भारत की अर्थव्यवस्था या जीडीपी आंकड़ों में भले ही बढ़ रहा हो। लेकिन आम भारतीय आज बरबादी की कगार पर खड़ा है। हॉटमेल के संस्थापक और नामी उद्यमी सबीर भाटिया तो कहते हैं कि भारत में जीडीपी ही गलत तरीके से निकाला जाता है। उनका कहना है कि दुनिया में अमेरिका जैसे तमाम देशों में जीडीपी की गणना सीधे-सीधे इस आधार पर की जाती है कि वहां के लोगों ने कितना काम किया और उस काम का मूल्य क्या है। हम उनके दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं कर सकते। लेकिन इतना तो है कि अमेरिका में मौद्रिक नीति बनाते वक्त रोज़गार की स्थिति का विशेष ध्यान रखा जाता है। वहां हर महीने की पांच तारीख से पहले ठीक पिछले महीने तक रोज़गार व बेरोज़गारी का पूरा डेटा आ जाता है। अपने यहां रोज़गार पर ‘पता न पावैं सीताराम’ की स्थिति है। सरकार की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट इतनी देर से आती है कि समय का पहिया काफी आगे बढ़ चुका होता है। जीडीपी के आंकड़ों का देश के आम जन-जीवन से कोई मेल नहीं है, यह सच अब दिन के उजाले की तरह साफ होता जा रहा है। 81.35 करोड़ लोग पांच किलो मुफ्त अनाज पर निर्भर। दस करोड़ किसान पीएम-किसान निधि के भरोसे। मध्यवर्ग की हालत खस्ता होती जा रही है। इतनी ज्यादा कि वो स्वास्थ्य बीमा तक का पूरा प्रीमियम नहीं दे पा रहा। अब सोमवार का व्योम…
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