वाणिज्य मंत्रालय ने सोमवार को विदेश व्यापार महानिदेशालय (जीडीएफटी) की अधिसूचना के जरिए कपास निर्यात पर तत्काल प्रभाव से जो बैन लगाया था, वह शुक्रवार शाम तक उठा लिया जाएगा। शुरुआती इजाजत 25 लाख गांठों के निर्यात की दी जाएगी। बुधवार को प्रधानमंत्री की हिदायत मिलने के बाद सरकार ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। शाम को वित्त मंत्रालय प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह अपनी बैठक में इस पर मोहर लगाने की औपचारिकता पूरी कर देगा।
मंत्रियों के समूह की बैठक में कृषि मंत्री शरद पवार और वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा भी शिरकत करेंगे। सरकार ने एक हफ्ते में ही फैसला वापस लेने की कवायत किसानों से लेकर व्यापारियों और भारत से सबसे ज्यादा कपास आयात करनेवाले देश चीन के विरोध के चलते की है।
बता दें कि भारत दुनिया में अमेरिका के बाद कपास का सबसे बड़ा निर्यातक है। बताया जा रहा है कि इस साल फरवरी अंत तक जब हमारा निर्यात 84 लाख गांठों (एक गांठ = 170 किलोग्राम) की तय मात्रा को पार करके 95 लाख गांठ तक पहुंच गया, तब वाणिज्य मंत्रालय ने 5 मार्च को अचानक आदेश जारी कर कपास निर्यात पर बैन लगा दिया। कहा गया कि तमाम निर्यातक खुद के ही नाम माल भेजकर विदेश में जमाखोरी कर रहे हैं और निर्यात न रोका गया तो देश की कपड़ा मिलों को कच्चे माल की तंगी हो सकती है।
लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार ने फौरन प्रतिक्रिया व्यक्त की कि इतने अहम फैसले में उनसे पूछा तक नहीं गया और इससे कपास के किसानों को भारी नुकसान होगा। फिर गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक में इस मुद्दे पर राजनीति गरमा गई। यहां तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराव चौहान ने भी किसानों के पक्ष से गुहार लगाई।
यह भी मालूम हो कि देश में सबसे ज्यादा कपास उत्पादन गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में होता है। साथ ही पंजाब के भी कई इलाकों में कपास की खेती होती है। इस समय बड़े किसान अपना अधिकांश उत्पादन बाजार में ला चुके हैं। लेकिन दो से पांच एकड़ तक के ज्यादातर छोटे किसान दाम बढ़ने की उम्मीद में अपनी फसल अपने पास रखे हुए हैं।