शेयर बाज़ार में कुछ भी किसी भी भाव पर खरीद लेने का कोई मतलब नहीं। हालांकि ब्रोकर और जानेमाने निवेश सलाहकार अक्सर हम से यही करवाते हैं। जिन शेयरों में चाल आ गई होती है और वे किसी वजह से बढ़ रहे होते हैं, वे फटाक से उन्हें उठाकर कहते हैं कि खरीद लो। वे निवेशकों की लालच का फायदा उठाते हैं और जब किसी वजह से बाज़ार या वो शेयर गिरता है तो निवेशकों के डरऔरऔर भी

युद्ध अच्छा नहीं। अच्छा है युद्ध विराम हो गया। आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन और खुद करीब 370 करोड़ डॉलर नेटवर्थ वाले हर्ष गोयनका का कहना है कि युद्ध अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करता है, भले ही वो जीतनेवाले देश की हो। उन्होंने कहा था कि भारत-पाक तनाव से रुपए के डगमगाने, विदेशी निवेशकों के भागने, कच्चे तेल के उछलने का खतरा है। इससे रक्षा खर्च बढेगा, इंफ्रास्ट्रक्चर पीछे चला जाएगा, शेयर बाज़ार डुबकी लगा सकता है। युद्ध केऔरऔर भी

हम-आप जैसे आम निवेशक अपने दम पर सीधे शेयरों में निवेश करके लम्बे समय में म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों को मात नहीं दे सकते। इसके लिए पोर्टफोलियो को जिस तरह बराबर शफल करते रहने की ज़रूरत है, उसके लिए न तो हमारे पास पर्याप्त समय होता है और न ही ज़रूरी सतर्कता व विशेषज्ञता। इसलिए हमें बचत का एक हिस्सा नियमित रूप से एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों से लगाते रहना चाहिए। हमऔरऔर भी

निवेश में हम अक्सर दो अतियों की तरफ भागते हैं। या तो एकदम आसान और पका-पकाया रास्ता तलाशते हैं जिसमें हमें कुछ न करना पड़े। बस किसी ने बता दिया और हमने खरीद लिया। बतानेवाला कोई दोस्त, वॉट्स-अप ग्रुप, ब्रोकर, बिजनेस चैनल का एनालिस्ट, अखबार या वेबपोर्टल का कॉलम तक हो सकता है। नहीं तो हम निवेश के एल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा के चक्कर में ऐसे उलझ जाते हैं कि समय पर कोई फैसला नहीं करऔरऔर भी

अपने आसपास के जितने भी निवेशकों को मैं जानता हूं. उनमें से ज्यादातर लोग बिजनेस चैनलों, अखबारों, निवेश पोर्टलों, ब्रोकरों और वॉट्स-अप ग्रुप में मिली सलाहों या टिप्स पर अपना धन शेयर बाज़ार में लगाते हैं। अक्सर कन्फ्यूज़ रहते हैं कि छोटी अवधि के ट्रेडर हैं या लम्बे समय के निवेशक। मजे की बात यह है कि बिना किसी अपवाद के ये सारे के सारे निवेशक छोटी अवधि और लम्बी अवधि, दोनों में दुखी ही रहते हैंऔरऔर भी

हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। इसी तरह हर चर्चित और चढ़ा हुआ शेयर अच्छा नहीं होता। हमें हर चमक को समझने का सलीका विकसित करना होता है। साथ ही पहले से चढ़े हुए शेयरों की फांस से बचना चाहिए। निवेश की दुनिया में हमें विश्वास नहीं, संदेह से शुरू करना चाहिए। उन्हीं कंपनियों में निवेश करें जिनका बिजनेस मॉडल हमें अच्छी तरह समझ में आ जाए। मुफ्त के तमाम सलाहकार बताते फिरते हैं कि यह मल्टी-बैगरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में निवेश से लम्बे समय में अच्छा कमाने के लिए समय पर अच्छे स्टॉक्स चुनने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है गलत स्टॉक्स को गलत भाव पर खरीदकर फंसने से बचना। गलतियों से बचेंगे तो ठीकठाक कंपनियों के शेयर चार-पांच साल में आराम से 12-14% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से रिटर्न दे देते हैं। लेकिन 20-25 स्टॉक्स के पोर्टफोलियो में पांच-दस गलत स्टॉक्स फंस गए तो बाकियों का रिटर्न भी खाकर बैठ जाते हैं। इसलिएऔरऔर भी

शेयर बाज़ार अनिश्चितता से भरा है। लेकिन हमारे यहां निवेशक बराबर निश्चितता की तलाश में लगे रहते हैं। कौन-से शेयर खरीदूं जो जमकर रिटर्न देंगे? बाज़ार कहां तक गिरेगा या उठेगा? कौन-से एनालिस्ट, बिजनेस चैनल या अखबार सटीक सलाह देते हैं? फिर इन सवालों के पक्के जवाब पाने के लिए निवेशक तरह-तरह के एप्प, वेबसाइट, अखबारों, चैनलों व उनके सलाहकारों के चंगुल में खुद फंस जाते हैं और दूसरों को भी वॉट्स-अप ग्रुप जैसे माध्यनों से फंसातेऔरऔर भी

भारतीय शेयर बाजार अब भी इतना विकसित नहीं हुआ है कि उस्तादों के शिकंजे से निकलकर आम निवेशकों व ट्रेडरों के लिए भी बहुत सहज व सामान्य हो जाए। इनके लिए तो अब भी वही पुरानी स्थिति है कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। कोई भी कहीं भी रिटेल निवेशकों व ट्रेडरों के बीच सर्वे कर ले तो यही नतीजा निकलेगा कि 90-95% निवेशक व ट्रेडर गंवाते हैं, जबकि केवल 5-10% ही कमाते हैं। साथ ही यहां निवेशऔरऔर भी

आम निवेशकों का कोई खास नहीं, कोई अपना नहीं। उन्हें नहीं पता कि जिन्हें वे खास व सगा समझते हैं, वे असल में उनका ही शिकार करने बाज़ार में उतरे हैं। बिजनेस चैनलों, अखबारों और कुकुरमुत्तों की तरह उग आए वेबपोर्टलों के विशेषज्ञों व सलाहकारों की मुफ्त सलाहों पर वे लहूलोह होते रहते हैं। ऐसे विशेषज्ञों को निवेश का भगवान मानते हैं। उनकी सलाह मान शेयर खरीदते हैं। लेकिन अक्सर दुखी रहते हैं कि जब भी वेऔरऔर भी