जीने के साधनों की सौदेबाज़ी में ज़िंदगी इस कदर निचुड़ जाती है कि हम जीने लायक ही नहीं बचते। हालांकि चाहें तो हम इनके बगैर भी मजे से जी सकते हैं। इसके लिए दो ज़रूरी चीजें हैं प्यार और प्रकृति, जहां सिर्फ समर्पण चलता है, सौदेबाज़ी नहीं।
2012-07-14
जीने के साधनों की सौदेबाज़ी में ज़िंदगी इस कदर निचुड़ जाती है कि हम जीने लायक ही नहीं बचते। हालांकि चाहें तो हम इनके बगैर भी मजे से जी सकते हैं। इसके लिए दो ज़रूरी चीजें हैं प्यार और प्रकृति, जहां सिर्फ समर्पण चलता है, सौदेबाज़ी नहीं।
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ICKCHHAIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII JITNI KAM HOGI ,,,AAP PYAR AUR PRAKRITI KE UTNE NAJDIK PAEINGE . MERA MATLAB AAP YEH MAT SAMJHIEGA KI KHANA PINA BHI CHHOR DE TO SABHI PRAKAR KI ICKCHHAI BHI KHATM HO JAEIGI…PLS YESA MAT KIJIEGA NAHI TO PYAR SE HOTE HUE PRAKRITI MAI LEEN HO JAINGE !!!