आ रहा है बाजार का स्वर्णिम काल

बाजार का बैरोमीटर, निफ्टी 5440 से बढ़कर 5586 पर पहुंच गया जो उस स्पष्ट रुझान की तस्दीक करता है जिसे हम पहले ही बता चुके हैं। असल में, फिजिकल सेटलमेंट के अभाव में पूरे सिस्टम के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हमने पिछले कॉलम में तथ्यों व आंकड़ों के साथ दिखाया है कि डेरिवेटिव या एफ एंड ओ बाजार 32,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का नहीं है, जबकि इसे 1,15,000 करोड़ रुपए का दिखाया जाता है।

हकीकत को इतना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने से तमाम छोटे ट्रेडर डेरिवेटिव सौदों का शिकार बन रहे हैं और हर दिन धन गंवा रहे हैं। मैंने कुछ बड़े ब्रोकिंग हाउसों के शीर्ष प्रबंधकों से बात की और उन्हें यकीन दिलाने की कोशिश की कि बी ग्रुप में सचमुच कुछ बहुत अच्छे स्टॉक्स हैं। लेकिन उन्होंने कह दिया कि उन्हें तो केवल एफ एंड ओ सेगमेंट में स्टॉक्स में दिलचस्पी है।

मुझे कोलकाता का एक अच्छा निवेशक याद है जो किसी समय बी ग्रुप के शेयरों में 5 करोड़ रुपए तक की डिलीवरी लिया करता था। लेकिन वह अब ऐसे किसी स्टॉक की तरफ झांकता तक नहीं और केवल फ्यूचर्स में खेलता है। उसकी नेटवर्थ पहले 100 करोड़ रुपए से ऊपर हुआ करती थी। अब घटकर आधी रह चुकी है। फिर भी वह फ्यूचर्स ही चाहता है जिसकी सीधी वजह यह है कि ए ग्रुप या एफ एंड ओ स्टॉक्स में लिक्विडिटी है और वह वहां से जब चाहे, तब आसानी से निकल सकता है।

अगर बी ग्रुप के शेयरों से निकलने की बेहतर स्थिति बनाने की कोशिश की जाए तो उनमें भी वोल्यूम वापस लाया जा सकता है। लेकिन इसके बजाय ब्रोकरों के नेटवर्क के जरिए निगरानी कड़ी कर दी गई है जिससे रिटेल व छोटे निवेशकों की जिंदगी दूभर हो गई है। इसका असर वोल्यूम के खात्मे के रूप में सामने आया है। बीएसई में ए ग्रुप के शेयरों का वोल्यूम घटकर 2200 करोड़ रुपए और बी ग्रुप का वोल्यूम 1000 करोड़ रुपए पर आ गया है। यह खुद देश के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज के वजूद के लिए बड़ी दयनीय स्थिति है।

खैर, सेबी ने आईपीओ में मूल्य-निर्धारण के मसले पर गौर करने का निर्णय लिया है जो पहला अच्छा संकेत है। यह भी अच्छी बात है कि मीडिया के खबरों के मुताबिक वो एसकेएस माइक्रो फाइनेंस के शेयरों में आई गिरावट की जांच करेगी। लेकिन क्या वो विंडसर मशींस की गिरावट भी जांच करेगी क्योंकि रिटेल निवेशक इससे प्रभावित हुए हैं। असल में बी ग्रुप के इस शेयर, विंडसर मशींस में आम निवेशकों के साथ दिन-दहाड़े लूट नहीं, डकैती हुई है।

निफ्टी के 5620 के आसपास आने पर मंदड़िये एक बार फिर उस पर हमला करने की कोशिश करेंगे। लेकिन एफआईआई की बिकवाली और तमाम डाउनग्रेड के बावजूद बाजार को बढ़ना है और निफ्टी 6000 को पार करेगा। यह कोई हवाई बात नहीं, बल्कि शुद्ध रूप से मूल्यांकन पर आधारित है। 2009 में सेंसेक्स जब 8900 पर था, तब बहुत सारे डाउनग्रेड हुए थे और एफआईआई ने बिकवाली भी जमकर की थी। लेकिन बाजार उठते-उठते 21,000 तक पहुंच गया।

एफआईआई आ सकते हैं और निकल सकते हैं। बाजार में थोड़े वक्त का रुझान तय कर सकते हैं। सरकार की नीतियां भी एफआईआई के पक्ष में जाती हैं। लेकिन अंततः बाजार चंद भारतीयों के हाथ में है जिन्हें हम बाजार के ऑपरेटर कहते हैं। उनके पास एफआईआई को सुरक्षित रास्ता देने की क्षमता है। फिलहाल बाजार अभी जिस तरह खुद को जमा रहा है, वह अगले चरण की शुरुआत है और हम जल्दी ही निफ्टी को 7000 अंक पर पहुंचा हुआ देख सकते हैं।

सेंसेक्स जब 8000 पर था, तब एफआईआई ने बी ग्रुप के शेयर बेच डाले थे। अब सेंसेक्स 19,000 पर है तो वे ए ग्रुप के शेयर बेच रहे हैं। अब बी ग्रुप में रैली की शुरुआत होगी क्योंकि उनको पूरी तरह मुठ्ठी में किया जा चुका है। बाजार जब नई ऊंचाई पर पहुंचेगा तो वही एफआईआई वापस आएंगे और इन शेयरों को खरीदेंगे। उन्होंने वीआईपी इंडस्ट्रीज को 35 रुपए पर नहीं खरीदा, लेकिन निश्चित रूप से 800 रुपए पर खरीदने लगे। फिर भी वे समझते हैं कि वे बहुत चालाक हैं और भारत में नोट बना रहे हैं! आप खुद तय कीजिए कि बाजार के ऑपरेटरों के सामने उनकी क्या बिसात है।

मेरा मानना है कि बाजार का स्वर्णिम काल जल्दी ही शुरू होगा। हां, यह कितने साल चलेगा और फिर कितने साल की डुबकी लगा जाएगा, इसके बारे में कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगा।

कल कोई नहीं जानता, न ही जान सकता है। हम बस अनुमान भर लगा सकते हैं। लेकिन अनिश्चितता और आकस्मिकता से लड़ने की तैयारी हम जरूर अभी से कर सकते हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का paid कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)

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