बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के चेयरमैन जे हरिनारायण तहेदिल से बीमा एजेंटों के साथ हैं। दुनिया भले ही कहे कि बीमा एजेंट भारी-भरकम कमीशन लेते हैं, खासकर यूलिप प्लान में। लेकिन इरडा प्रमुख मानते हैं कि अभी हमारे बीमा उद्योग में एजेंट का जितना कमीशन है, उससे सस्ते में बीमा उत्पादों के बेचने का कोई दूसरा तरीका नहीं। और, उन्होंने यह बात आंकड़ों से साबित की है।
मंगलवार को मुंबई में भारतीय बीमा संस्थान (आईआईआई) के नए परिसर के उद्घाटन के मौके पर जे हरिनारायण ने बताया कि देश में इस समय बीमा उद्योग से जुड़े करीब 40 लाख एजेंट हैं। 80 फीसदी बीमा पॉलिसियों की बिक्री इन्हीं के जरिये होती है। 2009-10 में सभी कंपनियों द्वारा इकट्ठा किया गया जीवन बीमा प्रीमियम लगभग 2,61,000 करोड़ रुपए रहा है। इसका 55 फीसदी हिस्सा पारंपरिक बीमा उत्पादों से आया है और बाकी 45 फीसदी हिस्सा ही यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी) से आया है।
अभी बीमा उद्योग जितना प्रीमियम इकट्ठा कर रहा है, उसका केवल 7 फीसदी हिस्सा ही एजेंट के कमीशन के रूप में जाता है। उन्होंने बताया कि कमीशन और प्रीमियम का अनुपात 7 फीसदी से ज्यादा नहीं है। बीमा उत्पादों के वितरण का इससे सस्ता दूसरा कोई तरीका नहीं हो सकता। इरडा प्रमुख ने भारतीय बीमा संस्थान की तारीफ करते हुए कहा कि एजेंटों के ऑनलाइन टेस्ट की शुरुआत 33 केंद्रों से की गई थी। अब ऐसे केंद्रों की संख्या 110 हो गई है। जल्दी ही सारे देश के प्रमुख शहरों में ये टेस्ट लिए जाने लगेंगे। एंजेंटों के टेस्ट अभी नौ भाषाओं में लिए जाते हैं। जल्दी ही इन्हें संविधान द्वारा स्वीकृत सभी भारतीय भाषाओं में लिया जाएगा। ये टेस्ट भारतीय बीमा संस्थान ही संचालित करता है।
बता दें कि भारतीय बीमा संस्थान देश में बीमा प्रशिक्षण का शीर्ष संस्थान है। इसका गठन एलआईसी से भी पहले 1955 में हुआ था। तब इसके सदस्यों की संख्या 2000 से थोड़ी ज्याद थी। अब इसके सदस्यों की संख्या 2.49 लाख है। देश के 91 बीमा संस्थान इससे जुड़े हुए हैं। यह तीन तरह के प्रोफेशनल कोर्स चलाता है। इसने 1955 में 6699 रुपए से शुरुआत की थी और आज की तारीख में इसके पास 289 करोड़ रुपए के फंड हैं। संस्थान के बांद्रा कुरला कॉम्प्लेक्स के परिसर पर कुल लगभग 40 करोड़ की लागत आई है, जिसमें से 15 करोड़ जमीन पर और 25 करोड़ कंस्ट्रक्शन पर खर्च हुए हैं।
सहृदय इरडा प्रमुख श्री हरिनारायण जी के सकारात्मक रुख के लिये बिमा एजेंटो को हौसला प्राप्त होता हैं। वर्तमान विकट आर्थिक हालात में संस्था प्रमुख को ऐसा ही होना चाहिये।
हार्दिक धन्यवाद सर जी।