सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सहारा समूह को फौरी राहत दे दी। उसने सिक्यूरिटीज अपीलीय ट्राइब्यूनल (सैट) के 18 अक्टूबर 2011 के उस आदेश पर स्टे दे दिया जिसमें सहारा समूह की दो कंपनियों – सहारा इंडिया रीयल एस्टेट (वर्तमान नाम, सहारा कमोडिटी सर्विसेज) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन को ओएफसीडी (ऑप्शनी फुली कनर्टिबल डिबेंचर) इश्यू के 2.3 करोड़ निवेशकों को छह हफ्ते के भीतर उनके द्वारा जमा कराए गए करीब 17,400 करोड़ रुपए लौटाने को कहा गया था। छह हफ्ते आज सोमवार को पूरे हो रहे थे तो आज सहारा समूह सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले आया।
सैट के आदेश पर अमल से बचने के लिए ही सहारा सुप्रीम कोर्ट गया था और वह राहत पाने में सफल हो गया। सुप्रीम कोर्ट में देश के मुख्य न्यायाधीश एस एच कापड़िया की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सैट द्वारा धन लौटाने की अंतिम तारीख को बढ़ाकर 9 जनवरी 2012 कर दिया है। साथ ही सहारा समूह को निर्देश दिया है कि वह अपनी इन दोनों कंपनियों की वित्त वर्ष 2010-11 की बैलेंस शीट और नवंबर 2011 के खातों का विवरण उसके पास 8 जनवरी 2012 से पहले जमा करा दे। सोमवार, 9 जनवरी 2012 को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई होनी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों कंपनियों से एक विस्तृत हलफनामा जमा कराने को कहा है जिसमें उन्हें साफ करना होगा कि वे ओएफसीडी में धन लगानेवाले करीब 2.3 करोड़ निवेशकों के हितों की हिफाजत कैसे करेंगी। पीठ का कहना है कि हलफनामे में इन कंपनियों को बताना होगा कि उन्होंने अपनी देनदारियों को कैसे सिक्योर किया है और कहां से निवेशकों की धन की वापसी करेंगे। आदेश के मुताबिक, “हलफनामे में कंपनियों की नेटवर्थ, खासतौर पर वे आस्तियां जिनके एवज में देनदारी बनाई गई है और 2010-11 की बैलेंस शीट समेत नवंबर 2011 तक के खातों का विवरण का होना जरूरी है।”
बता दें कि इसी साल जून में पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने सहारा की उक्त दोनों कंपनियों को निवेशकों से ओएफसीडी इश्यू में जमा कराई गई रकम लौटाने को कहा था। लेकिन इन कंपनियों के साथ ही सहारा समूह के मुखिया सुब्रत रॉय, उनके निदेशक बोर्ड में शामिल वंदना भार्गव, रवि शंकर दुबे व अशोक रॉय चौधरी ने सेबी के आदेश को सैट में चुनौती दे दी। मगर सैट ने अक्टूबर में आदेश सुना दिया कि इन कंपनियों को निवेशकों को 15 फीसदी सालाना ब्याज समेत 24,029 करोड़ रुपए लौटाने होंगे। इसके बाद समूह ने सेबी और सैट दोनों के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार व सेबी को भी नोटिस जारी किया है और इस मामले पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। गौरतलब है कि यह मामला पिछले एक साल से अदालतों व सेबी के बीच झूल रहा है। सहारा समूह का कहना है कि उसने अपने कार्यकर्ताओं व समूह से जुड़े लोगों से ओएफसीडी में रकम जुटाई है। इसलिए इसे पब्लिक इश्यू नहीं माना जा सकता। लेकिन सेबी का कहना है कि इसमें निवेशकों की संख्या 50 से ज्यादा है, इसलिए यह कानूनन पब्लिक इश्यू है और इसके लिए सेबी की पूर्व अनुमति जरूरी थी।
खैर, आगे-आगे देखिए होता है क्या। सहारा समूह इस बीच पूरा अपना कलेवर बदलने में जुट गया है। वह खुद को रिटेल लेकर एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनी में ढाल रहा है। रीयल एस्सेट का धंधा वह बढ़ाएगा। लेकिन नियामकों से घिर जाने के कारण वह फाइनेंस के मूल व्यवसाय को अलविदा कहने की तैयारी में है।
sahara ne aam bhartiy ko lakhpati banaya ha
Sahara is a very good company
Sharda group failed, why,
simple they don’t follow Govt regulations.Hindustan ki banks aur beema companies pagal nahi hei jo RBI ,IRDA, SEBI ko follow karti hien. Sahara ka jana nishchit hei.niveshako ko jhooth per jhooth bol rahe hein.
Sahara India jisa ko pariwar nahi hai best sahara Sahara Pranam
Kya sabhi logo ka paisa sahara ne nahi diya hai pichale 37 salo me sebi galat hai
Please Sahara mera paisa vapas kar de.
India ka best family Sahara family