रिजर्व बैंक ने दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में हमारी अर्थव्यवस्था में 7.5% ही गिरावट आएगी, जबकि उसका पिछला अनुमान 9.5% की गिरावट का था। अगर ऐसा होता है कि इसका श्रेय भारतीय अवाम और उद्योग क्षेत्र को जाएगा, सरकार को नहीं। कारण, अब तक सरकार के सारे घोषित पैकेज ज़मीनी धरातल पर नाकाम और महज दिखावा साबित हुए हैं। जहां सरकार को जीडीपी बढ़ाने के लिए अपनाऔरऔर भी

देश में कोरोना शहरों ही नहीं, गांवों तक फैला है। एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि अब ग्रामीण जिले कोविड-19 के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं और नए संक्रमण में उनका हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। फिर भी चालू वित्त वर्ष 2020-21 की जून या पहली तिमाही में कृषि व संबंधित क्षेत्र के आर्थिक विकास की गति 3.4 प्रतिशत रही है, जबकि हमारी पूरी अर्थव्यवस्था इस दौरान 23.9 प्रतिशत घटऔरऔर भी

पिसान अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है आटा। वाकई, हमारी केंद्र सरकार ने दाल पर ऐसा रवैया अपना रखा है जिससे किसानों का पिसान निकल गया है। इससे यही लगता है कि या तो वह घनघोर किसान विरोधी है या खेती-किसानों के मामले में उसके कर्ताधर्ता भयंकर मूर्ख है। वैसे, शहरी लोग बड़े खुश हैं कि अरहर या तुअर की जो दाल साल भर पहले 180-200 रुपए किलो बिक रही थी, वह अब 60-70 रुपए किलोऔरऔर भी

रुपया डॉलर के मुकाबले इस साल 9.27% गिर चुका है। सोमवार को 61.21 की ऐतिहासिक तलहटी छूने के बाद 60.62 पर बंद हुआ। हर तरफ हाहाकार है कि रसातल में जाता रुपया अब संभाला नहीं जा सकता और वो अपने साथ अर्थव्यवस्था और शेयर बाज़ार को भी डुबा देगा। पर सच यह है कि उसकी कमज़ोरी ही एक दिन मजबूती का सबब बनेगी। आयात घटेंगे, निर्यात बढ़ेंगे, रुपया सबल होगा। इस चक्र को समझते, बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

इस साल देश से अगस्त महीने में 22.33 अरब डॉलर के सामान का निर्यात हुआ है। यह पिछले अगस्त में हुए 24.74 अरब डॉलर के निर्यात से 9.74 फीसदी कम है। हालांकि अगर रुपए में आंका जाए तो यह पिछले अगस्त के मुकाबले 10.76 फीसदी ज्यादा है। कारण, अगस्त 2011 में एक डॉलर का मूल्य 44 रुपए के आसपास था, जबकि इस साल अगस्त में यह 55.50 रुपए के आसपास रहा। इस तरह रुपया डॉलर के सापेक्षऔरऔर भी

आम भारतीय, खासकर किसान सोने को कभी अपने से जुदा नहीं करता। वह उसे लक्ष्मी का रूप मानता है। लेकिन अब फसल खराब होने और आय का दूसरा साधन न होने के कारण किसान कर्जौं को उतारने और खाद व बीज का दाम चुकाने के लिए सोना बेच रहे हैं। इस साल देश के कई भागों पर पड़े सूखे या कम बारिश से उनका ये हाल हुआ है। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन का अनुमान है कि किसानों केऔरऔर भी

जब आर्थिक विकास दर घटकर 5.3 फीसदी पर आ गई हो, अप्रैल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईआई) में महज 0.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई हो और निवेश जगत में हर तरफ मायूसी का आलम हो, तब अगर 23 में से 17 अर्थशास्त्री मान रहे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी कमी (8 फीसदी से 7.75 फीसदी) कर देगा तो उनका मानना कोई नाजायज नहीं था। लेकिनऔरऔर भी

छह साल तक चली आनाकानी और लंबी सरकारी प्रक्रिया के आखिरकार चीन ने भारत से बासमती चावल के आयात को मंजूरी दे दी। चीन में इस मामले से संबंद्ध शीर्ष संस्था ने बीते हफ्ते ही घोषणा कर दी कि वह भारत से बासमती चावल के आयात की इजाजत दे रहा है। बता दें कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल बाजार है। वह अभी तक बासमती चावल पाकिस्तान से आयात करता रहा है। साथ ही थाईलैंड सेऔरऔर भी

देश में सोने-चांदी का आयात बीते वित्त वर्ष (अप्रैल 2011 से मार्च 2012) के दौरान 44.4 फीसदी बढ़कर 61.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह हमारे कुल 184.9 अरब डॉलर के व्यापार घाटे के एक-तिहाई से ज्यादा, 33.26 फीसदी है। वित्त वर्ष 2011-12 में सबसे ज्यादा आयात पेट्रोलियम तेलों का बढ़ा है। यह 46.9 फीसदी बढ़कर 155.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया। हालांकि इससे बचना मुश्किल है क्योंकि देश में पेट्रोलियम तेलों की जरूरत का लगभग 80औरऔर भी

दुनिया की हथियार लॉबी बहुत पहले ही बेनकाब हो चुकी है। साफ हो चुका है कि अमेरिका से लेकर यूरोप तक में हथियारों के धंधे के लिए क्या-क्या करतब किए जाते हैं। लेकिन अब भारत में भी देशभक्ति, त्याग और बलिदान के पीछे सेना में चल रहा गोरखधंधा उजागर होता जा रहा है। और, इसका श्रेय जाता है दो महीने बाद 31 मई को रिटायर हो रहे थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह को। जनरल वी केऔरऔर भी