कोरोना से ज्यादा गहरे ज़ख्म दिए गलत लॉकडाउन ने

देश में कोरोना शहरों ही नहीं, गांवों तक फैला है। एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि अब ग्रामीण जिले कोविड-19 के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं और नए संक्रमण में उनका हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। फिर भी चालू वित्त वर्ष 2020-21 की जून या पहली तिमाही में कृषि व संबंधित क्षेत्र के आर्थिक विकास की गति 3.4 प्रतिशत रही है, जबकि हमारी पूरी अर्थव्यवस्था इस दौरान 23.9 प्रतिशत घट गई है।

अगर कृषि को हटा दें तो पहली तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था में सकल मूल्य सृजन (जीवीए) में 27 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आ गई है। मालूम हो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में से अगर कुल दी गई सब्सिडी को जोड़कर टैक्स संग्रह घटा दें तो जीवीए की रकम निकल आती है। मसलन, जून 2020 की तिमाही में देश का जीडीपी 26.90 लाख करोड़ रुपए रहा है, जबकि जीवीए 25.53 लाख करोड़ रुपए रहा है। इसका मतलब है कि सरकार को अप्रैल-जून 2020 के तीन महीनों में सब्सिडी देने के बाद शुद्ध रूप से बतौर टैक्स 1.37 लाख करोड़ रुपए मिले हैं।

नोट करने की बात है कि देश में 25 मार्च से कोरोना संक्रमण रोकने के नाम पर जो लॉकडाउन लागू हुआ, कृषि क्षेत्र उससे बाहर था तो 3.4 प्रतिशत बढ़ गया। वहीं, अर्थव्यवस्था के जो क्षेत्र लॉकडाउन में बंद किए गए, उनमें से कंस्ट्रक्शन में 50.3 प्रतिशत, व्यापार, होटल व अन्य सेवाओं में 47 प्रतिशत, मैन्यूफैक्चरिंग में 39.3 प्रतिशत और खनन में 23.3 प्रतिशत कमी आई है। अलग-अलग उद्योगों की बात करें तो स्टील की खपत में 56.8 प्रतिशत, व्यावसायिक वाहनों की बिक्री में 84.8 प्रतिशत, सीमेंट के उत्पादन में 38.3 प्रतिशत और कोयले के उत्पादन में 15 प्रतिशत कमी आई है। बड़ी साफ-सी बात है कि अगर केंद्र सरकार ने पैर में चोट लगने पर पूरे शरीर में पट्टी बांधने का काम नहीं किया होता और लॉकडाउन का चुनिंदा व समझदारी भरा वैज्ञानिक तरीका अपनाया होता तो अर्थव्यवस्था को इतनी तगड़ी मार से बचाया जा सकता था।

नोट करने की बात है कि देश में 1996-97 में जब से अर्थव्यवस्था के विकास का तिमाही अनुमान देने का सिलसिला शुरू हुआ है, तब से पहली बार डीजीपी बढ़ने के बजाय घट गया है। जानकारों का यह भी कहना है कि आर्थिक आंकड़े जुटाने का आधार स्वीकृत स्रोतों के बजाय इस बार जिस तरह से जीएसटी संग्रह और व्यापार व उद्योग संस्थाओं से बातचीत को बनाया गया है, उसके चलते जीडीपी के असल आंकड़े काफी बदतर हो सकते हैं। यह भी हकीकत है कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) कॉरपोरेट क्षेत्र के आंकड़ों तक ही पहुंच पाता है, जबकि हमारी अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र का योगदान 50.6 प्रतिशत का है। लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है जो देश में रोज़गार में लगे 45.80 करोड़ लोगों में 43.5 करोड़ यानी 95 प्रतिशत लोगों को रोज़गार देता है। मैन्यूफैक्चरिग से लेकर बुनियादी उद्योगों और असंगठित क्षेत्र पर लगी मार को शामिल कर दें तो हम देश में लॉकडाउन के चलते उपजी बेरोज़गारी की भयावह स्थिति का अंदाज़ा लगा सकते हैं।

अब देखते हैं कि मोदी सरकार द्वारा ताली व थाली बजवाने से लेकर मूर्खतापूर्ण तरीके से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन करने से देश की अर्थव्यवस्था या जीडीपी के विकास पर जो सांघातिक हमला किया गया है, उससे कैसे उबरा जा सकता है। समझ लें कि किसी भी अर्थव्यवस्था में माल व सेवाओं की कुल मांग को जीडीपी कहा जाता है। इसके चार अहम कारक होते हैं। पहला है आप और हमारे जैसे निजी लोगों की खपत। अभी तक इसका योगदान हमारी अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा 56.4 प्रतिशत रहता आया है। जून 2020 की तिमाही में साल भर पहले की तुलना में इसमें 5.32 लाख करोड़ रुपए या 27 प्रतिशत की कमी आई है। जिस तरह से इधर करोड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं, उसे देखते हुए यह कारक जीडीपी को हाल-फिलहाल बढा सकता है, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती।

