ये हमारी-आपकी बची-खुची पूंजी में निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं। नियामक संस्था सेबी जल्दी ही 250 रुपए या इससे भी कम 100 रुपए की एसआईपी का रास्ता साफ करने की तैयारी में है। यह लालच दिखाकर कि म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में नियमित धन लगाकर गरीब से गरीब देशवासी भी कॉरपोरेट की बढ़ती कमाई में हिस्सेदार बन सकता है। उसे एफडी, पीपीएफ या डाकघर जैसी बचत योजनाओं से असल में घाटा ही होता है क्योंकिऔरऔर भी

बीते हफ्ते शुक्रवार-शनिवार को एनएसई के सभागार में सेबी व एनआईएमएस ने दो दिन का सिम्पोजियम आयोजित किया। सम्वाद नाम की इस संगोष्ठी का केंद्रीय विषय था – कैपिटल फॉर ग्रोथ या संवृद्धि के लिए पूंजी। इसमें सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच से लेकर भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन तक के शिरकत की। साथ ही आए फाइनेंस की दुनिया के तमाम दिग्गज। इनमें आईआईएम बैंगलोर में फाइनेंस के प्रोफेसर वेंकटेश पंचपागेशन औरऔरऔर भी

मोदी सरकार इन दिनों बहुत परेशान है। जीडीपी की विकास दर घटकर चार साल के न्यूनतम स्तर पर। जिस विदेशी पूंजी पर भरोसा किया, वो देश छोड़कर भागे जा रही है। देश में शुद्ध एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) 12 साल के न्यूनतम स्तर पर। कोविड के बाद से सरकार ने खुद पूंजी व्यय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को जो फौरी आवेग दिया था, उसका दम फूलने लगा है। बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 11,11,111 करोड़ रुपए केऔरऔर भी

हमारा जीडीपी तब तक नहीं बढ़ सकता, जब तक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र नहीं बढ़ता। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की दुर्दशा इसलिए हुई पड़ी है क्योंकि मांग के अभाव में न देशी निवेश आ रहा है और न ही विदेशी। फिर भी सरकार झांकी सजाए हुए है। 12 दिसंबर 2024 को वाणिज्य मंत्रालय ने प्रेस रिलीज जारी की कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में 42.1 अरब डॉलर का रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया है और अप्रैल 2020औरऔर भी

दस साल से बनाया गया आर्थिक विकास का तिलिस्म अंततः ताश के पत्तों की तरह भरभराकर गिरने लगा है। सरकारी संस्थान राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) का चालू वित्त वर्ष 2024-25 के बारे में पहला अग्रिम अनुमान है कि इस बार जीडीपी के विकास की दर 6.4% रह सकती है जो चार साल की न्यूनतम दर है। इस बार जुलाई 2024 में चालू वित्त वर्ष का बजट पेश करते हुए नॉमिनल या सतही विकास के 10.5% रहने काऔरऔर भी

नए साल में हम सभी देशवासियों को अर्थव्यवस्था पर और भी ज्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है क्योंकि जल्दी ही बहुत सारे ऑप्टिक्स के साथ अनार व फुलझड़ियां छूटनेवाली हैं। कल सरकार की तरफ से पेश पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक मार्च 2025 तक हमारी अर्थव्यवस्था का आकार सतही या नॉमिनल स्तर पर ₹3,24,11,406 करोड़ का हो सकता है जो प्रति डॉलर 85.76 रुपए की मौजूदा विनिमय दर से करीब 3.78 ट्रिलियन डॉलर बनता है। विश्व बैंकऔरऔर भी

इस समय देश की मुख्यधारा कहा जाने वाला मीडिया जो भी दिखाता है, वो या सनसनी है या तो झूठ और नहीं तो विशुद्ध सरकारी प्रचार। आरटीआई से सूचनाएं मांगो तो उसे राष्ट्रहित व राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बताकर छिपा लिया जाता है। सोशल मीडिया पर लिखने या यूट्यूब चैनल चलानेवालों के पास बेहद सीमित संसाधन हैं। वे खोजकर कुछ लाते भी हैं तो सरकारी धन पर पल रही ट्रोल लॉबी उसे झूठ-झूठ का हल्ला मचाकर दबानेऔरऔर भी

बड़े खतरनाक दौर से गुजर रहा है भारत और हम भारत के लोग। ऐसे में यकीन उसी पर करें, जिसे साफ-साफ देख सकें, छूकर पुष्टि कर सकें। अनदेखे के चक्कर में पड़े, tangible को दरकिनार करके intangible के झांसे में आए तो कहीं के नहीं रहेंगे। न बचेगा देश, न हमारा भविष्य। किसी ज़माने में ठगों का गिरोह गाय के बछड़े को कुत्ता बताकर लूट लेता था। फिर पटना रेलवे स्टेशन को निजी संपत्ति बताकर ठग बैंकोंऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग के बिजनेस की लागत है स्टॉप-लॉस। यह छोटे-बड़े हर ट्रेडर को उठानी ही होती है। थोक के भाव का मतलब है उस भाव पर खरीदना जिस पर अभी तक बैंक, संस्थाएं व बड़े निवेशक खरीदते रहे हैं और आगे खरीद सकते हैं। रिटेल के भाव का मतलब है उस भाव पर बेचना जिस पर बैंक, संस्थाएं व बड़े निवेशक अभी तक बेचते रहे हैं या बेच सकते हैं। भावों के इन स्तरों काऔरऔर भी

अपने यहां जो जितना कमाता है, उस पर और ज्यादा कमाने की हवस चढ़ी है। दुनिया भर में मॉल कम से कम डेढ़ दिन बंद रहते हैं, जबकि अपने यहां सातों दिन खुले रहते हैं। कल साल के पहले दिन अमेरिका, यूरोप व ऑस्ट्रेलिया से लेकर सिंगापुर, हांगकांग, चीन, जापान व कोरिया जैसे एशिया के तमाम शेयर बाज़ार बंद रहे। लेकिन अपने यहां एनएसई व बीएसई खुले रहे क्योंकि जितने भी निवेशक या ट्रेडर आ जाएं, कुछऔरऔर भी