अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव अपनी अघोषित जिद पर अड़े हुए थे कि जब तक केंद्र सरकार राजकोषीय मोर्चे पर कुछ नहीं करती या दूसरे शब्दों में अपने खजाने का बंदोबस्त दुरुस्त नहीं करती, तब तक वे मौद्रिक मोर्चे पर ढील नहीं देंगे। यही वजह है कि पिछले दो सालों में 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में इसमें एकबारगी आधा फीसदी कमी करके फिर हाथ बांध लिए। लेकिन अब सरकार ने डीजल व रसोई गैस के दाम बढ़ाकर सब्सिडी घटाने की पहल कर दी है तो बहुत मुमकिन है कि सोमवार (17 सितंबर) को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में ब्याज दरों में चौथाई फीसदी कमी कर दे। हालांकि रिजर्व अनुपात (सीआरआर या एसएलआर) से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। यह समीक्षा सुबह 11 बजे रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर पेश की जाएगी।
इस समय रेपो दर (वो ब्याज दर जिस पर रिजर्व बैंक से बैंक हर दिन उधार लेते हैं) 8 फीसदी है। सूत्रों के मुताबिक पूरी उम्मीद इस बात की है कि इसे घटाकर 7.75 फीसदी कर दिया जाएगा। इसी के अनुरूप रिवर्स रेपो दर (वो ब्याज दर जो रिजर्व बैंक बैंकों को उनके द्वारा हर दिन जमा कराए गए धन पर देता है) 7 से घटकर 6.75 फीसदी और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) दर 9 से घटकर 8.75 फीसदी हो जाएगी। कोई बैंक अगर अपनी कुल जमा की एक फीसदी सीमा से ज्यादा उधार लेता है तो उसे एमएसएफ के तहत रिजर्व बैंक को ज्यादा ब्जाज देना पड़ता है।
शेयर बाजार में जोरदार अटकलें हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दर में कमी करेगा। इसलिए सोमवार को बाजार का बढ़ना तय है। बीते हफ्ते वैंसे भी बीएसई सेंसेक्स कुल मिलाकर 781 अंक (4.41 फीसदी) बढ़कर 18464 और एनएसई निफ्टी 236 अंक (4.41 फीसदी) बढ़कर 5578 पर बंद हुआ है। बाजार में बढ़त का रुझान जारी रहेगा। जानकारों का कहना है कि अगर किसी वजह से उसमें गिरावट आए तो अच्छे शेयरों को खरीदने की रणनीति अपनानी चाहिए। असल में, अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व की तरफ से हर महीने 40 अरब डॉलर के सरकारी बांड खरीदने के फैसले से सिस्टम में धन का प्रवाह बढ़ जाएगा और विदेशी निवेशक वहां से लगभग शून्य फीसदी ब्याज पर धन उठाकर भारत जैसे बाजारों में लगाएंगे। इसलिए कमजोर होती अर्थव्यवस्था के बावजूद यहां का शेयर बाजार आगे कम से कम दो महीनों तक बढ़ता ही जाएगा।
इसीलिए ब्याज दरों को घटाने जाने की उम्मीद को बाजार में हवा दी जा रही है। हालांकि इसके ठोस आधार कमजोर नजर आ रहे हैं। अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7.55 फीसदी हो गई है, जबकि जुलाई में यह 6.87 फीसदी थी। लेकिन सरकार चाहती है कि रिजर्व बैंक कॉरपोरेट क्षेत्र की मांग के अनुरूप ब्याज दर घटा दे। उसका कहना है कि देश का निर्यात बढ़ने के बजाय घट रहा है। ऐसे में सारा दारोमदार घरेलू अर्थव्यवस्था पर है। उसकी भी हालत खराब है। जुलाई में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) महज 0.1 फीसदी की नगण्य बढ़त ले सका है। ऐसे में ब्याज दरों को घटाना जरूरी हो गया है।
बता दें कि यूपीए सरकार ने शुक्रवार (14 सितंबर) को डीजल व रसोई गैस के दाम बढ़ाकर करीब 20,400 करोड़ रुपए की सब्सिडी बचा ली है। फिर भी नए वित्त मंत्री पी चिदंबरम की मानें तो चालू वित्त वर्ष 2012-13 में सब्सिडी का कुल बोझ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो फीसदी से ज्यादा ही रहेगा। पिछले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस साल के बजट में कुल 1.90 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी का अनुमान लगाया था। लेकिन इसके असल में काफी ज्यादा होने के आसार हैं। अकेले डीजल, केरोसिन व रसोई गैस पर ही 1.67 लाख करोड़ की सब्सिडी जाने का आकलन है।
वैसे, कमाल की बात यह है कि रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए ब्याज दरें बढ़ाता रहा है। लेकिन मुद्रास्फीति घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। इससे देश की बचत दर भी घट गई है। कुछ साल पहले तक हम गर्व करते थे कि हमारी घरेलू बचत दर जीडीपी की 32 से 35 फीसदी है। लेकिन अब यह घटकर जीडीपी के 23 फीसदी पर आ गई है। कुछ विद्वानों का कहना है कि रिजर्व बैंक अब अगर ब्याज दर घटाता है तो मुद्रास्फीति घट सकती है जिससे घरेलू बचत दर में भी इजाफा होगा।