरद पवार के बाद महाराष्ट्र व गुजरात के नेताओं के भी विरोध के चलते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कपास निर्यात पर रोक लगाने के फैसले की समीक्षा का आदेश दिया है। बता दें कि वाणिज्य मंत्रालय के निर्देश पर विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इसी सोमवार, 5 मार्च को एक अधिसूचना जारी तक देश से कपास के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन अब प्रधानमंत्री ने कहा है कि 9 मार्चऔरऔर भी

सरकार ने तत्काल प्रभाव से कपास निर्यात पर रोक लगा दी है। इस बाबत विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने सोमवार को एक अधिसूचना जारी कर दी जिसके तहत कपास के निर्यात पर अगले आदेश तक पाबंदी लगी रहेगी। इसकी खास वजह यह है कि घरेलू खपत से बची 84 लाख गांठों के निर्यात का लक्ष्य था, जबकि अब तक वास्तव में करीब 94 लाख गांठों का निर्यात किया जा चुका है। इस साल पिछले वर्ष के समानऔरऔर भी

माना जाता है कि किसानों को सरकार मुफ्त में बिजली देती है। लेकिन योजना आयोग की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों में बिजली की दरें सबसे ज्यादा कृषि व सिंचाई में और सबसे कम व्यावसायिक व औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ाई गई हैं। यही नहीं, पिछले पांच सालों में कई राज्यों में खेतिहर ग्राहकों के लिए बिजली की दरें दोगुनी से ज्यादा हो चुकी हैं। किसानों के लिए सबसे ज्यादा महंगी बिजली पंजाब में हुईऔरऔर भी

एक साथ कहीं सूखा तो कहीं बाढ़। इस स्थिति से निपटने के लिए एनडीए सरकार ने अक्टूबर 2002 में देश की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना पेश की थी। लेकिन विस्थापन व पर्यावरण की चिंता के साथ ही किसानों के संभावित विरोध और सरकार की ढिलाई के कारण 5.60 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना पर शायद अब काम शुरू हो जाए। देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यऔरऔर भी