कबूतरबाज़ी कतई नहीं शेयर बाज़ार
हम हिंदुस्तानी जुगाड़ तंत्र में बहुत उस्ताद हैं। फाइनेंस और शेयर बाज़ार दुनिया में उद्योगीकरण में मदद और उसके फल में सबकी भागीदारी के लिए विकसित हुए। लेकिन हमने उसे भोलेभाले अनजान लोगों को लूटने का ज़रिया बना लिया। इसलिए शेयर बाज़ार की ठगनेवाली छवि हवा से नहीं बनी है। पिछले हफ्ते हमारे एक सुधी पाठक के एस गुप्ता जी ने एक किस्सा लिख भेजा कि शेयर बाज़ार में पैसा कैसे डूबता है। वो किस्सा यूं है…औरऔर भी
सब मिला भाव में तो खेलो भाव पर
फाइनेंस की दुनिया ज्यादा अस्थिर, ज्यादा रिस्की हो चली है। ग्लोबल हरकतें लोकल खबरें बन गई हैं। नेट व चौबीसों घंटे चलते न्यूज़ चैनलों ने सूचनाओं को सर्वसुलभ करा दिया। पर प्रोफेशनल फंड मैनेजर सूचनाओं के आम होने से पहले ही उनका खास इस्तेमाल कर लेते हैं। खबर हम तक पहुंचे, इससे पहले वे उसका रस निकाल लेते है। लेकिन सारी हरकतें जाती हैं भाव में। इसलिए भाव को पकड़ो, भाव पर खेलो। अब देखें बाज़ार मंगल का…औरऔर भी
शोर, हो-हल्ले में सच बड़ा साफ है
फाइनेंस की दुनिया में चाहे कोई योजना बनानी हो, किसी स्टॉक या बांड का मूल्यांकन करना हो या बकाया होमलोन की मौजूदा स्थिति पता करनी हो, हर गणना और फैसला हमेशा आगे देखकर किया जाता है, पीछे देखकर नहीं। पीछे देखकर तो पोस्टमोर्टम होता है और पोस्टमोर्टम की गई चीजें दफ्नाने के लिए होती हैं, रखने के लिए नहीं। इसलिए बस इतना देखिए कि आपके साथ छल तो नहीं हो रहा है। भरोसे की चीज़ पकड़िए औरऔरऔर भी
दूर खड़े देखें तमाशा, ताली बजाकर
कुछ लोग फाइनेंस को जमकर गरियाते हैं। कहते हैं कि यह तो बैठे-ठाले दूसरों की जेब ढीली करने का धंधा है, जबकि है यह उद्यमियों की प्रतिभा व मेहनत से हासिल कमाई में हिस्सेदारी का ज़रिया। शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग भी खुद को खोजने जैसी यात्रा है। जोखिम से नहीं डरते; कूदकर फलों को लपकने में मज़ा आता है; अध्ययन, अनुशासन व मेहनत का मन है तो कामयाब होंगे। कल की हिट टिप्स के बाद बात आजऔरऔर भी
ठगों का संसार, ठीकरा किससे सिर?
फाइनेंस की दुनिया में ठगों की भरमार है। ‘कौआ कान ले गया’ का शोर है और सभी यकीन किए जा रहे हैं। एनालिस्ट कह रहे हैं कि निवेशकों को जल्दी चुनाव होने को डर सता रहा है तो सभी बेच रहे हैं। कोई खरीदनेवाला नहीं। इसलिए बाज़ार बेतहाशा गिर रहा है। आगे तो कत्लोगारद होगा। निफ्टी 5400 पर पहुंचेगा। वहीं क्रेडिट सुइस मानती है कि सेंसेक्स जल्दी ही 20,000 तक पहुंच जाएगा। ऐसे में कैसे पहुंचे सचऔरऔर भी
ठीक से भिड़ा नहीं हमारा-आपका टांका
मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं कि मैंने यह मंज़िल क्यों चुनी। मलाल है तो बस इतना कि मंजिल तक पहुंचने का रास्ता अभी तक धुंधला है। ज्ञान पर पड़े भाषा के परदे को तार-तार नहीं, तो कम से कम हल्का क्यों नहीं कर सका। जी हां! जिस देश में कुछ लोग ज्यादातर लोगों के नादान होने पर मौज कर रहे हैं, वहां भाषा बहुत बड़े परदे का काम करती है। लोग जानकार हो गए तोऔरऔर भी
म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से निकले निवेशक, सबसे बड़ी निकासी
आम निवेशक ज़रा-सा मौका मिलते ही म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से तौबा कर ले रहे हैं। अभी बीते सितंबर महीने में उन्होंने इन इक्विटी स्कीमों से 3306 करोड़ रुपए निकाले हैं। यह जानकारी म्यूचुअल फंडों के साझा मंच, एम्फी की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों में दी गई। ये आंकड़े तैयार तो शुक्रवार, 5 अक्टूबर को ही कर लिए गए थे। लेकिन जारी इन्हें सोमवार को किया गया। किसी भी एक महीने में म्यूचुअल फंडों कीऔरऔर भी
आइडिया में दम है, पर पूंजी कहां है?
जो भी पैदा हुआ है, वह मरेगा। यह प्रकृति का चक्र है, नियम है। ट्रेन पर सवार हैं तो ट्रेन की होनी से आप भाग नहीं सकते। कूदेंगे तो मिट जाएंगे। यह हर जीवधारी की सीमा है। इसमें जानवर भी हैं, इंसान भी। लेकिन जानवर प्रकृति की शक्तियों के रहमोकरम पर हैं, जबकि इंसान ने इन शक्तियों को अपना सेवक बनाने की चेष्ठा की है। इसमें अभी तक कामयाब हुआ है। आगे भी होता रहेगा। मगर, यहांऔरऔर भी
सेंसेक्स तेरह हो या तीस, लगेगा तीर
काश! ऐसा होता कि अर्थशास्त्र और राजनीति दोनों एकदम अलग-अलग होते। ऐसा होता तो अपने यहां सेंसेक्स बहुत जल्द छलांग लगाकर 23000 अंक तक पहुंच जाता। हाल में बहुत-सी ब्रोकर फर्मों ने रिपोर्ट जारी कर भविष्यवाणी भी की है कि इस नहीं, अगली दिवाली तक जरूर सेंसेक्स 23,000 के पार चला जाएगा। लेकिन राजनीति और अर्थशास्त्र अलग-अलग हैं नहीं। इसीलिए राजनीतिक अर्थशास्त्र की बात की जाती है। इसी से बनता है पूरा सच और वो सच यहऔरऔर भी