चाहिए तो सात, नहीं तो एक ही काफी

अमेरिकी बाजार कल गिरे तो सही, लेकिन आखिरी 90 मिनट की ट्रेडिंग में फिर सुधर गए। अमेरिकी बाजार में ट्रेड करनेवाले कुछ फंडों का कहना है कि इस गिरावट की वजह यूरो संकट थी, न कि यह शिकायत कि 447 अरब डॉलर का पैकेज रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने के लिए काफी नहीं है। यह पैकेज तो अभी तक महज घोषणा है और इसका असर वास्तविक खर्च के बाद ही महसूस किया जा सकता है। इस खर्च का इंतजाम अमेरिकी सरकार अपने बांडों को बेचकर करेगी क्योंकि उसके पास कोई दूसरा चारा नहीं है।

भारतीय बाजार की बात करें तो दोपहर एक बजे तक ठीकठाक बढ़त लेने के बाद उसने नीचे का रुख कर लिया। पीछे बताई जा रही हैं वहीं दुनिया भर की चिंताएं। लेकिन बदलते संतुलन की तरफ कोई नहीं देख रहा। यूरोप अब यूरो बांडों में निवेश की खातिर मदद के लिए चीन की तरफ देख रहा है। यह भारत के लिए अच्छा है क्योंकि विश्व अर्थव्यवस्था का केंद्र अब धीरे-धीरे एशिया का रुख करने लगा है। लेकिन राजनीतिक जकड़बंदी की वजह से हम इस मौके का वाजिब फायदा नहीं उठा पाए हैं, जबकि चीन ऐसा करने में कामयाब रहा है। चीन महंगाई को फिर से नाथकर 6 फीसदी पर ले आया, जबकि भारत में यह नीचे आने के बजाय और बढ़ेगी। यहां प्राइवेट टैक्सियों ने किराया 10 फीसदी बढ़ा दिया है। इसके बाद सरकारी तंत्र भी किराया बढ़ाएगा। दूध की कीमतें आसमान छू रही हैं तो सारे दुग्ध उत्पाद भी 10 फीसदी और महंगे होने जा रहे हैं। कितनी अजीब बात है कि ब्याज दरें बार-बार बढ़ाई जाती रही हैं, फिर भी मुद्रास्फीति पर कोई लगाम नहीं लग पाई है।

हम मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास, दोनों ही मोर्चों पर हार रहे हैं, जबकि चीन दोनों ही मोर्चों पर बाजी मारे हुए है। हमें खाद्य मुद्रास्फीति को उसी तरह जिंसों की सप्लाई बढ़ाकर थामने की जरूरत है जैसा हम मुद्रा की विनिमय दरों के मामले में करते हैं। तभी जाकर हमें महंगाई को रोकने में थोड़ी कामयाबी मिल पाएगी। हालांकि सरकार के चाहने पर भी जिंसों के दाम इतनी आसानी से नीचे नहीं आनेवाले हैं क्योंकि फिजिकल सेटलमेंट के जरिए सटोरियों ने इन पर पूरा कंट्रोल कर रखा है। सोने और चांदी पर सटोरियों की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ी है और अगले कुछ हफ्तों या महीनों में इनमें सीधी गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। बाकी किसी भी जिंस में सटोरियों की गिरफ्त में ढील आती नहीं दिख रही।

उद्योगों में सीमेंट पहला वो सेक्टर है जो संकट से बाहर निकला है। उत्तर भारत में सीमेंट के दाम प्रति बोरी 10 रुपए बढ़ गए हैं। इसका मतलब कि क्षमता में आया बेमेलपन अब सुलट रहा है और अर्थव्यवस्था का एक स्तंभ वापस अपनी जगह पकड़ने लगा है। बैंकिंग, ऑटो व स्टील तीन अन्य स्तंभ हैं। स्टील सेक्टर सुधार की राह पकड़ चुका है। बैंकिंग व ऑटो सेक्टर ब्याज दरों की स्थिति के मुताबिक बर्ताव करेंगे। कुल मिलाकर आसार यही है कि जल्दी ही अर्थव्यवस्था के ये चारों स्तंभ सामान्य स्थिति में आ जाएंगे।

इसी के साथ अर्थव्यवस्था एक दुष्चक्र से बाहर निकल आएगी और बहुत जल्द ही लौट आएगा शेयर बाजार में तेजी का दौर। इसमें एक महीने भी लग सकते हैं या तीन महीने में। लेकिन इसे होने से कोई नहीं रोक सकता। इस भरोसे के आधार पर आप एसीसी, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, एसबीआई, रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल), एडुकॉम्प सोल्यूशंस व डीएलएफ में डिलीवरी आधारित खरीद कर सकते हैं और फिर तबीयत से छुट्टी पर जा सकते हैं। अगर इस सात चुनिंदा स्टॉक्स में भी आप कोई एक स्टॉक खरीदना चाहते हैं तो टाटा स्टील खरीद लीजिए और एक साल की छुट्टी पर चले जाइए।

मंदड़ियों को ‘सेनोरिटा’ के साथ यूरोपीय डांस करने दीजिए। हम तो भारतीय शास्त्रीय संगीत की धुन पर धूम मचाएंगे।

एक इंसान में भी साहस हो तो वह अकेला बहुतों पर भारी पड़ जाता है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का पेड-कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *