यह कहीं इधर-उधर की नहीं, बल्कि खुद भारतीय रिजर्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट में जताई गई चिंता है। भारतीय परिवारों पर चढ़ा ऋण जून 2021 में जीडीपी का 36.6% हुआ करता था। यह दिसंबर 2023 तक 40.2%, मार्च 2024 तक 41% और जून 2024 तक 42.9% पर पहुंच गया। 2015 से 2019 तक हमारे घरों पर चढ़ा ऋण औसतन जीडीपी का 33% हुआ करता था। इससे भी पहले चले जाएं तो वित्त वर्ष 2011-12 के अंत में यह जीडीपी का मात्र 15.9% रहा था। घरों पर बढ़ते कर्ज, ब्याज की बढ़ती देनदारी और ठहरी या घटती आमदनी ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है। मुश्किल यह है कि बढ़ते कर्ज के इस दौर में लोगों की वित्तीय आस्तियां घटती जा रही हैं। जून 2021 में भारतीय घरों की वित्तीय आस्तियां जीडीपी की 110.4% हुआ करती थी। ये मार्च 2024 तक घटकर जीडीपी की 108.3% हो गईं। ऋण का बढ़ना और आस्तियों का घटना साफ कर देता है कि लोगबाग खपत को पूरा करने के लिए कर्ज ले रहे हैं। उनका कर्ज घर बनाने, वाहन खरीदने या शिक्षा में निवेश के लिए नहीं, बल्कि उपभोग के लिए है। साल में पांच लाख से कम कमा रहे लोगों की हालत ज्यादा खराब है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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