आपने दो लाख का मेडिक्लेम लिया है तो जरूरी नहीं कि अस्पताल में भर्ती होकर कराए गए इलाज का पूरा क्लेम आपको मिल जाए। कवर में हर खर्च की सीमा है। जैसे, आप कवर का अधिकतम 1% ही अस्पताल के कमरे पर खर्च कर सकते हैं। कमरे का किराया अगर 3000 रुपए/दिन है तो आपको 2000 रुपए ही मिलेंगे। यही नहीं, ऐसा होने पर आपका सारा कवर इसी अनुपात में घट जाएगा। अगर आपके इलाज पर कुलऔरऔर भी

एक जानी-मानी जीवन बीमा कंपनी अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के विज्ञापन में लोगों से सवाल पूछती है कि क्या आपका हेल्थ इंश्योरेंस स्वस्थ है? अगर यह सवाल आपसे पूछा जाए तो शायद आप अपने कंधे उचका कर जवाब देंगे – मुझे नहीं मालूम। पर आपका जवाब सही नहीं है। यह हमारी राय में लापरवाही से भरा विचार है। अगर आप सेहत संबंधी किसी समस्या के आ जाने पर आर्थिक चिंताओं से मुक्ति पाना चाहते हैं तो जैसेऔरऔर भी

अगर आप मेडिक्लेम पॉलिसी देनेवाली बीमा कंपनी की सेवाओं से संतुष्ट नहीं हैं तो जल्दी ही आप बीमा कंपनी बदल सकते हैं और उतने ही प्रीमियम पर नई कंपनी से मेडिक्लेम प़ॉलिसी ले सकते हैं। मोटर बीमा पॉलिसी पर भी यही नियम लागू होगा। यह किसी ऐरे-गैरे का नहीं, बल्कि खुद बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के चेयरमैन जे हरिनारायण का कहना है। वे मंगलवार को मुंबई में उद्योग संगठन सीआईआई द्वारा आयोजित बीमा सम्मेलन में बोलऔरऔर भी

रमेश की व्यथा-कथा जारी है। कितने अफसोस की बात है कि उसने मेडिक्लेम करा रखा था जिसमें कैशलेस हास्पिटलाइजेशन की सुविधा थी। फिर भी बीमारी का खर्च उसने अपनी जेब से भरा। इसके बाद भी टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) उसके क्लेम दिलाने में आनाकानी करता रहा। टीपीए बीमा कंपनी और बीमित के बीच का दलाल होता है जनाब। और, दलालों की हरकत और फितरत तो आप जानते ही होंगे। तो, अब कहानी आगे की… रमेश ने हफ्तेऔरऔर भी

रमेश ने मेडिक्लेम ले लिया और खुद व अपने परिवार को सुरक्षित महसूस करने लगा। टीपीए क्या होता है, कौन-सा टीपीए होना चाहिए? यह सब न उनको उनके बीमा एजेंट ने बताया, न उन्होंने जानने की कोशिश की। उन्हें लगा कि व्यक्तिगत मेडिक्लेम से अच्छा है फेमिली फ़्लोटर मेडिक्लेम पॉलिसी लेना, सो ले लिया। रमेश का सोचना बिल्कुल सही है कि फेमिली फ़्लोटर मेडिक्लेम पॉलिसी अच्छी है क्योंकि उस बीमा राशि का उपयोग परिवार का कोई भीऔरऔर भी

यूं तो हाइपरटेंशन अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन पॉलिसीधारक इसके इलाज पर जो भी खर्च करता है, उसका क्लेम वह बीमा कंपनी से ले सकता है। यह फैसला है दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग का। जस्टिस बी ए जैदी की अध्यक्षता वाले आयोग ने कहा है, “हाइपरटेंशन बीमारी नहीं, बल्कि मानव जीवन की सामान्य गड़बड़ी है जिसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। यह ऐसा कोई मर्ज नहीं है जिसके इलाज के लिए अस्पतालऔरऔर भी

मुंबई की एक बीपीओ कंपनी में कार्यरत 52 वर्षीय अंकुश सावंत के पास हालांकि अपने नियोक्ता की ग्रुप मेडीक्लेम पॉलिसी है। पिछले दिनों उन्हें लगा कि हेल्थकेयर के बढ़ती खर्च की वजह से आज के जमाने में परिवार के हर सदस्य के पास पर्याप्त हेल्थ इंश्योरेंस कवर भी होना चाहिए। लेकिन बीमा एजेंट ने जब उन्हें प्रीमियम बताया तो उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। सावंत कहते हैं कि अगर यह हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी मैं 30औरऔर भी

यह किसी आम आदमी का नहीं, बल्कि हिंदुस्तान टाइम्स समूह के बिजनेस अखबार मिंट के डिप्टी एडिटर स्तर के खास आदमी का मामला है। उनका नाम क्या है, इसे जानने का कोई फायदा नहीं। लेकिन उनके साथ घटा वाकया जानने से बीमा उद्योग का ऐसा व्यावहारिक सच हमारे सामने आता है जो साबित करता है कि इस उद्योग में निहित स्वार्थों का ऐसा नेक्सस बना हुआ है जिसका मकसद बीमा उद्योग या कंपनी का विकास नहीं, बल्किऔरऔर भी