होना यह चाहिए था कि निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियां ऐसी होड़ देती हैं कि ग्राहक सरकारी कंपनी एलआईसी को छोड़कर उनकी तरफ दौड़े चले आते। लेकिन साल 2000 में जीवन बीमा कारोबार को खोलने के बाद बराबर हो रहा है इसका उल्टा। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के ताजा आंकडों के मुताबिक फरवरी 2012 तक एलआईसी की कुल गैर-एकल प्रीमियम वाली व्यक्तिगत पॉलिसियों की संख्या 2,65,37,802 हो गई है। यह संख्या फरवरी 2011 तक 2,53,60,881औरऔर भी

बीमा कारोबार को निजी क्षेत्र के लिए खोले हुए दस साल से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन साधारण बीमा ही नहीं, जीवन बीमा तक में अभी तक सरकारी कंपनियों का दबदबा है। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अप्रैल से दिसंबर तक के नौ महीनों में जहां साधारण बीमा में मिले प्रीमियम का 58.3 फीसदी सरकारी कंपनियों की झोली में गया है, वहीं जीवन बीमाऔरऔर भी

बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) ने 1 सितंबर 2010 से लागू नए नियमों को पूरा करनेवाले 51 यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी) उत्पाद मंजूर कर दिए हैं। इरडा के चेयरमैन जे हरिनारायण ने बुधवार को मुंबई में एसोचैम द्वारा आयोजित ग्लोबल इंश्योरेंस समिट में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उनके पास कुल 68 यूलिप के प्रस्ताव आए थे, जिनमें से 51 को मंजूरी दे दी गई है। इनमें से दो पेंशन प्लान हैं। एक प्लान एलआईसीऔरऔर भी

बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के चेयरमैन जे हरिनारायण तहेदिल से बीमा एजेंटों के साथ हैं। दुनिया भले ही कहे कि बीमा एजेंट भारी-भरकम कमीशन लेते हैं, खासकर यूलिप प्लान में। लेकिन इरडा प्रमुख मानते हैं कि अभी हमारे बीमा उद्योग में एजेंट का जितना कमीशन है, उससे सस्ते में बीमा उत्पादों के बेचने का कोई दूसरा तरीका नहीं। और, उन्होंने यह बात आंकड़ों से साबित की है। मंगलवार को मुंबई में भारतीय बीमा संस्थान (आईआईआई) केऔरऔर भी