मानसून अच्छा है। समय पर है। इसलिए खेती-किसानी की हालत बेहतर रहेगी। बहुत साफ-सी बात है कि इसी के अनुरूप खाद व उर्वरक की मांग भी बढ़ेगी। इससे उर्वरक कंपनियों का धंधा चमकेगा। धंधा चमकेगा तो उनके शेयर भी चमकेंगे। लेकिन दिक्कत यह है कि उर्वरक कंपनियों में जब भी निवेश की बात आती है तो लोग आमतौर पर नागार्जुन फर्टिलाइजर्स और चंबल फर्टिलाइजर्स की ही चर्चा करते हैं। नागार्जुन फर्टिलाइजर्स के बारे में सालों-साल से चर्चाऔरऔर भी

कल क्या होगा, इसे ठीक-ठीक न आप बता सकते हैं, न मैं और न ही कोई और। हम कल के बारे में इतना ही जानते हैं जितना आज तक की योजनाएं हमें बताती हैं। अगर योजनाएं दुरुस्त हैं, उनमें दम है तो कल सुनहरा हो सकता है। नहीं तो कल आज से भी बदतर हो सकता है। कंपनियों पर भी यह बात लागू होती है। देश में निजी क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी मरकेटर लाइंसऔरऔर भी

अनिश्चितताओं का क्रम जारी है। बहुत से अनुत्तरित सवाल बाजार को डोलायमान किए हुए हैं। पिछले सेटलमेंट में सेंसेक्स 17,770 तक गिरने के बाद सुधरकर 18,600 पर आया ही था कि कुछ नई बुरी खबरों ने पटरा कर दिया। यकीनन, कच्चा तेल, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों का बढ़ना जैसे पुराने मुद्दे बरकरार हैं। लेकिन इधर ग्रीस में फिर से उभरे ऋण संकट और अमेरिका में आई सुस्ती ने बाजार की मानसिकता को चोट पहुंचाई है। यहां तकऔरऔर भी

हमारे शेयर बाजार में वेलस्पन नाम की पांच कंपनियां लिस्टेड हैं – वेलस्पन कॉर्प, वेलस्पन इंडिया, वेलस्पन इनवेस्टमेंट्स, वेलस्पन प्रोजेक्ट्स और वेलस्पन सिन्टेक्स। ये सारी की सारी एक ही समूह की कंपनियां है और इनके सामूहिक चेयरमैन बाल कृष्ण गोयनका हैं। आज यहां हम बात कर रहे हैं वेलस्पन कॉर्प की। यह बड़े व्यास की लंबी-लंबी पाइप बनानेवाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार है। भारत ही नहीं, दुनिया भर की तमाम पाइपलाइन परियोजनाओं को इसनेऔरऔर भी

किसी कंपनी के होने का मूल मकसद होता है नोट बनाना और कंपनी को स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट कराने का मकसद होता है, उसके स्वामित्व को जनता में बिखेर कर पूंजी की सुलभता व लाभ सुनिश्चित करना और कमाए गए लाभ को लाभांश या अन्य तरीकों से अपने शेयरधारकों तक पहुंचाना। अगर कोई लिस्टेड कंपनी लाभ नहीं कमा रही है तो उसके शेयरों में मूल्य खोजना खुद को धोखे में रखना या भयंकर रिस्क लेना है। किसीऔरऔर भी

हरियाणा के प्रभावशाली और राजनीतिक रूप से दबंग जिंदल परिवार की कंपनी है जेएसडब्ल्यू एनर्जी। इस्पात इंडस्ट्रीज का अधिग्रहण कुछ महीने पहले इसी समूह की कंपनी जेएसडब्ल्यू स्टील ने किया है। सज्जन जिंदल इसके प्रबंध निदेशक हैं। कंपनी का इरादा बिजली बनाने, भेजने और बांटने से लेकर उसकी ट्रेडिंग तक करने का है। 1994 में बनने के सोलह सालों के भीतर ही वह कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान व हिमाचल प्रदेश तक फैल चुकी है। 2000 से बिजली बनानेऔरऔर भी

केईसी इंटरनेशनल आरपीजी समूह की करीब 65 साल पुरानी इंजीनियरिंग व कंस्ट्रक्शन कंपनी है। सचमुच इंटरनेशनल है क्योंकि दुनिया के 45 से ज्यादा देशों से उसे इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े ठेके बराबर मिलते रहते हैं। उसके पास उभी 7800 करोड़ रुपए के ऑर्डर हैं जो साल भर पहले की अपेक्षा 42 फीसदी ज्यादा है। कंपनी ने सितंबर 2010 में ही अमेरिका की एसएई टावर्स होल्डिंग्स का अधिग्रहण किया है जिसके चलते उसका लाभ मार्जिन बढ़ गया है। अधिग्रहणऔरऔर भी

अमेरिकी के एक अखबार में छपे लेख में बताया गया है कि चांदी में सट्टेबाजी क्या आलम है। यहां तक कि सट्टेबाजों के कहने पर वहां के कमोडिटी एक्सचेंज ने मार्जिन कॉल जारी करने में देर कर दी। इसके बाद भी चांदी में गिरावट आई तो सही, लेकिन काफी देरी के बाद। भारत की बात करें तो यहां भी सट्टेबाजी सिर चढ़कर बोल रही है। इसमें कोई शक नहीं कि रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति की गंभीर अवस्थाऔरऔर भी

बाजार सुबह-सुबह ओवरसोल्ड हो गया क्योंकि कुछ ट्रेडरों व एफआईआई ने ब्याज दर में 50 आधार अंक (0.50 फीसदी) वृद्धि का अंदाज लगाकर शॉर्ट सौदे कर लिए। औरों को 25 आधार अंक बढ़ने की उम्मीद थी। जाहिर है शॉर्ट सेलर सही निकले तो उन्हें कवरिंग की जरूरत नहीं पड़ी। बाजार गिरता गया। वैसे भी, बाजार 20 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) के करीब पहुंच चुका है, हालांकि वो 200 दिनों के सामान्य मूविंग औसत (एसएमए) को तोड़करऔरऔर भी

उम्मीद पर दुनिया कायम है और शेयर बाजार भी। किसी कंपनी ने लाख अच्छा किया हो, लेकिन अगर वो बाजार की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी तो उसका शेयर गिर जाता है। नहीं तो क्या वजह है कि टीवीएस मोटर कंपनी का शुद्ध लाभ मार्च तिमाही में साल भर पहले की तुलना में दोगुना हो गया। पहले 20.29 करोड़ रुपए था। अब 105.42 फीसदी बढ़कर 41.68 करोड़ रुपए हो गया। फिर भी शुक्रवार 29 अप्रैल को नतीजोंऔरऔर भी