बैंक व कॉरपोरेट बचे तो डूब गया अवाम
शेखचिल्ली के बड़े-बड़े दावे। सारे के सारे खोखले, ज़मीन पर फिसड्डी। चाहे वो राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला हो या अर्थव्यवस्था का। मोदी सरकार की 10-11 साल की कुल जमापूंजी यही है। वो समस्याएं सुलझाती नहीं। नई समस्याएं ज़रूर पैदा कर देती है। पिछले दशक में अर्थव्यवस्था में दोहरी बैलेंसशीट की समस्या थी। एक तरफ कॉरपोरेट क्षेत्र पर ऋण का बोझ ज्यादा ही बढ़ गया था। दूसरी तरफ बैंकों के एनपीए या डूबत ऋण काफी बढ़ गए थे।औरऔर भी