विपक्ष ने दिया मौका तो सरकार जुटी डीजल डिकंट्रोल में, शुरुआत कारों से

अभी कुछ दिन पहले तक जो सरकार बढ़ती महंगाई के बीच राजनीतिक बवाल के डर से डीजल के मूल्यों को छेड़ने से डर रही थी, उसे विपक्ष ने ऐसा मौका दे दिया है कि वह बड़े उत्साह से इस पर मूल्य नियंत्रण उठाने की तैयारी में जुट गई है। इसका सबसे पहला वार उन लोगों पर होगा जो डीजल से चलनेवाली कारें इस्तेमाल करते हैं। लोकसभा में महंगाई पर चल रही बहस का जवाब देते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, “हम आपका (विपक्ष का) सुझाव मान सकते हैं और ऐसा तरीका निकालने की कोशिश कर सकते हैं जिससे इस हिस्से (डीजल कार मालिकों) को सब्सिडी न दी जाए।”

बता दें कि बुधवार को जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए के संयोजक शरद यादव ने कहा था कि सरकार को लक्जरी कार वालों, टेलिकॉम टावर कंपनियों और मॉल्स व रेस्टोरेंट्स को डीजल पर सब्सिडी नहीं देनी चाहिए। शरद यादव ने डीजल पर प्रति लीटर 3.80 रुपए की सब्सिडी की बात कही थी, जबकि वास्तव में सरकार इस समय डीजल पर प्रति लीटर 6.82 रुपए सब्सिडी दे रही है।

वित्त मंत्री ने सांसदों को बताया कि इस समय डीजल की कुल खपत का 10 फीसदी उद्योग और 12 फीसदी कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होता है। रेलवे में इसकी 6 फीसदी, बसों में 12 फीसदी और ट्रकों में 37 फीसदी खपत होती है। इसके अलावा 8 फीसदी डीजल बिजली बनाने के काम में आता है। बाकी बचा 15 फीसदी डीजल कारों में इस्तेमाल किया जाता है। इन कार मालिकों को सब्सिडी देने का कोई तुक नहीं है। इसलिए सरकार इनसे डीजल का पूरा मूल्य ले सकती है।

संसद में वित्त मंत्री के इस बयान के बाद पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा कि सरकार डीजल में दोहरी मूल्य व्यवस्था अपनाने पर विचार कर रही है जिसके तहत लक्जरी कार वालों को बाजार मूल्य देना होगा और सब्सिडी केवल किसानों व परिवहन के काम में लगे ट्रकों को दी जाएगी। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने बिजली उत्पादन जैसे कामों में सब्सिडाइज्ड डीजल के दुरुपयोग पर सही चिंता जताई है और वित्त मंत्री को ही दोहरी मूल्य व्यवस्था को अंतिम रूप देना है।

बता दें कि डीजल पर सरकारी मूल्य नियंत्रण हटाने का सैद्धांतिक फैसला तो सरकार पिछले साल जून में ही तब कर चुकी है, जब उसने पेट्रोल के मूल्य को बाजार के हवाले छोड़ा था। लेकिन व्यापक राजनीतिक विरोध की आशंका के चलते वह डीजल के मूल्य को बाजार के हवाले करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। मोटा अनुमान है कि डीजल, केरोसिन और एलपीजी पर साल में दी जा रही कुल 1,14,336 करोड़ रुपए की सब्सिडी में से 52,365 करोड़ रुपए तो अकेले डीजल के हैं। सरकार और ओएनजीसी, गैल इंडिया व ऑयल इंडिया जैसी अपस्ट्रीम कंपनियां एचपीसीएल, बीपीसीएल व इंडियन ऑयल जैसी तेल मार्केटिंग कंपनियों को यह सब्सिडी उपलब्ध कराती हैं ताकि उनका धंधा चलता रहे।

यह भी नोट करने की बात है कि इसी साल जून में सरकार ने हिम्मत करके डीजल, केरोसिन व एलपीजी के दाम बढ़ाए हैं। साथ ही इन पर कस्टम व एक्साइज ड्यूटी में कमी करके 49,000 करोड़ रुपए का कर-राजस्व छोड़ा है। अपनी तरफ से तमाम राज्यों ने भी डीजल वगैरह पर वैट में कमी की है। वित्त मंत्री के मुताबिक हाल की मूल्य-वृद्धि के बावजूद तेल कंपनियों की अंडर-रिकवरी लगभग 1.22 लाख करोड़ रुपए की है। यह गणना इम्पोर्ट पैरिटी प्राइस के आधार पर की जाती है। हालांकि कुछ जानकार सरकार की इस गणना पर ही सवाल खड़ा करते हैं। आपको पता ही होगा कि हम अपनी कुल जरूरत का लगभग 75 फीसदी कच्चा तेल बाहर से मंगाते हैं।

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