अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव अपनी अघोषित जिद पर अड़े हुए थे कि जब तक केंद्र सरकार राजकोषीय मोर्चे पर कुछ नहीं करती या दूसरे शब्दों में अपने खजाने का बंदोबस्त दुरुस्त नहीं करती, तब तक वे मौद्रिक मोर्चे पर ढील नहीं देंगे। यही वजह है कि पिछले दो सालों में 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में इसमें एकबारगी आधा फीसदी कमी करके फिर हाथ बांधऔरऔर भी

दिसंबर के दूसरे पखवाड़े (16 दिसंबर से 30 दिसंबर) के दौरान देश में आयातित कच्चे तेल की लागत करीब एक फीसदी बढ़ चुकी है। तेल कंपनियों की अंडर-रिकवरी 388 करोड़ रुपए प्रतिदिन हो चुकी है। लेकिन सरकार राजनीतिक वजहों से इन कंपनियों को पेट्रोल के मूल्य तक बढ़ाने की इजाजत नहीं दे रही है। वैसे तो पेट्रोल के मूल्य से सरकारी नियंत्रण जून 2010 से ही हटाया जा चुका है। लेकिन सबसे बड़ी शेयरधारक होने के नातेऔरऔर भी

सरकार ने पेट्रोल से लेकर डीजल, रसोई गैस और केरोसिन के दामों पर छाई धुंध को साफ करने के लिए ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध करानी शुरू कर दी है। सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियां – इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम व भारत पेट्रोलियम ने पेट्रोल कीमतों के बारे में विस्तृत जानकारी पेट्रोलियम मंत्रालय संबद्ध पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की वेबसाइट पर डालनी शुरू कर दी है। यहां कच्चे के आयातित मूल्य से लेकर अंडर-रिकवरी व सरकार की तरफ सेऔरऔर भी

पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने संकेत दिया है कि सरकार तुरंत डीजल या रसोई गैस के दाम नहीं बढ़ाएगी, भले ही रुपए में कमजोरी से आयातित कच्चे तेल की लागत बढ़ रही है। उन्होंने गुरुवार को संसद भवन में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘रुपए में कमजोरी ने स्वाभाविक रूप से अप्रत्याशित दिक्कत पैदा कर दी है। इससे वित्त वर्ष 2011-12 में तेल कंपनियों की अंडर रिकवरी 1.32 लाख करोड़ रुपए रहेगी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसऔरऔर भी

केंद्र सरकार भले ही पेट्रोल की तरह सारे पेट्रोलियम उत्पादों के दाम को आखिरकार बाजार के हवाले कर देना चाहती है। लेकिन फिलहाल वह डीजल, मिट्टी के तेल और रसोई गैस के दाम बढ़ाने के बारे में नहीं सोच रही है। हालांकि, इन तीनों उत्पादों को बाजार मूल्य से कम दाम पर बेचने से तेल कंपनियों को रोजाना 360 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार इस समयऔरऔर भी

डॉलर के सापेक्ष रुपए के कमजोर होने का सीधा असर पेट्रोलियम पदार्थों की लागत पर पड़ता है। सितंबर के शुरू में एक डॉलर 46 रुपए का था। अभी 49 रुपए के आसपास है। डॉलर की विनिमय दर में हर एक रूपए की वृद्धि से देश में डीजल, केरोसिन व रसोई गैस की सालाना लागत 8000 करोड़ रुपए बढ़ जाती है। यानी, दो रुपए बढ़ने से 16,000 करोड़ और तीन रुपए बढ़ने से 24,000 करोड़। पेट्रोलियम मंत्री जयपालऔरऔर भी

सरकार पेट्रोल के मूल्यों पर पिछले साल जून से ही अपना नियंत्रण हटा चुकी है और इसका फैसला अब नफे-नुकसान की बाजार शक्तियों के हिसाब से होता है। हमारे यहां पेट्रोलियम पदार्थों के दाम सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार से तय होते हैं क्योंकि देश में इनके मूल स्रोत कच्चे तेल की 78 फीसदी मांग आयात से पूरी की जाती है। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मूल्य के अलावा रुपए की विनिमय दर भी पेट्रोल मूल्यों को प्रभावित करने लगी है।औरऔर भी

अभी कुछ दिन पहले तक जो सरकार बढ़ती महंगाई के बीच राजनीतिक बवाल के डर से डीजल के मूल्यों को छेड़ने से डर रही थी, उसे विपक्ष ने ऐसा मौका दे दिया है कि वह बड़े उत्साह से इस पर मूल्य नियंत्रण उठाने की तैयारी में जुट गई है। इसका सबसे पहला वार उन लोगों पर होगा जो डीजल से चलनेवाली कारें इस्तेमाल करते हैं। लोकसभा में महंगाई पर चल रही बहस का जवाब देते हुए वित्तऔरऔर भी

सालाना छह लाख रुपए से अधिक की आय वाले लोगों के लिए रसोई गैस सिलेंडर पर सब्सिडी खत्म कर दी जानी चाहिए। यह सुझाव है कि पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस पर संसद की स्थायी समिति का। समिति ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि एलपीजी सिलेंडरों पर भारी सब्सिडी को बचाने के लिए सरकार को अमीर लोगों को इससे बाहर कर देना चाहिए। बता दें कि दिल्ली में इस समय 14.2 किलो के आम घरेलू एलपीजी सिलेंडरऔरऔर भी

रसोई गैस, केरोसिन और उर्वरक पर दी जानेवाली सब्सिडी तीन चरणों में सीधे लक्षित व्यक्ति के बैंक खाते में पहुंचा दी जाएगी। लेकिन इसमें सबसे बड़ा पेंच है कि सब्सिडी पानेवाले व्यक्ति के पास बैंक खाता तो हो। इसलिए लोगों तक सीधे सब्सिडी पहुंचाने के लिए वित्तीय समावेश कार्यक्रम को तेज करना अपरिहार्य है। यह बात कही है सारे देशवासियों को अलग पहचान देने के काम में लगी संस्था यूआईडीएआई (यूनीक आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के प्रमुखऔरऔर भी