अमेरिकी बाजार कल गिरे तो सही, लेकिन आखिरी 90 मिनट की ट्रेडिंग में फिर सुधर गए। अमेरिकी बाजार में ट्रेड करनेवाले कुछ फंडों का कहना है कि इस गिरावट की वजह यूरो संकट थी, न कि यह शिकायत कि 447 अरब डॉलर का पैकेज रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने के लिए काफी नहीं है। यह पैकेज तो अभी तक महज घोषणा है और इसका असर वास्तविक खर्च के बाद ही महसूस किया जा सकता है। इसऔरऔर भी

यूरो संकट और इस हफ्ते शुक्रवार, 16 सितंबर को रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने की आशंका को लेकर हमारा बाजार ज्यादा ही बिदक गया। सेंसेक्स में 2.17 फीसदी और निफ्टी में 2.23 फीसदी की तीखी गिरावट दर्ज की गई। ऊपर से जुलाई 2011 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में महज 3.3 फीसदी की वृद्धि किसी का भी दिल बैठा सकती है। यह साफ-साफ अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने का संकेत है। इस सूरतेहाल में मुद्रास्फीति को संभालनेऔरऔर भी

बराक ओबामा ने अमेरिका में नौकरियों के नए अवसरों को प्रोत्साहित करने के लिए 447 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा कर दी। वहां अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं तो ओबामा को ऐसा कुछ करना ही था। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत में थोड़ा और सुधार आएगा। यह अलग बात है कि इस पैकेज की राह में आनेवाली राजनीतिक अड़चनों की सोचकर अमेरिका व यूरोप के बाजारों ने इस पर तल्ख नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई है। अपनेऔरऔर भी

मंदड़ियों के खेमे व सोच में कुछ ऐसी तब्दीलियां हुई हैं जिनके चलते 5000 को अब समर्थन का मजबूत स्तर मान लिया है। यानी, माना जा रहा है कि निफ्टी के अब इससे नीचे जाने की गुंजाइश बेहद कम है। फिर भी अगर मंदड़िए और एफआईआई मिलकर तगड़ी बिकवाली का नया दौर शुरू करते हैं तो बाजार 5000 पर भी नहीं रुकेगा और सीधे टूटकर 4700 तक चला जाएगा। ऐसा होगा या नहीं, यह तो हमें केवलऔरऔर भी

हमारे शेयर बाजार पर लगता है कि धमाकों का कोई असर ही नहीं होता। दिल्ली हाईकोर्ट के सामने सुबह करीब 10.15 बजे बम फटा। लेकिन निफ्टी 11 बजे के बाद निर्णायक रूप से 5100 के पार चला गया। बाजार में भारी मात्रा में शॉर्ट सौदे हुए पड़े हैं। गिरावट की आशंका और आनेवाली कुछ नकारात्मक घटनाएं शॉर्ट सेलिंग करनेवालों को अपनी पोजिशन काटने से रोक रही हैं। हालांकि रिटेल निवेशक इससे बेअसर हैं क्योंकि डेरिवेटिव सेगमेंट मेंऔरऔर भी

बाजार ने कल साबित करने की कोशिश की कि अमेरिकी बाजार से हमारा कोई वास्ता नहीं रह गया है, जबकि ग्लोबल होती जा रही दुनिया का सच यह नहीं है। दरअसल बाजार के महारथियों ने कुछ एफआईआई की मदद से चुनिंदा स्टॉक्स को खरीदकर बनावटी माहौल बनाने की कोशिश की थी। खैर, कल जो हुआ, सो हुआ। आज दोपहर करीब डेढ़ बजे के बाद बाजार ने बढ़त पकड़ ली तो कारोबार के अंत तक सेंसेक्स 0.89% बढ़करऔरऔर भी

महीने का आखिरी गुरुवार। डेरिवेटिव सेगमेंट में सेटलमेंट का आखिरी दिन। निफ्टी का 4820 या 5000 होना इस बात पर निर्भर था कि बाजार चलानेवालों ने ऑप्शंस में किस तरफ का कॉल या पुट प्रीमियम पकड़ा है। जैसा पहले सामने आ चुका है कि 4600 पर पुट सौदे की बड़ी पोजिशन बन चुकी थी तो निश्चित रूप से 4600 की गुंजाइश खत्म हो गई थी। दूसरी तरफ ऐसा लगता है कि उन्होंने 5000 और 5100 की कॉलऔरऔर भी

आखिरकार भारत वैश्विक झटके से धीरे-धीरे उबर रहा है। हालांकि हमारे मंदड़िए बाजार को तोड़कर नीचे से नीचे ले जाने की हरचंद कोशिश में जुटे हैं। वे इसमें कामयाब नहीं हो पाएंगे और उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। यह अलग बात है कि ऑपरेटरों व एफआईआई का खेल रह-रहकर अपना प्रताप दिखाता रहता है। बाजार के संचालकों के लिए ऑप्शंस में कॉल व पुट राइटिंग के ऊंचे और नीचे स्तर से फायदा कमाकर घर ले जानेऔरऔर भी

बाजार का जो भी खेल है, यहां अपग्रेड और डाउनग्रेड गलत वक्त पर होते हैं। हमने एसकेएस माइक्रो फाइनेंस को 800 रुपए पर डाउगग्रेड किया था और अब देखिए उसका हश्र क्या है। हमने एसबीआई को 3500 रुपए पर डाउनग्रेड किया था, बाजार अब कर रहा है। हमने मुथूत फाइनेंस के बारे में नकारात्मक राय रखी और लिस्टिंग पर उसका हाल-बेहाल सामने आ गया. है। हमें यकीन है कि यह स्टॉक घटकर 123 रुपए तक आ जाएगाऔरऔर भी

कच्चे तेल का हल्ला हमारे लिए बेमतलब है। मध्य-पूर्व में राजनीतिक संकट उभरने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं। लेकिन इसी दौरान निफ्टी 5400 से 5900 और सेंसेक्स 18,000 से 19,750 तक बढ़ चुका है। मतलब यह कि फिलहाल भारतीय बाजार को गिराने या उठाने के कारकों में तेल का उतना हाथ नहीं है। एक सोच कहती है कि तेल की हालत अर्थव्यवस्था में पलीता लगा देगी और इसलिएऔरऔर भी