उधार लेना भारतीय संस्कृति, समाज व परम्परा का हिस्सा कभी नहीं रहा, जबकि पश्चिमी देशों में ‘अभी खरीदो, बाद में चुकाओ’ आम जीवन का हिस्सा बन चुका है। इसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि भारत में भावी आय का कोई भरोसा या गारंटी नहीं है, जबकि पश्चिमी देशों में नौकरी गई, तब भी कई महीनों तक ठीकठाक बेरोज़गारी भत्ता मिलता रहता है। लेकिन विडम्बना यह है कि भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े घोषित रक्षक दल भाजपा के राज में आम भारतीय कर्जखोर होते जा रहे हैं। रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में क्रेडिट कार्डो की संख्या 2019 से 2024 तक के पांच सालों में लगभग दोगुनी (5.53 करोड़ से 10.80 करोड़) हो चुकी है। दिसंबर 2020 में क्रेडिट कार्ड के बकाया ऋण ₹1,40,522 करोड़ थे। ये दिसंबर 2024 तक 108.11% वृदधि के साथ दोगुने से ज्यादा ₹2,92,447 हो गए। इसी दौरान इनका एनपीए (90 दिन से ज्यादा न किया गया भुगतान) ₹1108 करोड़ से बढ़कर करीब-करीब छह गुना ₹6742 करोड़ हो गया। चिंता की बात यह है कि पिछले 12 महीनों में क्रेडिट कार्ड का डिफॉल्ट 28.42% बढ़ा है। बैंकों के लिए भी यह परेशानी का सबब है कि क्रेडिट कार्ड सेगमेंट का एनपीए इस दौरान 2.06% से बढ़कर 2.31% हो गया है। अब बुधवार की बुद्धि…
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