शहरों में भूमि का मुआवजा बाजार मूल्य का 2 गुना, गांवों में 6 गुना

एक हफ्ते देरी से ही सही, नए ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने शुक्रवार, 29 जुलाई को भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास पर नया विधेयक सार्वजनिक बहस के लिए पेश कर दिया। उन्होंने मंत्री बनने के एक दिन बाद 13 जुलाई को एक हफ्ते में ऐसा कर देने की बात कही थी। विधेयक मंत्रालय की वेबसाइट पर रख दिया गया है, जिस पर कोई भी अपनी प्रतिक्रिया 31 अगस्त तक भेज सकता है। अंतिम विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पेश करने का लक्ष्य है।

यह भी काबिले-तारीफ है कि इस ‘भूमि अधिग्रहण तथा पुनर्वास एवं पुनःस्थापन विधेयक 2011’ के मसौदे को अंग्रेजी व हिंदी दोनों ही भाषाओं में प्रस्तुत किया गया है। लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे नियामकों ने हिंदी को इतना असंप्रेषणीय बना रखा है कि अधिनिर्णय व व्यनपगत जैसे शब्दों का मतलब समझने के लिए अंग्रेजी के मूल विधेयक को देखना पड़ता है। फिर भी इस कोशिश के लिए जयराम रमेश की सराहना की जानी चाहिए।

विधेयक का मसौदा निजी कंपनियों पर सीधे किसानों और अन्य लोगों से जमीन खरीदने पर रोक नहीं लगाता। मसौदे में यह भी कहा गया है कि किसी भी हालत में विविध फसलों वाली भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा और न ही सरकार निजी कंपनियों के निजी मकसद के लिए कोई भी जमीन अधिग्रहण करेगी।

विधेयक के मसौदे के अनुसार, शहरी इलाकों में अधिग्रहीत जमीन का मुआवजा उसके बाजार मूल्य के दोगुने और ग्रामीण इलाकों में मूल बाजार मूल्य के छह गुने से कम नहीं होगा। विधेयक में जमीन के बाजार मूल्य की गणना की स्पष्ट व्याख्या की गई है। जिन किसानों की जमीन ली जा रही है, उन्हें इस मुआवजे के ऊपर प्रति परिवार हर महीने 3000 रुपए का गुजारा भत्ता 12 महीने के लिए देना होगा। साथ ही 20 सालों पर जमीन खोनेवाले परिवार को प्रति माह 2000 रुपए की पेंशन या वार्षिकी देनी होगी।

अगर भूस्वामी का घर भी अधिग्रहण में गया है तो उसे ग्रामीण इलाकों में 150 वर्गमीटर प्लिंथ क्षेत्रफल और शहरी इलाकों में 50 वर्गमीटर प्लिंथ क्षेत्रफल का बना-बनाया घर देना होगा। जमीन से वंचित होनेवाले परिवार के एक सदस्य को नौकरी या 2 लाख रुपए देने का प्रावधान है। ये सभी प्रावधान उन भूमिहीन कृषि मजदूरों पर भी लागू होते हैं, जिनकी आजीविका अधिग्रहण की जानेवाली जमीन से जुड़ी हुई थी। विधेयक में अनुसूचित जाति व जनजाति वाले विस्थापितों के लिए अलग से विशेष प्रावधान किए गए हैं।

अगर भूमि का अधिग्रहण शहरीकरण के लिए किया गया है तो विकसित भूमि का 20 फीसदी हिस्सा अपनी जमीन खोनेवाले भूस्वामियों को उनकी जमीन के अनुपात में देना होगा। अगर कहीं भी 100 एकड़ से ज्यादा जमीन अधिग्रहीत की जाती है तो उसके सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट आंकलन करना होगा। अगर पांच साल तक ली गई जमीन का इस्तेमाल घोषित मकसद के लिए नहीं किया तो जमीन उसके मूल मालिक को लौटा देनी होगी।

विधेयक का कहना है कि निजी कंपनियों और सरकार ने किस अनुपात में जमीन का अधिग्रहण किया है, इससे फर्क नहीं पड़ता। असली बात यह है कि परियोजना के लिए जमीन देनेवाले की जीविका का सही इंतजाम हो। इसलिए विधेयक में हर अनुपात (0-100%, 50-50%, 70-30%, 90-10%, 100-0% व अन्य) पर विचार किया गया है बिना इसकी परवाह किए कि जमीन सरकार ले रही या कोई निजी कंपनी।

विधेयक में इसे लागू करने की सीमाओं का भी उल्लेख किया गया है। असल में हमारे संविधान के तहत भूमि राज्य का विषय है। लेकिन भूमि अधिग्रहण एक समवर्ती विषय है। अभी तक भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को संचालित करने वाला मूल कानून भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 रहा है। हालांकि इसमें समय-समय पर संशोधन किए गए हैं फिर भी यह स्पष्ट है कि मूल नियम अब काफी पुराने हो गए हैं। भूमि अधिग्रहण के लिए केन्द्र सरकार के 18 अन्य कानून हैं। देश में प्रचलित ऐसे अन्य विशिष्ट कानूनों पर विधेयक के मसौदे को तरजीह दी जाएगी। मसौदा बिल के प्रावधान इन कानूनों में उपलब्ध कराए गए मौजूदा सुरक्षा उपायों के अतिरिक्त होंगे।

दिक्कत यही है कि इस कानून की प्रकृति सलाह देने जैसी है। भूमि चूंकि समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए राज्यों की विधानसभाएं जब तक इसे स्वीकार करके लागू नहीं करतीं, तब तक इसका कोई असर नहीं होगा। इसलिए कानून बन जाने के बाद भी इस पर काफी राजनीतिक मशक्कत करनी पड़ेगी।

जयराम रमेश ने विधेयक की प्रस्तावना में लिखा है कि भारत में भूमि का बाजार अभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं है। यहां भूमि को लेने वाले और जिनकी भूमि ली जा रही है दोनों के बीच शक्तियों व सूचना में विषमता है। इसी वजह से सरकार को पारदर्शी व लचीला नियम-विनियम बनाने और इसका प्रवर्तन सुनिश्चित करने की जरूरत है। बता दें कि भूमि अधिग्रहण पर कानूनी स्थिति को साफ करने की यह यूपीए सरकार की दूसरी कोशिश है। इससे पहले 2009 में पुनर्वास व पुनःस्थापन से संबंधी दो विधेयक लोकसभा भंग होने जाने के चलते कालातीत हो गए थे।

मसौदा विधेयक पर 31 अगस्त तक लोगों से प्रतिक्रिया मांगी गई है। प्रतिक्रिया भेजने का ई-मेल पता है:

landacquisition.comments@gmail.com

साथ ही अपनी प्रतिक्रिया डाक से ग्रामीण विकास मंत्रालय, कमरा नंबर-48, कृषि भवन, नई दिल्‍ली के पते पर भेजी जा सकती है।

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