जीडीपी को बढ़ाने का दूसरा बड़ा कारक है निजी क्षेत्र के बिजनेस द्वारा पैदा की गई मांग। इसका योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था य जीडीपी में 32 प्रतिशत रहता आया है। साल भर पहले की तुलना में जून 2020 की तिमाही में निजी बिजनेस की मांग 5.33 लाख करोड़ रुपए या 47.1 प्रतिशत घट गई है। जिस तरह आम खपत घटी है और उद्योग-धंधे पहले से ही बमुश्किल एक-तिहाई क्षमता पर उत्पादन कर रहे हैं और बहुत-सारी छोटी औद्योगिक इकाइयां बंद हो गई हैं, उसे देखते हुए इस कारक से भी कोई आशावादी अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

अर्थव्यवस्था को गति देने का तीसरा अहम कारक या इंजिन है देश का विदेशी व्यापार। हालांकि अर्थव्यवस्था में इसका योगदान मात्र 0.6 प्रतिशत का है। जीडीपी निकालने के लिए हम निजी खपत और बिजनेस की मांग में शुद्ध निर्यात को जोड़ देते हैं। जून 2020 की तिमाही में हमारा निर्यात आयात से 75,675 करोड़ रुपए ज्यादा था और साल भर पहले की तुलना में शुद्ध निर्यात 1.93 लाख करोड़ रुपए या 165 प्रतिशत बढ़ गया है। लेकिन इस पर पीयूष गोयल जैसे चारण-भांट धूर्त व मूर्खाधिराज मंत्री ही ताली पीट सकते हैं। असल में घटते निर्यात की तुलना आयात का ज्यादा घट जाना और इस तरह व्यापार अधिशेष हो जाना दिखाता है कि देश में आर्थिक गतिविधियां सिकुड़ गई हैं और इस पर ताली बजाने के बजाय दुखी हो जाना चाहिए। दुनिया भर में अभी आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है। ऐसे में शुद्ध निर्यात का कारक भी हमारे जीडीपी को गति नहीं दे सकता है।

अब बचता है आखिरी व चौथा अहम कारक। यह कारक है सरकार की तरफ से पैदा की गई माल व सेवाओं की मांग। देश के जीडीपी में इसका योगदान लगभग 11 प्रतिशत चल रहा है। सरकार ने जून 2020 की तिमाही में साल भर पहले की तुलना में 68,387 करोड़ रुपए या 16.4 प्रतिशत ज्यादा खर्च किया है। जैसा कि हम पहले गणना कर चुके हैं कि जून 2020 की तिमाही में सरकार को सब्सिडी देने के बाद शुद्ध टैक्स के रूप में (जीडीपी व जीवीए का अंतर) 1.37 लाख करोड़ रुपए मिले है। इसमें से उसने 68,387 करोड़ या 49.92 प्रतिशत ही माल व सेवाओं की मांग के लिए खर्च किए हैं।

अगर अर्थव्यवस्था के चारों कारकों को मिला दें तो जून 2020 की तिमाही में हमारा जीडीपी 26,89,556 करोड़ रुपए रहा है। यह पिछले साल की समान अवधि के 35,35,267 करोड़ रुपए से 8,45,711 करोड़ रुपए या 23.9 प्रतिशत कम है। इसमें जीडीपी में 88 प्रतिशत से ज्यादा योगदान करनेवाले निजी घरेलू खपत व बिजनेस के निवेश में 10.65 लाख करोड़ रुपए की कमी आई है। इसकी भरपाई सरकारी खर्च में की गई 68,387 रुपए की वृद्धि कैसे कर सकती है? यह तो घरेलू मांग व कारोबारी निवेश में आई कमी का 6.42 प्रतिशत ही बनती है! जाहिर है कि देश की अर्थव्यवस्था को गलत लॉकडाउन से सरकार ने जो नुकसान पहुंचाया है, उसका प्रायश्चित या भरपाई सरकार को ही अपना खर्च बढ़ाकर करना होगा। नहीं तो हालात बिगड़ते-बिगड़ते विकराल होते चले जाएंगे।

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों को आर्थिक त्रासदी बताया है और कहा है कि देश मोदी सरकार के निर्लज्ज व बेपरवाह रवैये की भारी कीमत चुका रहा है। एक्सिस कैपिटल के मुख्य अर्थशास्त्री पृथ्वीराज श्रीनिवास का कहना है कि जून तिमाही में जीडीपी विकास के आंकड़ों ने पुष्टि कर दी है कि हमारा राष्ट्रीय लॉकडाउन कितना सख्त था और बड़े देशों के बीच भारत का जीडीपी सबसे ज्यादा घटा है। एडेलवाइस सिक्यूरिटीज़ की मुख्य अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा कहती हैं कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में आई 23.9 प्रतिशत की कमी बाज़ार के अनुमान से कहीं ज्यादा गहरी है। अब सरकार को खर्च व निवेश बढ़ाकर ही इसकी भरपाई तरनी होगी। आईबीएम के अर्थशास्त्री शशांक मेंदीरत्ता का अनुमान है कि पूरे चालू वित्त वर्ष 2020-21 भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत की भाारी कमी आ सकती है।

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