लगता है कि सरकार अण्णा हजारे व सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों के साथ किसी टकराव से बचना चाहती है। पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि उन्हें लोकपाल के दायरे में आने में कोई आपत्ति नहीं है और अब इस मुद्दे पर सबसे मुखर, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्ब्ल कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को पद पर रहते नहीं, लेकिन पद छोड़ने के बाद लोकपाल के दायरे में लाया जा सकता है।
सिब्बल ने समाचार चैनल सीएनएन-आईबीएन के एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘सरकार के भीतर, प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहिए। लेकिन इसके साथ हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि अगर वह पदत्याग देता है तो उसे मुकदमे से मुक्त नहीं रखा जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई भी फैसला सरकार की ओर से उस वक्त किया जाएगा, जब लोकपाल विधेयक का मसौदा कैबिनेट के समक्ष आएगा। सिब्बल ने कहा कि अगर समाज के सदस्यों की ओर से अकाट्य दलील दी जाती है तो संयुक्त मसौदा समिति में शामिल पांचों मंत्री प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात मानने के लिए तैयार हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सार्वजनिक तौर पर कह चुके कि वे इस पद को लोकपाल के दायरे में लाने के विचार को लेकर खुले हैं। इस संदर्भ में सिब्बल ने कहा, ‘‘यह किसी व्यक्ति विशेष, मनमोहन सिंह का सवाल नहीं है। यह एक संस्था से जुड़ा सवाल है।’’
प्रधानमंत्री कार्यालय को लोकपाल के दायरे में न न रखने की दलील के पक्ष में सिब्बल ने कहा, ‘‘दुनिया में किस प्रधानमंत्री के खिलाफ पद पर बने रहते समय मुकदमा चलाया गया है? आप बताइए, कृपया इसकी एक मिसाल दीजिए?’’